आज के आधुनिक युग में उन्नति और प्रगति की होड़ में लगे देशों के विकास में विज्ञान ने बोहोत अहम भूमिका निभाई है। विज्ञान ने ऐसे-ऐसे आविष्कार कर डाले है जो असंभव माने जाते थे। विज्ञान का समुचित प्रयोग करके वैज्ञानिकों ने मानव जीवन को आसान और सुलभ बना दिया। आज दुनिया के हर देश अपने विकास के लिए विज्ञान और तकनीक का उपयोग करते हैं जिसमे उन देशों के महान वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
आज विज्ञान जिस रूप में हमारे समक्ष है उसे यहां तक लाने अर्थात विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व आविष्कार करने तथा दुनिया के सामने इसके अद्वितीय गुणों को प्रकट करने में विभिन्न वैज्ञानिकों ने उत्कृष्ट योगदान दिया है जिसमे भारत के महानतम वैज्ञानिक “होमी जहांगीर भाभा” का नाम भी शामिल है। वे एक भारतीय परमाणु वैज्ञानिक थे जिन्हे “भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम” का जनक माना जाता है। उन्होंने भारत को परमाणु ऊर्जा के प्रयोग द्वारा सशक्त बनने और परमाणु ऊर्जा संपन्न देशों के कतार में लाने के लिए विज्ञान के क्षेत्र में कई विशिष्ट कार्य किए है और भारत को एक नई शक्ति प्रदान की।
“माना विज्ञान में हमने किया है विशेष,
फिर भी अभी बोहोत कुछ करना है अवशेष।
विज्ञान है हमारे जीवन का आधार।
इसने की है हर कल्पना साकार।।”
होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक समृद्ध पारसी परिवार हुआ था। उनके पिता का नाम जहांगीर भाभा था जो एक विख्यात वकील थे और वे टाटा इंटरप्राइजेज के लिए भी कार्य कर चुके थे। उनकी मां का नाम मेहरीन भाभा था जो सर दिनशॉ मानेकजी पेटिट की पोती थी। वे उच्च और कुलीन परिवार से थीं। उनके छोटे भाई का नाम जमशेद भाभा था। उनका परिवार मुंबई के सुप्रसिद्ध धनी परिवारों में से एक था। उनके दादाजी का नाम हार्मुसजी भाभा था जो मैसूर में शिक्षा के महानिदेशक रह चुके थे।
होमी जहांगीर भाभा की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में ही शुरू हुई।
उन्होंने मुंबई के कैथरेडल स्कूल से अपनी शिक्षा आरंभ की तथा आगे की पढ़ाई के लिए जॉन कैनन में दाखिला लिया। उनकी भौतिक विज्ञान और गणित में अत्यधिक रुचि थी। उनकी आगे की पढ़ाई एलफिंस्टन कॉलेज मुंबई में पूरी हुई तथा काफी सम्मानपूर्वक अपने इंटरमीडिएट की डिग्री प्राप्त की। उस समय वे केवल 15 वर्ष के थे जिस कारण उन्हें आगे की पढ़ाई किए विदेश नहीं भेजा गया क्योंकि विदेश जाकर पढ़ने के लिए उनकी आयु पर्याप्त नहीं थी। इसीलिए उनका दाखिला रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, मुंबई में ही करवा दिया गया जहां से उन्होंने अपनी बीएससी की पढ़ाई पूरी की।
भारत से ही अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1927 में इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में कैअस कॉलेज में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से ही उन्होंने 1930 में स्नातक की तथा 1934 में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। इसके पश्चात उन्होंने जर्मनी में रहकर कॉस्मिक किरणों का अध्ययन तथा उन पर कार्य भी किया। उन्होंने कास्केट थ्योरी ऑफ इलेक्ट्रॉन का प्रतिपादन भी किया।
उन्हे अपनी पढ़ाई में उत्तम प्रदर्शन के कारण कई छात्रवृतियां भी प्राप्त हुई जैसे अपनी पीएचडी की पढ़ाई के दौरान उन्होंने आइजेक न्यूटन फेलोशिप प्राप्त की थी तथा उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक जैसे रदरफोर्ड, डेरार्क तथा निल्सबर्ग के साथ भी काम किया।
होमी जहांगीर भाभा को बचपन से ही संगीत, पेंटिंग और बागवानी में रुचि थी। वे जब भी अपनी चाची मेहरबाई टाटा से मिलने जाया करते उनके पश्चिमी शास्त्रीय संगीत संग्रह में रखे बेथोवेन, मोजार्ट, हेडन, और शुबार्ट के कामों को अपने भाई तथा अपने चहेरे भाई के साथ मिल कर ग्रामोफोन पर सुना करते थे। उन्हे वायलिन तथा पियानो बजाने की शिक्षा भी दी गई थी। इसके साथ ही वे स्केचिंग और पेंटिंग भी सीखते थे जो उनके ट्यूटर कलाकार जहांगीर लालकला सिखाया करते थे।
