भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इस देश के संचालन में राजनैतिक पार्टियों तथा राजनेताओं की अहम भूमिका है। उन्होंने आजादी के पहले से ही देश के उत्थान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन महान राजनेताओं और कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों और उनके विचारों से भारत को उचित मार्ग और नई दिशा मिलती आई है जिसपर अग्रसर होकर देश उन्नति और प्रगति की ऊंचाइयों तक पहुंच पाया। हमारे देश के ऐसे ही एक महान विचारक, लेखक, बुद्धिजीवी, स्वयंसेवक और कर्मठ राजेनता है पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी जिन्होंने अपने जीवन को देशहित के कार्यों में समर्पित कर दिया। उन्होंने हिंदुत्व की रक्षा के लिए, इस हिंदू राष्ट्र के लिए और इस राष्ट्र के लोगो के हितों के लिए सदैव ही कार्य किया है और दुसरो को भी प्रेरित किया।
प्रारंभिक जीवनकाल:-
दीन दयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तरप्रदेश के मथुरा में स्थित चंद्रभान नामक ग्राम के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री भगवतीप्रसाद उपाध्याय था जो जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर का कार्य किया करते थे तथा उनकी माता का नाम श्रीमती रामप्यारी था। उनके दादाजी एक ज्योतिषी थे जिनका नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था। दीनदयाल जी का एक छोटा भाई था जिसका नाम शिवदयाल उपाध्याय था। वे अपने छोटे से परिवार के साथ रहते थे।
बहुत छोटी से उम्र में ही उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया था। 1918 में जब वे केवल ढाई वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गई और उसके कुछ समय बाद किसी बीमारी के कारण उनकी मां भी चल बसी। दीनदयाल तथा उनके छोटे भाई का लालन पालन उनके ननिहाल में उनके नाना चुन्नीलाल जी ने किया। 10 वर्ष की आयु तक उनके नानाजी भी चल बसे। अपने परिवारजनों को एक एक कर खो देने के पश्चात उनका अपना केवल छोटा भाई ही उनके साथ रह गया था। वे दोनो अपने मामा के साथ रहते थे परंतु 1934 में उनके छोटे भाई की भी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई।
पंडित दीनदयाल जी ने अल्पायु में ही अपने परिवारजनों और प्रियजनों से बिछोह का दुख भोग लिया था। उन्होंने अपने अकेलेपन से संघर्ष करते हुए अपने जीवन के अन्य कठिनाइयों का डट कर सामना किया तथा अपने जीवन को उचित मार्ग पर चल कर सफल बनाया।
शिक्षा :-
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सीकर के हाई स्कूल से ग्रहण की तथा अपनी इंटरमीडिएट की पढ़ाई पिलानी के जी डी बिड़ला कॉलेज से पूरी की। उन्होंने स्नातक की पढ़ाई कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धार्मिक कॉलेज से पूरी करके अपनी बी ए की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एम ए की पढ़ाई करने के लिए आगरा के सेंट जॉन कॉलेज में दाखिला लिया था पर वे अपनी पढ़ाई पूरी नही कर पाए।
उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा भी उत्तीर्ण की परंतु उनका मन समाजसेवा के कार्यों में लगा रहता था इसलिए उन्होंने वो नौकरी भी नहीं की।
समाजसेवा की ओर :-
दीन दयाल उपाध्याय जी 1937 में अपने एक कॉलेज के मित्र बलवंत महाशब्दे के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े जिसकी स्थापना भीमराव अंबेडकर जी ने की थी। उन्होंने इस संघ से जुड़ने के बाद स्वयं को संघ के कार्यों में पूरी तरह समर्पित कर दिया। उन्होंने नागपुर में आयोजित 40 दिवसीय ग्रीष्मकालीन आरएसएस शिविर में हिस्सा लिया और प्रशिक्षण ग्रहण किया जिसके बाद वे 1955 से उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिले से प्रचारक के रूप में कार्यरत रहे।
