संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरणवेत्ता हुए हैं महर्षि पाणिनि जी। संस्कृत भाषा के व्याकरण का निर्माण इन्होंने ही किया था।
हमारे देश में जितनी भी भाषाएं बोली जाती हैं सभी की उत्पत्ति या शुरुआत संस्कृत से ही हुआ है, और उस संस्कृत भाषा को व्याकरण रूपी संबल प्रदान कर पाणिनि जी ने ही उसे और आसान बना दिया।
अष्टाध्यायी उनकी एक ऐसी में रचना थी जिसमें उन्होंने संस्कृत व्याकरण के नियमों को संकलित किया है।उनकी यह रचना केवल एक ग्रंथ मात्र नहीं है बल्कि ये तत्कालीन समाज के कई परिस्थितियों को भी दिखलाता है जिनका वर्णन पाणिनी जी ने अपनी रचना में किया है।कहने को तो यह एक ग्रंथ है जिसमें आठ अध्याय है पर इसे पढ़ना बहुत ही जटिल है क्योंकि उनकी यह रचना संपूर्ण रूप से संस्कृत में लिखी गई है। आगे जाकर इसे सरल भाषा में परिवर्तित कर इसे और आसानी से समझने का प्रयास किया गया ताकि जन साधारण तक इसमें निहित ज्ञान पहुंच सके। यह पुस्तक केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हुआ तथा वहां के लोग भी इस बात को जान पाए की संस्कृत जो हमारे सनातन धर्म की प्राचीनतम भाषा है वो कई भाषाओं की जननी है। महर्षि पाणिनि जी एक महान विद्वान थे जिन्होंने अपनी इस रचना के माध्यम से अपना नाम सदा के लिए अमर कर लिया।
पाणिनि जी का जन्म आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व काबुल नदी और सिंधु नदी के संगम के कुछ दूर स्थित एक गांव जिसका नाम शलातुर था, में रात के समय में हुआ था। यह स्थान वर्तमान समय में पाकिस्तान में स्थित है। शलातुर गांव में जन्म लेने के कारण पाणिनी जी को “शालातुरीय” के नाम से भी जाना जाता था। जिस गांव में उनका जन्म हुआ आगे जाकर उस पाकिस्तान के गांव का नाम पाणिनि ही रख दिया गया था। उनकी माता का नाम दाक्षी तथा पिता का नाम पाणिन था। पाणिनि जी को “दक्षि पुत्र” भी कहा जाता था।
संस्कृत भाषा के आचार्य महर्षि पाणिनि के जीवन के बारे में बहुत अधिक ज्ञात नहीं होता। उनके बारे में बहुत कम ही जानकारियां उपलब्ध है। महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाभाष्य से उनके बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध होती है।
दाक्षी पुत्र महर्षि पाणिनि की जन्म तिथि एवम जन्म स्थान को लेकर कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। महर्षि पाणिनि के विचारों की बात की जाए तो एक और से उनके विचारों में वैज्ञानिकता देखी जा सकती है। उन्होंने अपने समय में प्रचलित संस्कृत भाषा और अन्य उपभाषाओं का सुक्ष्म विश्लेषण करके, वेदों और वेदांगों में लिखी भाषा की जांच करके पूरी लगन, एकाग्रता और निष्ठा के साथ अनुसंधान करके उन्होंने संस्कृत भाषा को व्याकरण के सूत्रों और नियमों के बांधने का कार्य सफलता पूर्वक किया है।
उनकी सोच की नवीनता और भिन्नता के कारण ही वे इस कार्य को कर पाने में सफल हो पाए।
उनकी इस उत्कृष्ट रचना के कारण भाष्यकार ने उन्हे कई उपाधियां भी प्रदान की है जैसे :- प्रमाणभूत आचार्य, माङ्गलिक आचार्य, सृहृद, इत्यादि।
उन्हे संस्कृत भाषा का व्याकरण विज्ञानी भी कहा जाता है तथा उन्होंने अपनी रचना के कारण अत्यंत प्रसिद्धी प्राप्त की।
