अखंड भारत के निर्माण का स्वप्न बहुत पहले ही देखा जा चुका था और इस स्वप्न को साकार करने में कई लोगो ने अपना खून पसीना एक कर दिया। कई वर्षों के दासता के बंधन को तोड़ भारत ने स्वतंत्रता को आलिंगन किया। परंतु हमारे भारत को सही मायने में एक खंडित भूभाग से एक अखंड और एकीकृत राष्ट्र बनाने का श्रेय जिस महानुभाव को जाता है, वे हैं “सरदार वल्लभ भाई पटेल”। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दल के एक महान नेता थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा स्वतंत्रता के पश्चात भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और अपनी दूरदर्शिता के द्वारा नवनिर्मित स्वतंत्र भारत के संचालन में भी अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया। उनके आदर्श विचार, उनकी प्रगतिवादी सोच, उनके निर्णय लेने और समस्या समाधान की कला तथा उनकी कुशल नेतृत्वकारिता उन्हें तथा उनके जीवन गाथा को महान बनाती है।
“दुनिया का हर शोक आज तक किसी ने नही पाला,
मूर्ख है वो इंसान जिसने कांच के खिलौने को उछाला,
सिर्फ मेहनत करने से ही होती है मुश्किलें आसान,
एक अच्छे नेता ने कभी कोई काम तकदीर पर नहीं टाला।”
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31अक्टूबर 1875 के दिन वर्तमान भारत के गुजरात राज्य के नडियाद में लेवा पटेल अर्थात पाटीदार जाति के एक समृद्ध जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल तथा माता का नाम श्रीमती लडबा देवी था। वे अपने माता पिता की चौथी संतान के रूप में पैदा हुए और उनके तीन बड़े भाई थे जिनका नाम था सोमाभाई पटेल,नरसी भाई पटेल तथा विट्ठल भाई पटेल। उनका एक छोटा भाई था जिसका नाम काशीभाई पटेल और एक छोटी बहन थी जिसका नाम डाबीहा था। इन पांच भाई बहनों में उनकी बहन सबसे छोटी थी। उनके माता पिता दोनो ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे तथा उनके पिता ने अपने 55 वर्ष होने के पश्चात अपने जीवन का शेष समय गुजरात में स्वामी सहजानंद जी द्वारा स्थापित स्वामी नारायण पंथ को समर्पित कर दिया जिसके वे परमभक्त रहे थे।
उन्होंने करमसद के प्राथमिक विद्यालय से अपनी शिक्षा प्रारंभ की तथा आगे की पढ़ाई पेटलाद में स्थित उच्च विद्यालय से प्राप्त की। उन्होंने अपनी अधिकांश पढ़ाई स्वाध्याय से ही पूरी की। ज्ञान के अर्जन किए किसी विशेष केंद्र या संस्था पर आश्रित होना आवश्यक नहीं है। उसके लिए तो केवल सीखने की इच्छा, मेहनत करने का दृढ़ संकल्प और सच्ची लगन की आवश्कता होती है। जिस प्रकार एकलव्य ने बिना गुरुकुल गए ही अपने सच्ची लगन और निरंतर प्रयासों के द्वारा गुरु द्रोणाचार्य को केवल शिक्षा देते देख कर ही धनुर्विध्या सीख ली थी उसी प्रकार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी अपनी ज्ञानार्जन की लालसा को अपने लगन द्वारा स्वाध्याय से ही पूरा किया। उन्होंने 22 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा दो वर्षों के बाद जिला अधिवक्ता की परीक्षा भी पास की जिसके पश्चात उन्हे वकालत करने की अनुमति प्राप्त हुई।
उन्होंने 1910 में लंदन जाकर अपनी बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की तथा उन्होंने सभी ब्रिटिश विद्यार्थियों में से सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। लंदन से लौटने के बाद उन्होंने अहमदाबाद में ही अपनी बैरिस्टर की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।
