भारत जब मुगलों के अधीन था तब उनके अत्याचारों से त्राहि त्राहि करती पीड़ित भारतीयों की रक्षा करने और उन मुगलों को ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए मां भारती के वीर सपूतों ने समय समय पर अपने पराक्रम का परिचय दिया। भारत के शक्तिशाली मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले, मराठा शिरोमणि, छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शौर्य प्रदर्शन से उन मुगलों को लोहे के चने चबवा दिए। उनकी सिंह के समान साहस, बल, निर्भीकता और नेतृत्वता ने उन मुगलों के साम्राज्य को हिला कर रख दिया था। वे न केवल एक वीर योद्धा थे बल्कि एक महान राष्ट्र भक्त, कुशल शासक, हितोपकारी राजा, और एक महानायक थे।
“वीर शिवाजी की गाथा, तुम्हे आज सुनने आई हूं।
भारत के अनमोल रतन की, बात बताने आई हूं।”
उनकी वीरतापूर्ण शौर्यगाथा से भारतीय इतिहास के पन्ने आज भी गौरवान्वित हो रहे है। हम उस सिंहरूपी शिवाजी के वंशज है यह सोच कर ही हर भारतीय की छाती गर्व और अभिमान से चौड़ी हो जाती है और हृदय में वीरता और साहस की चिंगारी कौंध उठती है।
“शूरवीरों की यह धरती, वीर शिवाजी पालनहार,
बुराई जिससे डर कर भागे, ऐसी गूंजी थी हुंकार।
सिंह भी देख पीछे हट जाते,
ऐसे मराठा सरदार,
जिनकी हुंकार सुनकर दुश्मन में,
मचता था हाहाकार।”
छत्रपति शिवाजी महाराज जी का जन्म 19 फरवरी, सन्1630 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के जुन्नार गांव में स्थित शिवनेरी दुर्ग में एक मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोसले और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी शाहजी भोसले था। शिवाजी के पिता बीजापुर के जनरल के पद पर कार्य करते थे जो उस समय दक्कन के सुल्तान के अधिकार में था तथा उनकी माता एक धर्मपरायण नारी थी और ईश्वर में उनकी अपार श्रद्धा भक्ति थी।उन्होंने इसी कारण अपने पुत्र का नाम भी एक स्थानीय देवता “शिवाई” के नाम पर रखा था।
शिवाजी महाराज का लालन पालन उनकी माता के द्वारा हुआ। उनके पिताजी ने एक दूसरा विवाह कर लिया था तथा अपनी पत्नी के साथ कर्नाटक चले गए थे। उनके पिता ने शिवाजी और उनकी मां की देख रेख़ की जिम्मेदारी अपने दुर्ग के देखभाल करने वाले दादोजी काेंड देव को दी थी।
शिवाजी बचपन से ही अपनी मां के साथ रहे और इसलिए उन्हें अपनी मां से बहुत ज्यादा लगाव था। चूंकि उनकी मां एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी अतः इसका प्रभाव शिवाजी पर भी पड़ा। उनकी मां उन्हे बचपन से रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाया करती जिससे उन्होंने उनसे मिलने वाली शिक्षाओं का अनुसरण अपने जीवन में भी किया। वे हिंदू धर्म का भी अत्यधिक सम्मान करते थे।
शिवाजी बचपन से ही एक प्रबुद्ध बालक थे। उन्होंने अपनी माता के कारण बचपन में रामायण तथा महाभारत का पाठ कर लिया था। उनकी देखभाल करने वाले दादोजी काेंडदेव ने उन्हे राजपाट का ज्ञान दिया। उन्हे राजनीति, घुड़सवारी, सैन्य बल इत्यादि की शिक्षा दी। दादोजी कोंडदेव ने ही शिवाजी को हिंदू धर्म के बारे में बताया तथा सिखाया। उन्होंने अपने दुर्ग में रहते हुए बहुत अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए परंतु उन्हे जो भी बताया या सिखाया गया, उन्हे सहृदय सीखा और अपने जीवन में उन शिक्षाओं को अपनाया भी।
