साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है और इसके निर्माण में कुशल और प्रभावी लेखकों तथा कवियों का महत्ववूर्ण योगदान होता है।किसी भी समाज के उत्थान और पतन में साहित्य की भूमिका विशिष्ट होती है।लेखकों तथा कवियों को “सृष्टा” भी कहा जाता जो अपनी उत्तम रचनाओं की सृष्टि करके समाज में जागृति लाने तथा पथ प्रदर्शक का कार्य करते है।एक लेखक के पास अपने शब्दों और अपनी कलम की जो शक्ति होती है उसके मध्यम से वो जन क्रान्ति की लहर उत्पन्न कर नई परिवर्तन का आगाज़ करता है।
हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध, दक्ष और गुणसंपन्न लेखिका तथा कवियित्री “सुभद्रा कुमारी चौहान”, जो अपने प्रभावोत्पादक रचनाओं के लिए विख्यात है, उन्होंने हिंदीभाषी साहित्य के निर्माण में अविस्मरणीय भूमिका निभाई।उनकी रचनाओं की तेजस्वी प्रभा ने पाठकों को मंत्रमुग्ध कर उनके मन मस्तिष्क पर सदैव के लिए एक अमिट छाप छोड़ दी। उन्होंने अपने कृतियों के माध्यम से तथा अपनी लेखन कला के प्रयोग से अंग्रेजों की गुलामी के दिनों में भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना की जागृति तथा एक क्रांति की चिंगारी का संचार किया।वे एक लेखिका होने के साथ साथ एक स्वतंत्र सेनानी भी थी जिन्होंने गांधी के साथ उनके स्वतंत्र अभियान में कंधे से कंधा मिला हिस्सा लिया तथा कई बार जेल भी गई।
उत्कृष्ट लेखन शैली की प्रतिभा से श्रृंगित कवियित्री एवम् लेखिका श्रेष्ठ सुभद्रा कुमारी चौहान जी का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के समीप निहालपुर नामक गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ थे।उनके जन्म के दिन नागपंचमी का भी त्योहार था। सुभद्रा जी के पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह तथा उनकी माता का नाम धीराज कुंवरी था।
सुभद्रा जी के पिता एक शिक्षाप्रेमी व्यक्ति थे तथा उन्होंने अपनी बेटी को भी बचपन से ही शिक्षा ग्रहण के लिए प्रेरित किया तथा उन्हे उचित शिक्षा भी प्रदान की।अपने पिता के सानिध्य में रहकर सुभाकुमारी जी ने पढ़ना लिखना सीखा तथा उनकी रुचि हिंदी की ओर बढ़ी ।उन्होंने बाल्यावस्था से ही हिंदी की छोटी छोटी कविताएं लिखना भी प्रारंभ कर दिया था।
सुभद्रा कुमारी जी की प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद “क्रॉस्थवेट गर्ल्स स्कूल” से हुई।उन्होंने 1919 में अपने मिडिल स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।उन्होंने 9वी कक्षा तक की पढ़ाई की। हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा भी उनके ही विद्यालय में उनसे छोटी कक्षा में पढ़ती थी तथा वे सुभद्रा जी की अच्छी सहेली बन गई थी। सुभद्रा जी अपने स्कूल के समय से ही अपनी कविताएं मासिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के लिए भेजा करती थी।हिंदी भाषा में कविताएं और कहानियां लिखने में वे पारंगत हो चुकी थी।
सुभद्रा कुमारी जी का विवाह सन 1919 में पुराने रीति – रिवाजों के अनुसार 16 वर्ष की अल्पायु में ही मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के रहने वाले ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से कर दी गई।उनके पति हिंदी साहित्य से जुड़े एक नाटककार थे।वे विवाह के बाद अपने पति के साथ जबलपुर में निवास करने लगीं। सुभद्रा जी ने 5 संतानों को जन्म दिया।उनकी दो बेटियां थी जिनका नाम सुधा चौहान और ममता चौहान था तथा तीन बेटे जिनका नाम अजय चौहान,विजय चौहान तथा अशोक चौहान था। उन्होंने विवाह के बाद भी लेखन कार्य जारी रखा तथा उनके पति ने उनका साथ दिया और उनके आगे बढ़ने में सहायता भी की।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की पुत्री सुधा चौहान का विवाह हिंदी लेखन के महानायक प्रेमचंद जी के पुत्र अमृतराय जी हुआ था।