वल्लभ भाई पटेल का विवाह 16 वर्ष की उम्र में गना गांच की रहने वाली एक युवती झावेर बा से हुई। उन दोनो की दो संताने थी। उनकी पुत्री का नाम मणि बेन वल्लभाई पटेल था जिन्होंने आगे जाकर एक स्वतंत्रता सेनानी तथा एक सांसद के रूप में कार्य किया और गांधी जी के आश्रम में रहकर उनको सेवा प्रदान की। उनके पुत्र का नाम दयाभाई पटेल तथा उन्होंने भी आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक सेनानी के रूप में अपना योगदान दिया और 1958 में राज्य सभा के सदस्य के रूप में भी चुने गए। सन 1908 में सरदार पटेल की पत्नी का निधन हो गया जिसके बाद उन्होंने दोनो बच्चों का पालन पोषण किया तथा अपना शेष जीवन एक विदुर बन कर व्यतीत किया।
वल्लभ भाई पटेल ने भारत में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण करके वकालत की आधिकारिक अनुमति प्राप्त कर ली थी। उन्होंने 1900 में गोधरा में एक स्वतंत्र जिला अधिवक्ता कर्यालय की स्थापना भी की। उन्होंने अपने वकालत में अधिक निपुणता पाने के लिए लंदन से बैरिस्टरी की पढ़ाई की। वे फरवरी 1913 में भारत लौट कर आए तथा अहमदाबाद में रहकर अहमदाबाद अधिवक्ता बार में अपराध कानून के अग्रणी बैरिस्टर के रूप में कार्य किया। उन्होंने एक वकील के रूप में अत्यधिक ख्याति प्राप्त की तथा गरीब किसानों के हितों और अधिकारों के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया और गरीब लोगो के हक की रक्षा की।
वल्लभ भाई पटेल ने लंदन से आने के बाद अंग्रेजी उच्च स्तरीय अमीरों के तौर तरीको को अपना लिया था। उच्च स्तरीय जीवन शैली तथा चुस्त अंग्रेजी पहनावा इस्तेमाल किया करते थे। वे अहमदाबाद में स्थित “गुजरात क्लब” के सदस्य भी बन गए थे जो फैशन के लिए विख्यात था।
परंतु 1917 में महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान और उनके विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने उनके अभियान में हिस्सा लिया तथा अपने अंग्रेजी जीवन शैली को छोड़ कर उन्होंने भारतीय तौर तरीकों को अपना लिया। वे साधारण किसानों की तरह ही सादे कपड़े पहनने लगे तथा अपने खान पान के तरीकों को भी बदल लिया।
उन्होंने भले ही अंग्रेजी जीवन शैली से प्रभावित होकर उन्हें अपना लिया था परंतु अपनी मातृभूमि के लिए और अपने देश की संस्कृति के समर्थन के लिए उन्होंने उसे त्याग दिया। अपने भारतीय वेश भूषा और जीवन शैली को अपना लिया। वे अपने देश और देश के लोगो के लिए पूर्णतः समर्पित थे तथा जीवन भर पूरी निष्ठा से उनके लिए कार्य किया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल एक वकील के रूप में भारतीय स्वतंत्र संग्राम के संघर्ष में जुड़े तथा अंग्रेजों से गरीब किसानों के हितों की रक्षा की और ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों का विरोध किया। स्वतंत्र संग्राम में उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य –
1.खेड़ा संघर्ष- सरदार पटेल का पहला महत्वपूर्ण योगदान खेड़ा में किसानों का नेतृत्व कर उन्हे सफलता दिलाने में रहा। वर्ष 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सुखा पड़ने के कारण किसान अंग्रेजों द्वारा लगाए गए उच्च करों को देने में असमर्थ थे जिसके कारण उन्होंने अंग्रेजी सरकार से करों की दर कम करने का आग्रह किया पर वे नहीं माने जिसके कारण किसानों ने उनका विरोध किया। इस संघर्ष में सरदार पटेल ने उन किसानों के पक्ष से वकालत की तथा किसानों को कर न देने किए प्रेरित किया। इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने भी किसानों का साथ दिया और अंततः इस किसान आंदोलन में उन्हे विजय प्राप्त हुई। अंग्रेज सरकार ने किसानों पर लगाए गए करों की दरों को कम कर दिया।
2.नगर निगम आयुक्त- सरदार वल्लभ भाई पटेल 1917 से 1924 तक अहमदाबाद में ही प्रथम भारतीय निगम आयुक्त के रूप में कार्यरत रहे तथा जनता की सेवा की।
