भारत कई महापुरुषों, विद्वानों और श्रेष्ठ जनों की भूमि रही है। आदि काल से ही यहां उपजने वाला ज्ञान पूरे संसार का मार्गदर्शन करता रहा है। मौर्यकालीन भारत के ऐसे ही एक महान शिक्षक, प्रखर बुद्धिजीवी, अर्थशास्त्री और राजनीतिशास्त्र के महान ज्ञाता थे जिन्हे हम “चाणक्य” के नाम से जानते है। इन्होंने ही अपनी बुद्धिमत्ता, ज्ञान और अपनी नीतियों के बल पर अखंड भारत की नींव रखी थी।
इनके द्वारा बताए गए नीति और नियम आज भी लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं, तथा उन्हें अपने जीवन में सफलता पाने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होते हैं। उनके द्वारा दी गई शिक्षा नीति एक श्रेष्ठ राष्ट्र को सुचारू रूप से चलाने और उसके विकास का आधार है।
सुखास्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलं अर्थः। अर्थस्य मूलं राज्यः।
राज्यस्यः मूलं इंद्रिय जयः। इंद्रियजयस्य मूलं विनयः।
विनयस्य मूलं वृद्धोपसेवा।।
चाणक्य–
आचार्य चाणक्य को कौटिल्य, विष्णुगुप्त, वात्स्यायन इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। उन्हें राजनीति और कूटनीति के ज्ञाता होने के कारण “भारत के मैकेयावेली” की उपाधि भी दी जाती है। उनकी कुशाग्र बुद्धि के कारण वे आज भी जाने जाते है। उनकी विद्वता के किस्से और कहानियों के जरिए आज लोगो को जीवन के कठिनाइयों से लड़कर सफलता प्राप्त करने का संदेश दिया जाता है।
आचार्य चाणक्य के जन्म स्थान और समय को लेकर मतभेद पाए जाते है। जैन ग्रंथों के अनुसार उनका जन्म लगभग 375 ई०पू० बताया जाता है।
उनके जन्म स्थान को देखे तो कुछ विद्वानों के मतानुसार उनका जन्म नेपाल की तराई में हुआ था। जैन ग्रंथों में उनके जन्म स्थान के रूप में मैसूर राज्य में स्थित श्रवणबेलगोला का वर्णन मिलता है। वहीं कुछ इतिहासकार तक्षशिला को उनकी जन्मभूमि बताते हैं।
उनका जन्म कुटिल वंश के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जैन ग्रंथों के अनुसार उनके पिता का नाम ऋषि चणक तथा माता का नाम चनेश्वरी था। उनके पिता एक शिक्षक थे। ऐसा कहा जाता है कि कुटिल वंश में जन्म लेने के कारण वे कौटिल्य कहलाते है, परंतु कुछ विद्वानों के अनुसार वे बचपन से ही गूढ़ और जिद्दी स्वभाव के थे और इसी कारण उनका नाम कौटिल्य रखा गया। वहीं दूसरी ओर चणक ऋषि के पुत्र होने के कारण उनका नाम चाणक्य पड़ा।
अतः उनके नाम, जन्म स्थान तथा उनके जन्म के समय को लेकर सटीक जानकारी नहीं मिलती।
आचार्य चाणक्य बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले बालक थे। क्योंकि उनके पिता एक शिक्षक थे इसीलिए बचपन से ही उनका झुकाव शिक्षा की ओर रहा था। जहां उनके उम्र के बच्चे खेल खुद में अपनी रुचि रखते थे वहीं चाणक्य का मन विद्या अर्जन करने के लगा रहता था। वे बाल्यकाल से ही देखने में रूपवान नहीं थे परंतु उनके विचार अत्यधिक श्रेष्ठ थे।
उनके बाल्यकाल से जुड़ी एक छोटी सी कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार ऐसा बताया जाता है कि “उनके मुंह में एक ज्ञान का दांत था। उस समय ऐसी मान्यता थी कि जिसके भी मुख में ये दांत होता है वो अवश्य ही एक राजा बनता है। एक बार एक ज्योतिषी ने चाणक्य की माता को ऐसा बताया कि आपका पुत्र बड़ा होकर एक महान राजा बनेगा परंतु यह सुनकर उनकी माता को प्रसन्नता होने के बजाय ये दु:ख होने लगा की यदि वो बड़ा होकर राजा बना तो उन्हें छोड़ कर चला जाएगा। तभी अपने माता को चिंतित देख चाणक्य ने उसीक्षण अपना दांत तोड़ दिया और अपनी माता से कहा कि मुझे ऐसा राजपाट नहीं चाहिए जिससे मेरी माता को दुःख हो।”
वे आगे चलकर राजा तो नही परंतु महान मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री और विशेष सलाहकार बने तथा अपनी बुद्धि और नीतियों के कारण मौर्य साम्राज्य को उस समय का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बनाया।
आचार्य चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय से हुई जो उस समय ज्ञान और विद्या का सबसे बड़ा संस्थान हुआ करता था। उन्हें राजनीति शास्त्र में विशेष रुचि थी। उन्होंने समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र इत्यादि विषयों की शिक्षा प्राप्त की।इसके अलावा उन्हें फारसी और ग्रीक जैसे भाषाओं का भी ज्ञान था।
अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात वे तक्षशिला में ही अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र के शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे। वे एक बहुत ही विद्वान और श्रेष्ठ शिक्षक थे जिन्हे कई विषयों में महारत हासिल थी।
चाणक्य का मानना था कि तन की सुंदरता से अधिक महत्व मन की सुंदरता का होता है। एक स्त्री की सुंदरता उसके रूप से नहीं उसके गुणों से होती है। एक रूपवान स्त्री एक गुणवान स्त्री से कहीं बेहतर होती है और एक बहुत अच्छी जीवन संगिनी बनती है। ऐसे विचार रखने वाले आचार्य चाणक्य ने एक ब्राह्मण पुत्री से विवाह किया जिसका नाम यशोधरा था। वो भले ही बहुत अधिक सुंदर नहीं थी परंतु उनके गुणों को देखकर चाणक्य ने उनसे विवाह किया।
आचार्य चाणक्य जब तक्षशिला में एक शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे थे उस समय भारत पर सिकंदर ने आक्रमण किया था। उसके आक्रमणों के विषय में ज्ञात होने के पश्चात चाणक्य को ऐसा लगा की अब उचित शासन के द्वारा इस भारत की एकता और अखंडता को सुरक्षित करना आवश्यक है। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने उस समय एक अखंड स्वराष्ट्र की कल्पना की थी। इसके लिए उन्होंने कई राजाओं से सहायता मांगी परंतु उन्हें कहीं से भी सहायता नही मिली।
उसकाल में पाटलिपुत्र उस समय का सबसे बड़ा और शक्तिशाली राज्य था। पाटलिपुत्र की गद्दी पर उस समय नंद वंश का शासक धनानंद आसीन था। वो भोग विलास में लिप्त एक स्वेच्छाचारी शासक था जिसके प्रजा के हित और कल्याण से कोई लेना देना नही था। उसने अपने राज्य का शासन चलाने के लिए अपनी प्रजा पर कठोर कर लगा रखे थे। जनता उसके कुशासन और अत्याचारों से ग्रसित थी। आचार्य चाणक्य अपने अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए धनानंद के पास सहायता के लिए आए तथा उन्हें अपनी प्रजा के कष्टों से भी अवगत कराना चाहा परंतु धनानंद को उनकी बातें नहीं भायी और उसने उनके रूप-रंग का मजाक बना कर उन्हे अपमानित किया और वहां से धक्के मार कर निकल दिया। धनानंद के इस व्यवहार से क्रोधित होकर उन्होंने उसी समय यह प्रण लिया कि वे पाटलिपुत्र से नंद वंश को उखाड़ फेकेंगे और धनानंद से अपने अपमान का प्रतिशोध लेंगे और जब तक उनकी यह प्रतिज्ञा पूरी नहीं हो जाती वो अपनी छोटी तब तक खुली रखेंगे।
इसके कारण धनानंद ने अपने सिपाहियों को उन्हे बंदी बनाने का आदेश दे दिया परंतु वे वहा से बच निकले।
पाटलिपुत्र के राजदरबार से धनानंद द्वारा अपमानित होकर निकाले जाने के बाद वे भेश बदलकर यहां वहां घूमने लगे। उसी क्रम में एक दिन उनकी मुलाकात चंद्रगुप्त से होती है जो उस समय एक 9 वर्ष का बालक था। आचार्य उससे काफी प्रभावित हो जाते है तथा अपने अपमान का प्रतिशोध लेने तथा अखंड स्वराष्ट्र के स्वप्न को पूरा करने के लिए चंद्रगुप्त का चयन कर लेते।
चाणक्य चंद्रगुप्त के माता-पिता से अनुमति लेकर उसे अपने साथ ले कर जाते है तथा उसे अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु सक्षम बनाने के लिए प्रशिक्षित करते है। उसे सभी प्रकार की शिक्षा और विद्या प्रदान करते है और एक कुशल और योग्य नेता और एक महाशक्तिशाली योद्धा में परिणत कर देते।
चंद्रगुप्त की सहायता से आचार्य चाणक्य एक सेना तैयार करते है और पहले कुछ असफलताओं का सामना करने के पश्चात अंततः पाटलिपुत्र से नंद वंश को उखाड़ फेंकते है और चंद्रगुप्त धनानंद का वध कर देता।
इस प्रकार चाणक्य अपनी बुद्धिमत्ता और कूटनीतिज्ञ के बल पर अपना प्रतिशोध ले लेते है और पाटलिपुत्र में एक महान मौर्यवंश के शासन की स्थापना करते है। चंद्रगुप्त पाटलिपुत्र का सम्राट बनता है और आचार्य चाणक्य प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो जाते है।
वे पाटलिपुत्र के प्रधानमंत्री के रूप में चंद्रगुप्त का मार्गदर्शन करते रहे और मौर्य साम्राज्य को एक शक्तिशाली साम्राज्य बनने में सहायता की। राजनीति और अर्थशास्त्र के उनके ज्ञान के द्वारा उन्होंने जितने भी नियम बताए उनके द्वार उन्होंने पाटलिपुत्र की प्रजा को एक उचित और सफल राजव्यवस्था प्रदान करने में मौर्यशासकों की सहायता की।