उनकी पुत्री ने अपनी मां सुभद्रा जी तथा अपने पिता लक्ष्मण सिंह दोनो की एक संयुक्त जीवनी लिखी जिसका नाम था “मिला तेज से तेज ” जिसमे सुभद्रा जी के संपूर्ण जीवन का वर्णन मिलता है।यह जीवनी कुछ समय पश्चात इलाहाबाद के हंस प्रकाशन से प्रकाशित हुई।
महत्मा गांधी जी भारत को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के लिए स्वतंत्रता के संग्राम की बागडोर संभाल रहे थे।उन्होंने पूरे देश को अंग्रेजों के विरुद्ध अपने संघर्ष के लिए एकजुट किया तथा कई आंदोलन किए।सन 1921 में महात्मा गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन चलाया। कई लोग ने उनके इस आंदोलन में जम कर हिस्सा लिया तथा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपना विरोध प्रदर्शन किया।उनलोगों में एक नाम सुभद्रा कुमारी चौहान जी का भी था। वे महत्मा गांधी के आवाहन पर अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने पति के साथ महात्मा गांधी जी के आंदोलन में सम्मिलित हो गई। वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला सत्याग्रही बनी।
सुभद्रा कुमारी जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस दल की सदस्यता भी ग्रहण की तथा 1921 में गुजरात में आयोजित कांग्रेस दल के अधिवेशन में भी हिस्सा लिया जहा वे महात्मा गांधी जी मिली ।महात्मा गांधी जी से हुई मुलाकात के बाद उनके मन में राष्ट्र भक्ति की ज्वाला और भी तीव्र हो उठी, मानो अपने देश के लिए कुछ करने की शक्ति उनके रक्त में जोश और शक्ति के साथ उफान भरती हुई संचारित हो गई।
उन्होंने अपनी रचनाओं में भी अपनी देशभक्ति की भावनाओं को शब्दों के माध्यम से उकेरा तथा समाज में जनक्रांति फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उन्होंने महात्मा गांधी के चलाए गए अभियान के दौरान सामाजिक बुराइयों तथा स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कई नुक्कड़ सभाओं का आयोजन किया। उन्हे सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण दो बार जेल भी जाना भी जाना पड़ा।उन्होंने अपने जेल में प्राप्त अनुभवों को भी अपनी रचनाओं में व्यक्त किया जिनसे उनकी रचनाओं की लोकप्रिय तथा पाठकों का ध्यानाकर्षण बढ़ा तथा वे अपने विचारों के माध्यम से बड़ी संख्या में जनता को प्रभावित करने में सफल भी रहीं।
अपनी कहानियों तथा कविताओं के द्वारा उन्होंने जनसाधारण तक अपनी बात पहुंचाकर उनके हृदय में देश भक्ति की भावना जागृत करने में अहम भूमिका निभाई जिसके फलस्वरूप बड़ी तादात में लोग बढ़ चढ़ कर स्वतंत्रता के संघर्ष में अपना योगदान देने हेतु सामने आए और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रहे सेनानियों को अपना समर्थन प्रदान करके उनकी शक्ति को बढ़ाया।
1922 में मध्यप्रदेश में हुए ” जबलपुर झंडा सत्याग्रह ” में सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया। इसके पश्चात उन्होंने “नागपुर झंडा सत्याग्रह ” भी प्रारंभ किया जिसके कारण वे पुनः अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर ली गई तथा वे नागपुर से गिरफ्तार होने वाली प्रथम महिला सत्याग्रही भी बन गई। उनके हृदय में भरे देश प्रेम की भावना ने उन्हे एक निडर और साहसी स्वतंत्रता सेनानी में परिणत कर दिया थे। वे जेल जाने के बाद भी अंग्रेजों के डरी नही तथा डट कर उनके शासन को समाप्त करने के संघर्ष में लगी रहीं।
उन्होंने समाज के कल्याण के लिए कार्य करने तथा जनसाधारण की सेवा करने हेतु आगे जाकर राजनीति में भी भाग लिया। 1936 में सुभद्रा कुमारी चौहान जी विधानसभा सदस्य के रूप में चयनित की गई तथा उन्होंने जनता से प्रेम और समर्थन भी अर्जित किया जिसकारण वे 1945 में भी दुबारा विधानसभा सदस्य के पद पर चुनी गई।