पाणिनि जी मुख्य रूप से अपने अष्टाध्यायी के कार्य से जाने जाते है। लोगों का ऐसा मानना है कि इसे समझना बहुत ही कठिन है क्योंकि जिस प्रकार से इसकी रचना की गई है एक साधारण पुरुष इसको ना समझ सकता है ना इसका निर्माण कर सकता है। इसे समझने वाला बहुत बड़ा बुद्धिजीवी होगा, ऐसा उस समय माना जाता था, जिसके कुछ समय बाद ही इसको सरल भाषा में अनुवादित किया गया ताकि सब इसे समझ सके।जब तक अन्य भारतीय विद्वानों द्वारा इसे सरलतम रूप में लिखा गया तब तक यह अन्य देशों तक पहुंच गया था और इसे पढ़कर अधिकतम वैज्ञानिक यह ऐलान कर चुके थे कि इसे समझ पाना वाकई कठिन है और संस्कृत भाषा को ही सभी भाषाओं की माँ माना जाता है। इस ग्रंथ में आठ अध्याय है तथा प्रत्येक अध्याय में 4 पद है। इस पुस्तक में संस्कृत भाषा से जुड़े महत्वपूर्ण नियमों का उल्लेख किया गया है जो संस्कृत सीखने में सहायक सिद्ध होता है।
स्वामी विवेकानंद जी को कितने पढ़ना अत्यंत पसंद था। यूं तो उनके बारे में कहा जाता है कि वह जब कोई किताब देखते हैं तो देखते ही उस किताब को समझ जाते हैं कि उस किताब में क्या होगा परंतु उनके बारे में यह कहा जाता है कि जब उन्होंने पाणिनि जी की रचना अष्टाध्यायी को पढ़ा तो वह एक बार में देख कर उसे समझ नहीं पाए और उन्हें समय लगा पहली बार किसी किताब को पूर्ण रूप से पढ़ने में, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी जैसे बुद्धिजीवी होकर भी उस रचना को समझन न पाना मतलब उस रचना का मूल्य कितना अधिक होगा कि बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी भी उसका मूल्य चुका ना पाया।
मुख्य रूप से इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है और वह भाषा इतनी सटीक संस्कृत के साथ लिखी गई है कि इसे समझ पाना किसी के लिए भी बहुत कठिन है। बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी भी इसे समझने में समय लेता है। संस्कृत का संपूर्ण रूप से ज्ञान शायद ही किसी को हो, इसी कारण से उस रचना को समझने में सभी बुद्धिजीवियों को समय लगा। अंत में सभी ने मान लिया कि इससे बड़ा रचना कोई हो नहीं सकता, एवं संस्कृत सभी भाषाओं का निर्माण स्रोत है।
वह भाषा जिसके प्रयोग से हम अपने आत्मा को परमात्मा से जोड़ सकते हैं, मंत्रों के पाठ करने के लिए भी संस्कृत भाषा का प्रयोग किया जाता है, गणित एवं संगीत का निर्माण भी संस्कृत भाषा से किया जाता है, सभी महा ग्रंथ चाहे वह गीता हो या कोई और सभी संस्कृत भाषा में ही मौजूद है, संस्कृत एक ऐसा भाषा है जिसको भगवान की भाषा कहां जाता है।
मान्यताओं के अनुसार महाऋषि पाणिनि जी को भगवान शिव ने सपने में आकर संस्कृत भाषा का ज्ञान प्रदान किया एवं वह सारा पाठ पढ़ाया है जिससे वह अपनी रचना अष्टाध्यायी कर सके, और तो और उन सभी बिंदुओं से अवगत कराया जिसकी सहायता से वह संस्कृत भाषा के व्याकरण के निर्माण को संभव बना पाए।
पाणिनि जी ने अपनी रचना अष्टाध्यायी में संस्कृत से संबंधित प्रत्येक नियमों को विस्तारपूर्वक समझाने की कोशिश की है कि हमें संस्कृत का प्रयोग किस प्रकार से करना चाहिए, किस की सहायता से हम गणित को समझ सकेंगे, गीत-संगीत का निर्माण कर सकेंगे, अन्य भाषाओं का भी निर्माण कर सकेंगे, गीता हो या वेद वह सभी महा ग्रंथों को संस्कृत भाषा की सहायता से आसानी से समझ पाएंगे। इन्ही बिंदुओं को मद्देनजर रखते हुए पाणिनि जी ने अष्टाध्यायी का निर्माण किया था। इस ग्रंथ के प्रथम और द्वितीय अध्याय में संज्ञा एवम् परिभाषा संबंधी नियम और सूत्र दिए गए हैं साथ ही साथ किया और संज्ञा शब्दों के पारस्परिक नियामक प्रकरणों का उल्लेख किया गया है।इसके तीसरे, चौथे और पांचवें अध्याय में सभी प्रकार के प्रत्ययों का विधान एवम् उनसे संबंधित सूत्र बताया गया है।