3.बारदोली सत्याग्रह- 1928 में गुजरात के बारदोली में एक और किसान आंदोलन हुआ जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। वहां की प्रांतीय सरकार ने किसानों के ऊपर लगाए गए करों में 30 प्रतिशत की वृद्धि कर दी थी जिसका उन्होंने विरोध किया। इस किसान आंदोलन को रोकने का अंग्रेजों ने काफी प्रयत्न किया परंतु सरदार पटेल के प्रयासों के कारण अंत में ब्रिटिश सरकार को उनकी मांगों को स्वीकार करना पड़ा तथा एक जांच समिति जिसमे एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल के द्वारा जांच करने बाद करों को घटा कर 6.03 प्रतिशत कर दिया गया। यहां भी सरदार पटेल किसानों को उनका अधिकार दिलवाने में सफल रहे।इस आंदोलन में सफलता के बाद उन्हें वहां की महिलाओं के द्वारा “सरदार” की उपाधि प्रदान की गई।
4.जेल गमन- 1930 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए नमक आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल को 3 महीने के लिए जेल हो गई थी। जनवरी 1932 में वे दुबारा गिरफ्तार हो गए जिसके बाद वे दो सालों के बाद जुलाई 1934 में जेल से रिहा हुए। सन् 1940 के अक्टूबर में भी वे कांग्रेस पार्टी के अन्य नेताओं के साथ दुबारा जेल में डाल दिए गए और अगस्त 1941 में जेल से छूटे। स्वतंत्रता के संघर्ष में उन्हे कई बार जेल जाना पड़ा परंतु उनके मन में अपने देश के लिए कुछ करने की भावना बनी रही और वे अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में निरंतर कार्यरत रहे ।
सरदार वल्लभ भाई पटेल महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे तथा उनके साथ उनके संघर्ष में जुड़े भी हुए थे परंतु दोनो के विचारों में काफी मतभेद रहता था। 1929 में आयोजित, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षता के उम्मीदवार के रूप में महत्मा गांधी के पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल दूसरे उम्मीदवार के रूप में थे, परंतु महत्मा गांधी ने अपना नाम हटा लिया तथा उन्होंने वल्लभ भाई पटेल को भी अपना नाम हटा लेने के लिए बाध्य किया जिसके बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष चुने गए। 1937-38 में आयोजित चुनाव के समय भी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता के लिए वल्लभ भाई पटेल उम्मीदवार थे परंतु गांधी जी ने इस बार भी सरदार पटेल पर दबाव बनाया तथा उनका नाम हटवा लिया और उस चुनाव में भी सरदार वल्लभ भाई पटेल की जगह जवाहरलाल नेहरू निर्वाचित हुए।
भारत के विभाजन को लेकर भी गांधी और सरदार पटेल में मतभेद थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल चाहते थे की भारतीय उपमहाद्वीप का मुस्लिम पाकिस्तान तथा हिंदू भारत में विभाजन हो जाए परंतु महात्मा गांधी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। मुस्लिमों के प्रति सरदार पटेल की हठधर्मिता को महत्मा गांधी पसंद नहीं करते है ।
1945-46 में भी पार्टी की अध्यक्षता के उम्मीदवार सरदार पटेल थे परंतु महात्मा गांधी ने पुनः हस्तक्षेप करके नेहरू जी को अध्यक्ष बना दिया तथा अंतरिम सरकार के गठन के लिए ब्रिटिश वायसराय का आमंत्रण नेहरू जी को गया।
इस प्रकार महत्मा गांधी जी के बार-बार हस्तक्षेप करने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल को वो मौका कभी मिला ही नहीं जिसके वे हकदार थे। यदि महात्मा गांधी ने ऐसा न किया होता तो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल होते तथा उनकी कार्यकुशलता के फलस्वरूप बहुत सी ऐसी समस्याएं उत्पन्न ही न होती जो आज भी वर्तमान में विद्यमान है तथा उनके दूरदृष्टा होने का लाभ पूरे भारत को मिलता। परंतु सरदार वल्लभ भाई पटेल गांधी के प्रति अटूट श्रद्धा भाव रखते थे भले ही वे उनके नैतिक विचारों से सहमत न हो। गांधी जी के प्रति उनके मन में सदैव श्रद्धा और सम्मान का भाव रहा।
सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के उप प्रधानमंत्री चुने गए। इसके साथ ही वे प्रथम गृहमंत्री के पद पर भी आसीन थे तथा सूचना मंत्री और राज्य मंत्री भी बने। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आजादी के बाद भारतीय उपमहाद्वीप 562 छोटी बड़ी रियासतों में विभाजित था। उन सभी को एकीकृत करने की समस्या तत्कालीन भारत सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती थी।इस कार्य की जिम्मेदारी सरदार पटेल को सौंपा गया ।वे आजादी के पहले से ही वी पी मेनन के सहयोग के द्वारा भारतीय रजवाड़ों को भारत में मिलने के काम में जूट थे। 15 अगस्त 1947 तक केवल कश्मीर जूनागढ़ और हैदराबाद के रियासत शेष रह गए थे और उनके अलावा बाकी सभी रियासतों ने भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था।
जूनागढ़ का विलय- जूनागढ़ की जनता भारत में विलय चाहती थी पर वहां के नवाब पाकिस्तान के साथ विलय करना चाहते थे। वहां की जनता से अपने नवाब का विरोध किया तथा वहा की परिस्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने अपनी सेना वहा भेजी। वहां का नवाब पाकिस्तान भाग गया तथा इस प्रकार जानता की सहमति के अनुसार जूनागढ़ का भारत में विलय कर लिया गया।
हैदराबाद का विलय- हैदराबाद एक स्वतंत्र राज्य के रूप में रहना चाहता था। वहां के निजाम ने भारत तथा पाकिस्तान दोनो में विलय करने से इंकार कर दिया। परंतु वहां का निजाम अपनी जनता पर अत्याचार कर रहा था। सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में विलय करने हेतु अपनी बुद्धि का प्रयोग किया तथा वहां की जनता की सहायता के एक सैनिक टुकड़ी भेजी। उन्होंने एक योजना बनाई जिसे “मिशन पोलो” का नाम दिया तथा उसके अंतर्गत एक सैनिक टुकड़ी हैदराबाद भेजी गई और इस प्रकार वहां की स्थिति को नियंत्रित करके हैदराबाद का भी विलय कर लिया गया।
कश्मीर का विलय -सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से कश्मीर के महाराज से भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए थे।
इस प्रकार उन्होंने भारत के खंडित भागों को एकीकृत करके नए भारत का निर्माण किया।उनके इस कार्य के लिए उन्हे महात्मा गांधी ने “लौह पुरुष” की उपाधि प्रदान की। जिस प्रकार बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण किया था और इसके लिए उन्हे “जर्मनी के आयरन चांसलर” की उपाधि दी गई थी उसी प्रकार सरदार पटेल की तुलना भी बिस्मार्क से की गई तथा उन्हे भी भारत का लौह पुरुष कहा जाने लगा।
15 दिसंबर 1950 वह दिन था जिस दिन भारत मां का एक लाडला बेटा उसे छोड़कर चल गया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल को मरणोपरांत 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
2013 में उनकी स्मृति में एक विशाल स्मारक का निर्माण कराया गया था जिसे “स्टेच्यू ऑफ यूनिटी” के नाम से जाना जाता है। यह विश्व का सबसे ऊंचा स्मारक है जो गुजरात में स्थित है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के एक प्रतिभावान राजनेता थे जिन्होंने अपने बहुमुखी गुणों के तेज से भारत के हित में सदैव कार्य किया तथा गरीब और असहाय लोगों को सहायता प्रदान किया। उनके नेतृत्व में भारत एक अखंड देश के रूप में निर्मित हुआ। उन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में भी अपना अमूल्य योगदान दिया और भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के सपने को साकार किया। उनके दृढ़ विचार सभी को शक्ति प्रदान करते है और जीवन की कठिन परिस्थितियों में सूझबूझ के साथ निर्णय लेने की सिख देते है। भारत की पीढ़ियां सहृदय उनका सदैव सम्मान करती रहेंगी।
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