उन्होंने एक लेखिका ,कवियित्री , सत्याग्रही तथा एक राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में स्वतंत्रता के अभियान में अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया तथा इस संग्राम में महिलाओं के अविस्मरणीय भूमिका का उदाहरण भी प्रस्तुत किया।
सुभद्रा कुमारी ने महिलाओं के साथ होने वाले सामाजिक बुराइयों तथा कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया तथा महिलाओं को भी बढ़ चढ़ कर अपने अधिकारों के लिए सामने आने हेतु प्रेरित किया।उन्होंने अपनी पुत्री के विवाह के समय उसका कन्यादान करने भी साफ इंकार कर दिया तथा उनको यह तर्क किया कि ” कन्या कोई वस्तु नहीं है जिसे दान में दे दिया जाय।” एक स्त्री की महत्ता बतलाने हेतु सुभद्रा जी का यह एक कठोर कदम था ।सुभद्रा कुमारी चौहान जी जबलपुर की राजनैतिक कार्यकर्ता भी रह चुकी थी तथा उन्होंने अपने कार्यकाल महिलाओं का उत्साहवर्धन किया और उसके लिए एक आदर्श बनी जिसके फलस्वरूप 1930- 31 से 1940-41 में आयोजित जबलपुर की आम सभाओं में महिलाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।उन्होंने महिलाओं के पर्दे ,रूढ़िवादी विचारों तथा छुआछूत के खिलाफ खुल कर आवाज उठाई तथा हर वर्ग की महिलाओं को समान अधिकार दिलाने तथा उनके हितों की रक्षा करने का आश्वासन दिलाया।उन्होंने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी कार्य किया।अपने उच्च एवम् दृढ़ विचारों के कारण उन्होंने जनता के हृदय में अपने स्थान बनाया तथा महिलों का विश्वास और समर्थन प्राप्त किया।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की रुचि बचपन से ही हिंदी की कविताओं और कहानी लेखन में प्रगाढ़ हो चुकी थी।वे अपनी कविताओं को मासिक पत्रिकाओं में प्रकाशित करने हेतु प्रेषित किया करती थी। उनकी पहली कविता का नाम था “नीम ” जो उन्होंने केवल 9 वर्ष की अल्पायु में लिखी थी तथा वह कविता हिन्दी की ” मर्यादा ” नामक पत्रिका में 1913 में प्रकाशित हुई थी।धीरे धीरे उन्होंने कहानी लेखन का कार्य भी प्रारंभ किया।
उन्होंने अपने पूरे जीवन भर में कुल 88 कविताओं तथा 46 कहानियों की रचनाएं की।उनका पहला काव्य संग्रह “मुकुल” 1930 में तथा पहला कहानी संग्रह “बिखरे मोती” 1932 में प्रकाशित हुई। उनकी रचनाओं की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित है :-
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं में वीर रस का प्रयोग देखने को मिलता है।राष्ट्रभक्ति से प्रेरित उनकी कविताओं और कहानियों को पढ़ कर पाठकों में शक्तिवर्धक ऊर्जा का संचार हो उठता था ।उनकी शब्द रचना , लय तथा भाव – गर्भिता का इतना अनोखा प्रदर्शन वे प्रस्तुत करती है जिसके आकर्षण से कोई भी अछूता नहीं रह सकता।देश प्रेम से ओतप्रोत उनकी सर्वश्रेष्ठ कविता “झांसी की रानी ” जो 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में “रानी लक्ष्मीबाई “द्वारा दिखाए गए शौर्य का वर्णन प्रस्तुत करती है , आज भी उसकी लोकप्रियता उतनी ही है जितनी की उसके रचना के समय उसे प्राप्त हुई। वह कविता बुंदेलखंड की खड़ी बोली हिंदी भाषा में लिखी गई है जिसकी पंक्तियां लोगो एक बार पढ़ने के बाद ही लोगो का कंठहार बन जाती है ।इस कविता की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है –
“चमक उठी सन सत्तावन में ,वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलो के मुंह, हमने सुनी कहानी थी ।
खूब लड़ी मर्दानी ,वह तो झांसी वाली रानी थी ।”
वे जालियांवाला बाग हत्याकांड से अत्यधिक भावुक हो गई थी तथा उस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने एक कविता “जालियांवाला बाग में बसंत” की रचना की ।इसके अलावा भी उन्होंने देश भक्ति से संबंधित कई रचनाएं की ।