शिवाजी 12 वर्ष की आयु में अपनी मां के साथ बैंगलोर चले गए तथा वहा जाकर उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। उनके गुरु का नाम स्वामी रामदास था।
शिवाजी ने अपने जीवन काल में कई शादियां की। उनका पहला विवाह 12 वर्ष की आयु में बैंगलोर में ही साईंबाई से हुआ जिससे उन्हें 4 संताने प्राप्त हुई- संभाजी, रानूबाई, साखुबाई, तथा अंबिका बाई।
शिवाजी की अन्य पत्नियों के नाम सकरवरबाई, पुतलाबाई, सोयराबाई, सगुना बाई शिर्के, काशीबाई जाधव,
लक्ष्मीबाई विचारे, और गुंवंताबाई इंक्ले था।
आगे चलकर उनके पुत्र संभाजी उनके उत्तराधिकारी बने।
17वी शताब्दी की शुरुआत में मराठा वर्ग एक नए योद्धा वर्ग के रूप में उभरा। पुणे के भोंसले परिवार को सैन्य बल तथा अहमदनगर साम्राज्य का राजनीतिक लाभ भी प्राप्त हुआ। उन्होंने एक सशक्त सेना भी तैयार की। उनकी सेना में कई मराठा सरदार, निपुण सैनिक तथा बहुत ही कुशल लड़ाके शामिल हुए।
इस प्रकार शिवाजी के पास भी एक शक्तिशाली सेना थी।
टोरना विजय- शिवाजी ने अपना प्रथम युद्ध 15 वर्ष की आयु में लड़ा। उन्होंने टोरना के किले पे अपना अधिकार प्राप्त किया तथा इस प्रकार अपने शासन के शुरुआत की नीव रखी। मराठा सरदार के रूप में यह उनकी पहली विजय थी।
कोंडना का किला नीलकंठ राव के नियंत्रण में था। इस किले को जीतने के लिए शिवाजी के सेनापति तानाजी मलसूरे और किले की रक्षा करने वाले उदयभान राठौर के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में तनाजी मारे गए परंतु यह किला शिवाजी के अधिकार में आ गया।
इसके पश्चात इन्होंने राजगढ़ के किले में भी अपनी विजय का परचम लहराया और उसे अपने अधिकार में ले लिया।
शिवाजी की बढ़ी हुई शक्ति और प्रतिष्ठा को देख कर बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता शाहजी को कैद कर लिया था। शिवाजी ने सुल्तान को कोंडाना का किला वापस कर दिया और अपने पिता को उनकी कैद से छुड़वा लिया पर कुछ समय बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो जाती है।
बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के खिलाफ 1659 में एक और बड़ी योजना रची जिसमे शिवाजी के खिलाफ अफजल खान की एक बोहोत बड़ी सेना भेज दी परंतु शिवाजी ने अपने अद्भुत पराक्रम का परिचय देते हुए अपनी चतुराई से उनकी विशाल सेना को भी हरा दिया तथा तथा बीजापुर के सुल्तान को भी प्रतापगढ़ में परस्त कर दिए। शिवाजी से हारने के बाद बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के द्वारा जीते हुए सभी क्षेत्रों के स्वतंत्र अधिकार उन्हे ही सौप दिया। बीजापुर की विजय के बाद शिवाजी की सेना और भी अधिक शक्तिशाली हो गई। शिवाजी ने पुरंदर और जवेली की हवेली को भी जीत लिया था।
शिवाजी महाराज अपने सैन्य बल और अपनी युद्ध कुशलता के बल पर लगातार विजय श्री प्राप्त कर रहे थे। उन्होंने कई किलों पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। अब उनका सामना मुगलों के साथ भी हुआ। उनके समकालीन मुगल शासक औरंगजेब था। मुगलों से शिवाजी की दुश्मनी काफी गहरी थी।
औरंगजेब ने शिवाजी के खिलाफ शाइस्ता खान की एक बड़ी देना भेजी जिसने पुणे पर कब्जा कर लिया। शिवाजी ने उनकी सेना पर रात्रि में अचानक वार किया और कई मुगल सैनिकों को मार गिराया जिससे शाइस्ता खान शिवाजी से डर कर भाग खड़ा हुआ।