उन्होंने 17 वर्ष की आयु में बॉम्बे आर्ट सोसायटी द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में स्व-चित्र बना कर द्वितीय स्थान भी प्राप्त किया था।
इस प्रकार होमी जहांगीर भाभा न केवल पढ़ाई में बल्कि अन्य कियाकलापों में भी अव्वल रहे है।
होमी जहांगीर भाभा ने इंग्लैंड से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो पूरी कर ली परंतु उनका लगाव अभी भी भौतिक विज्ञान में ही था। उन्होंने अपने पिता को पत्रों द्वारा इस बात से अवगत भी कराया और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन और कार्य करना जारी रखा।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने के प्रथम वर्ष ही वे भारत लौट आए। भारत आने के बाद वे बैंगलोर के इंडियन स्कूल ऑफ साइंस में 1940 में रीडर पद पर नियुक्त हो गए। यहां उन्होंने कॉस्मिक किरणों के शोध कार्य हेतु एक अलग विभाग की स्थापना की। इसके पश्चात 1941 में वे रॉयल सोसायटी के सदस्य के रूप में चुने गए तथा 1944 तक उन्हे वहा का प्रोफेसर बना दिया गया। नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. सी वी रमन भी उनसे काफी प्रभावित थे जो उस समय इंडियन स्कूल ऑफ साइंस के अध्यक्ष के पद पर आसीन थे।
1945 में उन्होंने जेआरडी टाटा से वित्तीय सहायता प्राप्त करके मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापन की।
होमी जहांगीर भाभा इस बात से अवगत हो चुके थे कि यदि भारत को दुनिया के दूसरे विकसित देशों की बराबरी तक पहुंचना है तो परमाणु ऊर्जा की शक्ति के प्रयोग द्वारा ही यह संभव है। इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए उन्होंने 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की तथा उसके प्रथम अध्यक्ष बने। उन्होंने इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी आज्ञा प्राप्त कर ली थी। वर्ष 1948 में ही पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके कार्य से प्रभावित होकर उन्हें परमाणु कार्यक्रम के निदेशक के रूप में नियुक्त कर दिया तथा परमाणु हथियार विकास का कार्य भी उन्हे ही हस्तांतरित किया। साथ ही वर्ष 1950 में आयोजित IAEA सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
वे न केवल एक वैज्ञानिक थे बल्कि उनका झुकाव कला के क्षेत्र में भी था। वे चित्रकारों, मूर्तिकारों और संगीतकारों को प्रोत्साहन भी दिया करते थे। उन्होंने मुंबई से कुछ दूर पर स्थित ट्राम्बे नामक स्थान के एक संस्थान में सुंदर और आकर्षक मूर्तियों का संग्रह किया करते थे। उन्होंने मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन की मुंबई में आयोजित प्रदर्शनी का उद्घाटन भी अपने करकमलों से किया था। चित्रकला में उनकी रुचि से प्रभावित होकर सी वी रमन उन्हे “लियो नार्डो द विंची” कहा करते थे।
डा. होमी जहांगीर भाभा 1955 में जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित “परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग” नामक कार्यक्रम का प्रथम सम्मेलन जिसमे विभिन्न देशों ने हिस्सा लिया के सभापति के पद पर नियुक्त किए गए थे। उस सम्मेलन में पश्चिमी देशों ने यह बात प्रस्तुत की कि विकासशील देशों को सर्वप्रथम अपने औद्योगिक विकास पर काम करना चाहिए तत्पच्यात उन्हे परमाणु ऊर्जा पर कार्य करने के बारे में सोचना चाहिए, परंतु उस सम्मेलन में डा.होमी जहांगीर भाभा ने पश्चिमी देशों के इन तर्कों का खण्डन करते हुए अपनी बात रखी कि विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों को अपने विकास और औद्योगिक प्रगति के लिए परमाणु ऊर्जा शक्ति का प्रयोग करना चाहिए जो उनके लिए सहायक और लाभकारी सिद्ध होगा। वे इसका प्रयोग शांतिपूर्वक अपने विकास कार्यों में ही करेंगे।
1960 से 1963 तक उन्होंने इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड अप्लाइड फिजिक्स के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।