सुभद्रकुमारी चौहान की रचनाओं की दूसरी विशेषता प्रेम भाव की अभिव्यक्ति है। उन्होंने अपने काव्यों तथा कहानियों में अपनी प्रेम की भावना से भरे विचारों को प्रस्तुत किया है। उनकी ये रचनाएं दो भागों में पाई जाती है। पहला उनका अपने बचपन/शैशव को लेकर प्रेम दर्शाता तथा दूसरा उनके दांपत्य जीवन के प्रेम का वर्णन करता है।
शैशव प्रेम- उन्होंने बचपन के अल्हड़पन तथा भोलेपन का वर्णन करते हुए अपनी रचनाओं को बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत किया है । “मेरा नया बचपन ” नामक कविता इसका उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती है जिसमे उन्होंने अपने बचपन की मधुर स्मृतियां का प्रयोग करते हुए बालपन का वर्णन प्रस्तुत किया है।इस कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार है :-
“बार बार आती है मुझको ,मधुर याद बचपन तेरी।
आ जा बचपन एक बार फिर ,दे दो अपनी निर्मल शांति।
व्याकुल व्यथा मिटने वाली,वह अपनी प्राकृत विश्रांति ।”
उनकी इन कविताओं में कन्या की प्रधानता देखी जा सकती है। उन्होंने बलिकाओं के प्रति समाज में फैले कुरीतियों तथा कुप्रथाओं का खुल कर विरोध प्रस्तुत किया तथा उनकी निंदा भी की।उन्होंने कन्याभ्रूण हत्या, कन्यादान तथा लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते हुए अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगो तक अपनी बात पहुंचने का प्रयत्न किया।” बालिका का परिचय ” नामक कविता इसका उदाहरण प्रस्तुत करती है जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है :-
“दीपशिखा है अंधकार की ,घनी घटा की उजियाली,
ऊषा है ये कमल भृंग की ,है पतझड़ की हरियाली।”
दाम्पत्य प्रेम- विवाह के पश्चात सुभद्रा कुमारी जी ने दाम्पत्य जीवन के प्रेम,अपने जीवन साथी के लिये प्रेम तथा वैवाहिक संबध से जुड़े पलों और भावनाओं के वर्णन का प्रस्तुतिकरण किया है ।उनकी कुछ कविताओं के उदाहरण है “प्रियतम से” , “प्रेम श्रृंखला” ,” मानिनि राध” , “मनुहार राधे” इत्यादि। उनकी कविता “प्रियतम से” की कुछ पंक्तियां निम्मलिखित है :-
“जरा जर से बातों पर, मत रुको मेरे अभिमानी
लो प्रसन्न हो जाओ ,गलती मैने अपनी सब मानी,
मैं भूलों की भरी पिटारी ,और दया के तुम आगार,
सदा दिखाई दो तुम हंसते , चाहे मुझसे करो ना प्यार।।”
• प्रकृति प्रेम की भावना का वर्णन
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं में प्रकृति के सौंदर्य और उसके प्रति उनकी प्रेम और स्नेह की भावना भी दृष्टव्य होती है। उनकी रचनाएं जैसे “नीम” , “फूल के प्रति” ,”मुरझाया फूल” इत्यादि उनकी प्रकृति के विषय में लिखी गई रचनाएं है।
• भक्ति भावना का वर्णन
उन्होंने अपनी कुछ रचनाओं में ईश्वर के प्रति अपनी आराधना तथा अपनी श्रद्धा का वर्णन प्रस्तुत किया है ।
•राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान की भावना
सुभद्रा कुमारी चौहान को अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी से अत्यधिक प्रेम था। उन्होंने अपनी भाषा के प्रति अपने भावनाओं को व्यक्त करते हुए रचनाएं की है जिसका एक श्रेष्ठ उदाहरण उनकी “मातृ मंदिर में” नामक कविता है ।इस कविता की पंक्तियां कुछ इस प्रकार है —
“उस हिन्दू जन की गरविनी, हिन्दी प्यारी हिन्दी का
प्यारे भारतवर्ष कृष्ण की ,उस प्यारी कालिन्दी का
है उसका ही समारोह यह, उसका ही उत्सव प्यारा
मैं आश्चर्य भरी आंखों से , देख रही हूँ यह सारा
जिस प्रकार कंगाल बालिका,अपनी माँ धनहीता को
टुकड़ों की मोहताज़ आज तक, दुखिनी की उस दीना को”
• बाल साहित्य की रचनाएं