औरंगजेब ने शिवाजी के खिलाफ दुबारा षडयंत्र रचा और अंबर के राजा जय सिंह तथा दिलीर सिंह को शिवाजी के खिलाफ कर दिया। उन्होंने शिवाजी के साथ युद्ध किया तथा जयसिंह ने शिवाजी द्वारा जीते हुए सारे किलों पर अपना अधिकार जमा लिया और पुरंदरपुर में शिवाजी को भी परास्त कर दिया जहा शिवाजी और मुगलों के बीच एक समझौता हुआ जिसमे शिवाजी को उनके 23 किले वापस करने के बदले में औरंगजेब ने बीजापुर के खिलाफ होने वाले मुगलों के युद्ध में शिवाजी की सहायता ली। इस समझौते को “पुरंदर की संधि” के नाम से भी जाना जाता है।
शिवाजी ने बीजापुर के खिलाफ हुए युद्ध में मुगलों का साथ दिया परंतु मुगलों ने उन्हे धोखा दिया और शिवाजी तथा उनके पुत्र संभाजी को जेल में बंद कर दिया। अपने साथ हुए इस धोखे से शिवाजी का खून खौल उठा। वे अपने बेटे के साथ आगरा के किले से बाग निकले तथा उन्होंने अपनी शक्ति को पुनः संगठित किया और मुगलों पर पूरी शक्ति से हमला किया। इस पार उनके पराक्रम के सामने मुगल सेना नहीं टिक पाई और अंततः औरंगजेब ने अपनी हार मान ली और शिवाजी को राजा के रूप में स्वीकार कर लिया।
सन 1674 में शिवाजी पूरे सम्मान के साथ पूरे महाराष्ट्र के राज बने।
शिवाजी ने मुगलों को परास्त करने के बाद 1674 में महाराष्ट्र में अपने हिंदू साम्राज्य का स्थापना की, परंतु शिवाजी कुर्मी जाति के थे जिसे उस समय शुद्र माना जाता था। इस कारण से किसी भी ब्राह्मण से उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया। शिवाजी ने बनारस से भी ब्राह्मण बुलवाए परंतु उन्होंने भी पहले माना ही कर दिया पर शिवाजी ने उन्हे अधिक धन देकर उन्हें मना लिया और इस प्रकार उनका राज्याभिषेक भी संपन्न हुआ। शिवाजी ने राज्याभिषेक के बाद “छत्रपति” की उपाधि धारण की।
शिवाजी के राज्याभिषेक के मात्र 12 दिनों के बाद ही उनकी माता जीजाबाई चल बसीं। अपनी माता के जाने के बाद काफी शोकग्रस्त हो गए थे। वे बचपन से ही अपनी माता से काफी जुड़े हुए थे, परंतु शिवाजी के पास नवस्थापित साम्राज्य की शासन व्यवस्था संभालने का कार्यभार था। अतः उन्होंने स्वयं को मजबूत बनाया और अपने कर्तव्यों का वहन करना प्रारंभ किया। उन्होंने दुबारा अपना राज्याभिषेक कराया तथा इस बार इसका आयोजन अत्यधिक भव्य तरीके से कराया।
शिवाजी एक कुशल योद्धा होने के साथ साथ एक महान राजा भी थे। उन्होंने अपनी प्रजा को सारी सुविधाएं प्रदान की। उन्होंने अपनी राज्य में कर प्रणाली में कठोरता नहीं दिखाई। वे हमेशा ब्राह्मणों, बच्चों तथा स्त्रियों की रक्षा तथा उनके उत्थान के लिए कार्य किया करते थे। उन्होंने समाज में व्याप्त कई कुप्रथाओं के प्रचलन पर भी रोक लगा दी थी।
शिवाजी के पास एक विशाल और शक्तिशाली सेना थी तथा वे अपनी सेना की सारी जरूरतों का ध्यान भी भली प्रकार से रखते थे। एक पिता की भांति अपनी सेना का संचालन और देखभाल करते थे।
शिवाजी अपने धर्म के साथ साथ दूसरे धर्मों का भी आदर करते थे। वे धर्म परिवर्तन से सख्त खिलाफ थे। मुगलों द्वारा कराए जाने वाले इस्लामिक धर्मपरिवर्तन से उन्होंने कई लोगो की रक्षा की। मुगलों के अत्याचारों से पीड़ित लोगो के लिए वे मसीहा बन कर उभरे।
शिवाजी ने अपने राज्य में अपने नाम के सिक्के भी जारी करवाए।
शिवाजी ने अपने अपने सैन्य बल में नौ सेना को भी शामिल किया। उन्होंने एक शक्तिशाली नौसेन का गठन किया तथा उसे समुद्र में तैनात किया हर समय बाहरी आक्रमणों से राज्य की सुरक्षा करती थी।