उन्होंने चंद्रगुप्त के राजा बनने के बाद राज्य के शासन को आठ अलग-अलग विभागों में बांट दिया जिससे शासन को चलाने में आसानी हो। उन्होंने चंद्रगुप्त को पुरुष अंगरक्षकों के साथ-साथ स्त्री अंगरक्षकों को भी अपने साथ रखने का आदेश दिया। इसी कारण चंद्रगुप्त इतिहास में स्त्री अंगरक्षक रखने वाले पहले राजा बने। चाणक्य के विचार अद्भुत और दूरदर्शी होते थे और इसीलिए चंद्रगुप्त हमेशा उनके बताए आदेशों का पालन करते थे।
ऐसा कहा जाता कि चंद्रगुप्त की रक्षा करने के लिए वे उसके भोजन में प्रतिदिन अल्प मात्रा में विष मिला दिया करते थे जिससे उसकी विष प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती रहे और कोई भी शत्रु उसे विष देकर न मार पाए। इसके कारण चंद्रगुप्त का शरीर विषैला हो गया था। जब उनकी पत्नी दुर्धारा गर्भवती थी तथा अपनी गर्भावस्था के अंतिम दिनों में थी तो उन्होंने एक दिन चंद्रगुप्त के भोजन के थाली से कुछ भोजन खा लिया था जिसके कारण भोजन में दिया गया विष उन्हे भी प्रभावित कर देता है और विष के कारण वे मूर्छित हो जाती है और कुछ पलों में ही उनकी मृत्यु हो जाती है। इस बात का पता जब चाणक्य को लगता है तो वे तुरंत रानी दुर्धरा का पेट चीर कर उनकी संतान को उनके गर्भ से सुरक्षित बाहर निकल लेते है | चंद्र गुप्त के उस पुत्र नाम बिंदुसार रखा जाता है जो आगे चलकर पाटलिपुत्र का अगला शासक बनता है। चंद्रगुप्त के बाद आचार्य चाणक्य ने बिंदुसार के शासन काल में भी प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला।
उनकी मृत्यु को लेकर भी कई सारी बातें कही जाती है।
इतिहासकारों का मानना है की बिंदुसार के शासन के समय उसके राज दरबार के एक मंत्री ने चाणक्य से ईर्ष्या के कारण बिंदुसार को उनके जन्म की कहानी बताते हुए चाणक्य को उनकी माता की मृत्यु का कारण बताया और उसे चाणक्य के खिलाफ भड़का दिया। अपनी माता की मौत का कारण समझने के वजह से बिंदुसार उन्हे राज्य से चले जाने को कहते है जिससे वे राज्य छोड़कर वन में निवास करने लगते है। उस वन में षड्यंर द्वारा उनकी हत्या कर दी जाती है और इस प्रकार उनकी मृत्यु हो जाती है।
कुछ विद्वानों का कहना है की पाटलिपुत्र राज्य छोड़ने के बाद उन्होंने वन में आत्महत्या कर ली थी। अतः उनके मृत्यु का कोई भी सटीक प्रमाण या जानकारी उपलब्ध नही है।
कौटिल्य या चाणक्य का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में अत्यंत गरीबी का दुःख देखा था परंतु अपने ज्ञान, विचारों और बुद्धिमत्ता से वे एक विशाल साम्राज्य के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे।
उनके नीतियों और विचारों को “चाणक्य नीति” के नाम से जाना जाता है। उन्होंने शासन व्यवस्था को चलाने के नियम बताए है। उनके द्वारा दिए गए नियमों के पालन से किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित की जा सकती है। वे राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्त्र के महान ज्ञाता थे। उन्होंने “अर्थशास्त्र ” नामक एक पुस्तक लिखी थी जिसमे उन्होंने किसी राज्य की अर्थव्यवस्था को चलाने के नियम बताए थे। यह पुस्तक आज भी इस लोकतंत्र के समय में विभिन्न देशों के अर्थव्यवस्था को चलाने में मार्गदर्शन कर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में अर्थशास्त्र विषय के अध्यन में इस पुस्तक की आज भी काफी महत्ता है और छात्रों को इससे पढ़ाया जाता है। आचार्य चाणक्य को भारत में “अर्थव्यवस्था का जनक माना” जाता है। उनका जीवन आज के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। उनकी दी हुई शिक्षा हर व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करती है। उनकी बताई हुई नीतियां आज पुस्तक के रूप में प्रकाशित होती है ताकि जन साधारण तक उनके महान विचारों को पहुंचाया जा सके।
कौटिल्य भारत के इतिहास में एक महान शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, कूटनीतिज्ञ और श्रेष्ठ विद्वान के रूप में जाने जाते है जो आज भी लोगो का मार्गदर्शन कर रहे है और आगे भी करते रहेंगे।
धन्यवाद!
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