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की रचनाओं में अपनी संतान के जन्म के पश्चात बहुत से परिवर्तन आ गए ।उनकी रचनाओं में मातृत्व , संतान प्रेम इत्यादि की भावनाएं झलकने लगी।वे बच्चो के मन को भाने वाले कविताओं और कहानियों की रचनाएं किया करती। उनकी ऐसे ही एक कविता का नाम है “सभा का खेल” जिसके कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है —
“सभा-सभा का खेल आज हम खेलेंगे,
जीजी आओ मैं गांधी जी,छोटे नेहरु,तुम सरोजिनी बन जाओ।
मेरा तो सब काम लंगोटी गमछे से चल जाएगा,
छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा।
मोहन, लल्ली पुलिस बनेंगे,
हम भाषण करने वाले वे लाठियाँ चलाने वाले,
हम घायल मरने वाले।”
इस प्रकार हम देख सकते है की सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन में विविध विषयों को आधार बनाकर उत्कृष्ट कृतियों की रचनाएं की है जो हिंदी साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है।सुभद्रा जी की भाषा शैली सरल और प्रवाहमयी होती थी जिस कारण सभी के मन को भा जाती थी।उनका साहित्यिक जीवन अत्यंत प्रभावमयी और सफल रहा तथा वे अपने समय की सुप्रसिद्ध कवियित्रियों में अग्रणी स्थान पर थी।
कविताएं – अनोखा दान,आराधना, उपेक्षा ,इसका रोना, चिंता, चलते समय, उल्लास,कोयल,खिलोनेवाला, झांसी की रानी की समाधि पर, कलह – कारण ,जीवन फूल, झिलमिल तारे, झांसी की रानी , ठुकरा दो या प्यार करो , प्रतीक्षा , पानी और धूप, तुम , नीम, इत्यादि।
कहानी संग्रह – बिखरे मोती, उन्मादिनी और सीधे – साधे चित्र।
कविता संग्रह – मुकुल और त्रिधारा।
सुभद्रा कुमारी जी का निधन :-
हिंदी जगत की प्रख्यात लेखिका एवम् कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी की मृत्यु अत्यंत ही दुखःद घटना थी। 15 फरवरी 1948 के दिन नागपुर में आयोजित शिक्षा विभाग की एक सभा में सम्मिलित होने के बाद वहा से जबलपुर लौटते समय मध्यप्रदेश के सिवनी में स्थित कलबोडी में उनके कार के साथ दुर्घटना हो जाती है जिसमे उनका भी देहांत हो जाता है।
•सुभद्रा जी के स्मरण में 1949 में जबलपुर के नगरपालिका भवन में उनकी एक मूर्ति स्थापित की गई जिसका अनावरण हिंदी की एक प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा जी के हाथों से कराया जो सुभद्रा जी की सहेली भी थी।
•6 अगस्त 1976 को भारतीय डाक विभाग ने सुभद्रा जी के सम्मान में 25 पैसे का एक टिकट जारी किया।
• 28अप्रैल 2006में भारतीय तट रक्षक सेना ने एक तट रक्षक जहाज का नाम सुभद्रा जी के नाम पर रख दिया था।
• इन्हे “मुकुल” तथा “बिखरे ” की रचना के लिए सेकसरिया पुरस्कार प्रदान किया गया था।
हिंदी भाषी श्रेष्ठतम लेखिका एवम् कवयित्री जिन्होंने अपनी लेखन कला के माध्यम से हिंदी साहित्य क्षेत्र में मूलभूत स्थान अर्जित किया है।उनकी रचनाओं की ख्याति आज भी बढ़ रही तथा हिंदी साहित्य का अभिन्न अंग बनकर उसे शोभित कर रही है। वे एक लेखिका होने साथ साथ एक स्वतंत्रता सेनानी भी रही जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया तथा देश की अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया।उन्होंने एक समाजसेविका के रूप में समाज के हित के लिए कार्य किया तथा एक राजनैतिक कार्यकर्ता के पद पर आसीन होकर अपने जनकल्याण के कार्यों को उच्चतम स्तर पर कार्यान्वित किया।
उन्हे अपने कार्यों के लिए “लोकल सरोजिनी ” की उपाधि भी दी गई थी।इसके अलावा उन्हे “काव्य सेनानी ” और “स्वातंत्र्य कोकिला” के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हिंदी जगत की इस महानतम महिला काव्यकार की जीवन गाथा अपने देश के प्रति समर्पित है जिन्होंने अपने निजी कर्तव्यों का पालन करने साथ साथ समाज और देश हित के कार्यों में भी अपना योगदान दिया।वे अपनी रचनाओं के रूप में सदैव हमारे बीच उपस्थित रहेंगी तथा प्रेरणापुंज के रूप में सभी को प्रेरित करती रहेंगी।
धन्यवाद।
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