शिवाजी एक कुशल रणनितिज्ञ थे। उन्होंने एक ऐसी युद्ध कला तथा कूटनीति का निर्माण किया था जिसके अंतर्गत किसी साम्राज्य में बिना किसी सूचना के आकस्मिक रूप से हमला किया जा सकता था और उस शासक को अपनी गद्दी भी छोड़नी पड़तीl इस नीति को “गनिमी कावा” के नाम से जाना जाता है।
शिवाजी ने अपने राज्य और अपनी प्रजा को एक प्रभावी शासन व्यवस्था प्रदान की और शक्तिशाली मराठा साम्राज्य की स्थापना की।
शिवाजी अपने गुरु स्वामी समर्थ रामदास जी का अत्यधिक सम्मान करते थे। उनके लिए उनकी भक्ति भावना भी अपार थी। उन्होंने अपने गुरु जी को परली का किला भेंट कर दिया था जिसे आगे चलकर सज्जनगढ़ के नाम से जाना गया।
उनकी गुरु भक्ति से संबंधित एक कथा प्रचलित है जिसमे ऐसा कहा जाता है की “एक बार शिवाजी ने अपने गुरु को उनके ही राज्य में भिक्षा मांगते हुए देखा जिससे वे काफी दुखी हो गए तथा तुरंत अपने गुरु को अपने महल ले गए उनकी सेवा सत्कार किया तथा उन्हें भिक्षा न मांगने का अनुरोध किया। शिवाजी अपना सम्पूर्ण साम्राज्य भी उनके नाम करने को तैयार थे परंतु उनके गुरु एक संन्यासी थे इसीलिए उन्होंने उनके राजपाट को स्वीकारने से मना कर दिया तथा शिवाजी को अपने वस्त्र का एक टुकड़ा फाड़ कर दिया और उसे अपने राज्य का राष्ट्रीय ध्वज बनाने को कहा जो हमेशा उनके आशीर्वाद की तरह शिवाजी के साथ रहेगा। शिवाजी ने उनकी बात मानकर उसे अपना ध्वज बनाया तथा उनके साम्राज्य का ध्वज नारंगी रंग का कर दिया।” इससे उनकी अद्भुत गुरु भक्ति का प्रमाण मिलता है।
शिवाजी एक बेहद कुशल शासक थे, परंतु अपने राजकाज के कार्यों में व्यस्त रहने तथा कई लड़ाई करने के पश्चात वे कमजोर और बीमार पड़ चुके थे। उनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। लगभग 3 हफ्तों तक बीमार रहने के बाद 3 अप्रैल 1680 के दिन उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। मृत्यु के समय उनकी आयु केवल 50 वर्ष की थी। उन्होंने अपने राज्य का भर अपने पुत्र संभाजी को सौंप दिया था जिसने उनकी मृत्यु के बाद उनके साम्राज्य को बड़ी कुशलता से संभाला।
छत्रपति शिवाजी महाराज भारत की शान है। उनसे हर भारतीयों में बल और शक्ति का संचार होता है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे तथा हर युवा के लिए वे आज भी एक प्रेरणा स्त्रोत है। मराठा समुदाय उन्हे आज भी एक गुरु की भांति पूजता है और उनका सम्मान करता है। उन्होंने भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
शिवाजी महाराज अपने कार्यों के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने हमेशा ही लोगो की सहायता की है। उन्होंने एक अच्छे राजा, एक निपुण युद्ध, कुशल सेनापति, एक राजनीतिज्ञ और एक देशभक्त के रूप में अपने सभी कर्तव्यों का पालन किया।
उनकी जीवन गाथा सभी को यह सीख देती है की स्वयं को सशक्त बनाए और अपने शक्ति और ज्ञान के बल पर अपने जीवन का निर्वहन कर। अपने जीवन को श्रेष्ठता की उच्चतम सीमाओं तक ले जाए और अपने सभी कर्तव्यों का पालन करे। उन्होने यह सिखाया है की किसी से डर कर नहीं बल्कि सिंह की भांति डट कर उसका सामना करना चाहिए। वे हमेशा भारतीयों के हृदय में जीवित रहेंगे आज भी 19 फरवरी को उनकी जयंती काफी धूमधाम से मनाई जाती है।
मां भारती के इस वीर सपूत को शत शत नमन।
“भारत के वे सच्चे सपूत,
परमवीर साहसी और बुद्धिमान,
मराठा साम्राज्य की स्थापना की,
ये है छत्रपति शिवाजी महान।”
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