चाणक्य के अनुसार किस का क्या सौंदर्य है, जानिए असल सौंदर्य उन्होंने किसको और क्यों कहा है ? (Chanakya ke anusar asal saundrya kya hai) (Chanakya Neeti)
कोयल का सौंदर्य है उसकी बोली
स्त्री का सौंदर्य है उसका पतिव्रत होना
कुरूप का सौंदर्य है उसकी बुद्धि
और तपस्वियों का सौंदर्य है उनका क्षमाशील होना।
सौंदर्य तो हम रूप को कहते है, तो फिर आखिर चाणक्य ने आवाज, पतिव्रत, बुद्धि और क्षमाशीलता को सौंदर्य क्यों कहा है? क्या आपको मालूम है?
कोयल का सौंदर्य उसकी बोली
तो दोस्तों इस बारे में हम आपको बताएंगे। कोयल भले ही कुरूप होती है, लेकिन उसकी वाणी ही उसकी पहचान है। कोयल सिर्फ अपनी वाणी के कारण जानी जाती है, अगर कोयल सुन्दर्य बन भी जाए तो भी उसके रूप की अहमियत न पड़े क्योंकि उसकी विशेषता, इसकी आवाज है, न कि उसका रूप।
स्त्री का सौंदर्य उसका रूप न होकर पतिव्रत क्यों ?
इसी तरह से चाणक्य ने स्त्री की असल सुंदरता उसका पतिव्रत धर्म बताया है। भले ही स्त्री कितनी भी सुंदर क्यों न हो, रंग-रूप तो उसे भगवान ने, जन्म से दिया है और उसका बाहरी शृंगार तो भौतिक है, इसलिए यह सब बातें मायने नही रखती। जो स्त्री पतिव्रता है, वही असल में सुंदर और गुणी है।
रंग रूप होना या फिर बाहरी शृंगार, यह तो नाशवान चीजें है और उम्र के साथ-साथ यह समाप्त होती रहती है, लेकिन पतिव्रता औरत के जो भाव है, वो सिर्फ उसके इस जीवन तक ही नही, बल्कि बाद में भी जीवित रहते है क्योंकि ऐसी नारी औरों के लिए भी एक आदर्श स्थापित कर देती है।
चाणक्य जी की इस पंक्ति में एक और बात भी छिपी हुई है कि लोगों को सिर्फ कामासक्ति में ही लीन नही रहना चाहिए, बल्कि अपनी सच्चाई और कर्म पर ध्यान देना चाहिए, वही उनका कल्याण करेगी। लेकिन आजकल स्त्री हो या पुरुष, सब कामासक्ति में ही लीन है, जोकि गलत है, यह सुख सिर्फ कुछ पलों का है। लेकिन सच्चाई और गुण हमेशा साथ निभाने वाले है। इसलिए भोग से जितना हो सके दूर रहे, यह सिर्फ युगल में हो तो ही न्यायिक है, अन्यथा यह समाज में बुरे भावों और कुकर्मों को पैदा करता है।
कुरूप का सौंदर्य बुद्धि
चाणक्य जी ने कुरूप का सौंदर्य उसकी बुद्धि क्यों कहा, इससे पहले हम जान लेते है कुरूप है कौन?
जैसा कि ऊपर लिखा रंग-रूप तो भगवान का दिया हुआ है, लेकिन फिर भी कईयो को रूप ना-बराबर भी नही मिलता, यानी कि कुरूप ऐसा व्यक्ति है, जो देखने में बिल्कुल भी अच्छा न लगे। तो ऐसे व्यक्ति से तो हर कोई दूर रहना ही पसन्द करेगा, क्योंकि वह देखने में ही काफी भद्धा लगता है।
लेकिन अगर कुरूप व्यक्ति बुद्धिमान हो, तो उसके कुरूप होने के बावजूद भी हर कोई उसके सम्पर्क में रहना चाहेगा क्योंकि बुद्धिमानी हर जगह ऊंचा स्थान ही गृहण करती है।
इसलिए बुद्धिमता, कुरूप व्यक्ति की कुरूपता को नजरअंदाज करवा देती है।
तपस्वियों का सौंदर्य क्षमाशीलता कैसे?
चाणक्य जी ने तपस्वी यहां उसे कहा है जो तपस्या करने के लिए दुनियादारी की भौतिक वस्तुयों को छोड़ देते है और आत्मकल्याण के लिए सिर्फ भक्ति या योग का सहारा लेते है। क्योंकि तपस्वी ने भौतिकता को छोड़ ही दिया तो फिर उसमे विकार होने ही नही चाहिए।
एक सच्चा तपस्वी वही है, जो मान-अपमान, जन्म-मृत्यु की सोच से परे हो। क्रोध तभी आता है जहां अपमान होता है, जब तपस्वी ने दुनियादारी की सब बातों के किनारा कर ही लिया तो उसमे क्रोध होना ही नही चाहिए भले ही सामने वाला कितना भी बुरा क्यों न बोल दें। इसीलिए चाणक्य जी ने कहा है कि तपस्वियों का सौंदर्य उनकी क्षमाशीलता ही है।
जानिये मनुष्य का असली सौंदर्य क्या है?
दोस्तों भले ही आज लोग भौतिकता में बहकर इन बातों को न माने, लेकिन चाणक्य जी ने जो बातें कही जिन्हें आज हम चाणक्य नीति के नाम से जानते है, वो तब भी सच थी और आज भी सच ही है।
Note: भले ही चाणक्य जी ने सिर्फ स्त्री को पतिव्रता होने को कहा, लेकिन एक अच्छा और सच्चा पति भी वही है, जो अपनी पत्नी के प्रति एकदम सच्चा हो। पति को भी पत्नीव्रता होना चाहिए।