महर्षि पाणिनि की यह रचना अद्वितीय मानी गई है। उन्होंने अपने समय के संस्कृत भाषा का अच्छे से अध्ययन करके उसकी बारीकियों पर ध्यान देकर इस व्याकरण शास्त्र की रचना की है। उनसे पहले भी कई संस्कृताचार्यो ने संस्कृत भाषा को व्याकरणीय सूत्रों और नियमों में बांधने का प्रयत्न किया था परंतु उन्हें उतनी सफलता प्राप्त नहीं हुई। पाणिनी द्वारा की गई इस रचना को सर्वमान्यता प्राप्त हुई।
आज के समय में ये इतना लाभदायक बन गया है कि हर एक वैज्ञानिक हो या कोई व्यक्ति हर कोई इसका प्रयोग करता है। उनके उस रचना में शुरुआत में हमें और बिंदुओं पर भी ध्यान देने को सिखाया गया है जैसे ध्वनि कैसे उत्पन्न की होती है यह बताया गया है। हमें उन बिंदुओं पर ध्यान देना सिखाया जाता है जो यह बताता है कि हर एक शब्द कितना महत्वपूर्ण होता है। एक एक शब्द से एक वाक्य बनता है, फिर चाहे उन शब्दों अलग कर दिया जाए सबका अपना-अपना एक अर्थ होगा और अर्थ में एक अलग वजन होगा। फिर हमें मिलता है सभी अक्षरों को एक साथ रखा गया है जिसे देखकर हम यह समझ पाएंगे कि किस तरह के अक्षरों को प्रयोग करके हम वाक्य का निर्माण कर सकते हैं। इस बिंदु को सीखने के बाद हम शब्द का निर्माण खुद कर पाएंगे। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि कैसे पाणिनि जी ने अष्टाध्यायी में संस्कृत भाषा के हर एक बिंदुओं को समझाया है एवं संस्कृत से अन्य भाषाओं का निर्माण एवं गीत संगीत गणित आदि का निर्माण कैसे हुआ हम उसे पढ़कर समझ सकते हैं।
एक समय तक जब अष्टाध्यायी समझ पाना सभी लोगों के लिए कठिन हो गया था तो महर्षि पतंजलि ने उसे सरल भाषा में समझाने का प्रयत्न करते हुए महाभाष्य का निर्माण किया जिससे पढ़कर हम यह समझ सकते है कि संस्कृत भाषा से क्या हो सकता हैं। महर्षि पतंजलि के इस कार्य से विश्व भर के लोगों को बहुत सहायता मिली क्योंकि इसके माध्यम से अष्टाध्यायी में वर्णित नियमों और सूत्रों को आसान भाषा में समझ पाना संभव हो पाया क्योंकि महर्षि पाणिनि ने को संस्कृत भाषा अपनी कृति में प्रयोग की है वो थोड़ी कठिन है। महर्षि पतंजलि की कृपा है जिनकी रचना के कारण संस्कृत भाषा के इस महा ग्रंथ को समझना आसान हो गया।
सभी बिंदुओं को समझ कर देखे तो पाएंगे कि भाषाओं का निर्माण संस्कृत से ही हुआ है फिर वह गीत हो संगीत हो या गणित हो या धर्म ग्रंथ हो सभी का निर्माण संस्कृत से ही होता है। संस्कृत के व्याकरण का निर्माण करके पाणिनी जी ने एक अद्वितीय कार्य किया है। उनके कारण ही आज हम अपनी भावनाओं को किसी भी भाषा में व्यक्त कर सकते हैं और तो और गीत-संगीत गणित आदि सभी चीजों का निर्माण में प्रयोग कर सकते हैं।
पतंजलि जी के कारण पाणिनि जी के रचना को समझने में हमें आसानी हो गई। इसकी सहायता से हम कई उपदेश जैसे धर्म ग्रंथ हो या गीत हो संगीत हो या भाषा हो या गणित का निर्माण स्वयं कर सकते हैं।
इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि संस्कृत भाषा की कीमत कितनी अधिक है जिसने भाषा के निर्माण के साथ-साथ कई कल्याणकारी कार्य में अपना योगदान दिया जैसे धर्म ग्रंथों का निर्माण हो गीत संगीत का निर्माण एवं भाषाओं का निर्माण किया।
यह सब हो पाया महाऋषि पाणिनि जी के कारण जिनको हमें धन्यवाद देना चाहिए। उनके कारण ही आज हम यह सब कार्य कर पा रहे हैं।
यह थे महाऋषि पाणिनि जी से जुड़े कुछ बातें। इसे पढ़कर हम यह समझ सकते हैं कि उनकी क्या भूमिका रही थी संपूर्ण भारत के लिए।
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