1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के स्वभाव, उनके व्यवहार तथा उनके विचारों से श्यामा प्रसाद जी काफी प्रभावित थे तथा उनकी कार्यकुशलता के कारण दीनदयाल जी को सबसे पहले पार्टी के उत्तरप्रदेश शाखा का महासचिव और आगे चलकर अखिल भारतीय महासचिव के पद पर नियुक्त कर दिया। 1953 में श्यामाप्रसाद जी के देहांत के बाद इस पार्टी का कार्यभार भी दीनदयाल जी ने ही संभाला। उनके संचालन में भारतीय जनसंघ पार्टी एक राष्ट्रीय दल में परिवर्तित हो गई जिसकी अध्यक्षता भी उन्होंने ही की।
पंडित दीनदयाल जी एक राजनेता के रूप में भारतीय जनसंघ पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार के रूप में भी खड़े हुए पर उन्हें सफलता नहीं मिली।
दीनदयाल जी ने एक स्वयं सेवी, एक कार्यकर्ता और एक राजनेता की भूमिका बड़े ही कुशल ढंग से निभाई।
दीनदयाल जी की प्रमुख कृतियां:-
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक प्रभावशाली लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई रचनाएं भी लिखी जो सभी के लिए पथ प्रदर्शक के समान है। उनकी कुछ प्रमुख कृतियां निम्नलिखित है:-
पांचजन्य (साप्ताहिक समाचार पत्र), स्वदेश (दैनिक समाचार पत्र), चंद्रगुप्त मौर्य (नाटक), आरएसएस के संस्थापक डॉ के बी हेडगेवार (जीवनी)।
प्रमुख साहित्य :- सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, जगत गुरु शंकराचार्य,
अखंड भारत क्यों?, राजनीतिक डायरी, राष्ट्र जीवन की समस्याएं, भारतीय अर्थनीति: विकास की दिशा, राष्ट्र चिंतन और राष्ट्र जीवन की दिशा इत्यादि।
दीनदयाल जी की मृत्यु :-
पंडित दीनदयाल जी की मृत्यु की घटना कुछ रहस्यमयी तरीके से घटित हुई हुए थी। भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष बनने के केवल 43 दिनों के बाद 11 फरवरी 1968 की सुबह उत्तरप्रदेश के मुगलसराय स्टेशन के पास उनका मृत शव पाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि “वे बजट सत्र के लिए ट्रेन से पटना के लिए जा रहे थे परंतु लुटेरों के हमले के कारण उनकी बोगी ट्रेन से अलग हो गई थी और उनकी हत्या भी उन लुटेरों के द्वारा ही की गई।”
इस बात की सच्चाई कितनी है ये अब भी कोई नहीं जानता और उनकी मृत्यु का कारण भी एक रहस्य बन कर रह गया ।
उनकी मृत्य के पश्चात अपने देश के इस महान नेता को सभी ने नम आंखों से श्रद्धांजलि अर्पित की।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के सम्मान में उत्तरप्रदेश के मुगलसराय स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन रखा गया है। कई सार्वजनिक संस्थाओं का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है ।
निष्कर्ष :-
पंडित दिन दयाल उपाध्याय जी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने अपने परिवार जनों का साथ भी अल्पायु में ही खो दिया परंतु जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करते हुए उन्होंने अपने व्यक्तित्व के प्रभावी गुणों, अपनी क्षमता, अपने कठिन परिश्रम और कर्मठता के बल पर अपने जीवन गाथा को महान बना लिया।
वे इस देश के प्रसिद्ध राजनेता, लेखक, विचारक, दार्शनिक और युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने। उन्होंने अपने राष्ट्र और अपने लोगो के हितों के लिए जीवनपर्यंत कार्य किया और देश को प्रगति के मार्ग पर ले जाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उनके विचार आज भी इस देश के प्रत्येक नागरिक को अपने देश के लिए, देश वासियों के लिए और मानवता के कल्याण के लिए सच्ची निष्ठा और पूरी लगन से समर्पित होकर कार्य करने की शिक्षा प्रदान करती है। वे आज भी अपने उच्च विचारों के रूप में हमारे बीच मौजूद है और भले ही वे आज जीवित न हो परन्तु वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे।
“जब स्वभाव को धर्म के सिद्धांतों के अनुसार बदला जाता है तब हमे संस्कृति और सभ्यता प्राप्त होती है ।”
— पंडित दीनदयाल उपाध्याय।
धन्यवाद।