डा. होमी जहांगीर भाभा ने भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में काफी योगदान दिया है। उन्होंने बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में अंतरिक्ष से आने वाली किरणों पर शोध कार्य किया। परमाणु की नाभी में न्यूट्रॉन और प्रोटॉन के कण होते है तथा इलेक्ट्रॉन नाभी के चक्कर लगाता है और ये तीनों कणों में ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा विद्यमान होती है, इन सभी तथ्यों से अवगत कराया। इलेक्ट्रॉन द्वारा पोजीट्रॉन बिखेरने की अभिव्यक्ति सही तरीके से इन्होंने ही की थी जिस कारण यह प्रक्रिया “भाभा प्रकीर्णन” के नाम से जानी जाती है।
1955 में जिनेवा सम्मेलन में डॉ. भाभा के विचारों से प्रभावित होकर कनाडा देश की सरकार ने भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम शुरू करने हेतु सहायता प्रदान करने के लिए समझौता किया जिसके बाद भारत में “सायरस परियोजना” प्रारंभ की गई।
इसके पश्चात भारत में पहला नाभिकीय रिएक्टर का निर्माण हुआ और 6 अगस्त 1956 तक इसने कार्य करना भी प्रारंभ कर दिया और इसे चलाने के लिए ब्रिटेन ने ईंधन की सहायता उपलब्ध करवाई। 1960 में सायरस परियोजना तथा 1961 में जेरिलिन परियोजना दोनो पूरी हो गई। डॉ. भाभा के निरंतर प्रयासों के फलस्वरूप राजस्थान में राणा प्रताप सागर तथा तमिलनाडु के कलपक्कम में “परमाणु ऊर्जा संयत्र” स्थापित किया गया। इन संयंत्रों के माध्यम से महंगे यूरेनियम के स्थान पर भारत में ही उपलब्ध थोरियम के प्रयोग द्वारा बिजली उत्पादन कार्य प्रारंभ हुआ। इसके बाद बिजली लोगो तक सस्ते और उचित मूल्यों में उपलब्ध कराना आसानी से हो पाया। आज बिजली हर दूर दराज और छोटे बड़े ग्रामों और शहरों तक पहुंची है ये डॉ. भाभा की ही देन है।
उन्होंने बेंगलुरु से लगभग 80 km दूर भूगर्भीय विस्फोटों तथा भूकंपो के प्रभाव के अध्यन के लिए एक शोध केंद्र की स्थापना करवाई।
डॉ भाभा ने TIRF संस्थान का निर्माण जेआरडी टाटा की सहायता से उनके साथ मिल कर किया था। उन्होंने इस इमारत के निर्माण के लिए अमेरिका के सुप्रसिद्ध और विख्यात वास्तुकार से भवन की रूपरेखा की योजना तैयार कराई तथा 1954 में नेहरू जी के हाथों से इसका शिलान्यास करवाया तथा 1962 तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद नेहरू जी से इसका उद्घाटन करवाया।
भारत के इस महान वैज्ञानिक का निधन 24 जनवरी 1966 को एक विमान यात्रा की दुर्घटना में हुआ। वे अंतर्राष्ट्रीय परिषद में आयोजित शांति मिशन में हिस्सा लेने के लिए हवाई यात्रा पर निकले थे परंतु उनका विमान कंचनजंगा के क्षेत्र में उठे एक बर्फीले तूफान के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसी दुघटना में उनका निधन हो गया ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा भारत की एक ऐसी हस्ती है जिनका जितना भी धन्यवाद किया जाए उतना कम है। उन्होंने भारत की आधुनिक प्रगति की नींव रखी तथा भारत के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
कहते है “युवाओं की वैज्ञानिक सोच देश को एक नई दिशा प्रदान करती है।” डॉ. होमी जहांगीर भाभा के पक्ष में यह कथन बिल्कुल सत्य है और प्रमाणित भी। उनकी वैज्ञानिक सोच, विज्ञान के प्रति लगाव तथा विज्ञान के क्षेत्र में उनके ज्ञान के कारण ही उन्होंने भारत को एक नई दिशा प्रदान की।
उनके सम्मान में आज भारत में उनके नाम से कई संस्थान चलाए जाते है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर( BARC) आज के समय में भारत का प्रसिद्ध अनुसंधान केंद्र है।
डॉ होमी जहांगीर भाभा ने अपना जीवन भौतिक विज्ञान को समर्पित कर दिया तथा उसके ज्ञान के द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्य किए। भौतिक विज्ञान के लिए उनका प्रेम अद्भुत था। उनके जीवन से भारत की युवा पीढ़ी को यह सीख लेनी चाहिए की विज्ञान के उचित प्रयोग द्वारा लोगो के हित में कैसे कार्य किया जाए तथा अपने देश का विकास हो। वे सदा हमारे लिए स्मरणीय रहेंगे।
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