दूसरों से उम्मीदे रखनी छोड़ दीजिये (Leave Hope From Others)



ऐसा कोई न मिले , हमको दे उपदेश। 

भौ सागर में डूबता , कर गहि काढे केश।।

दोस्तों, यह उपरोक्त कबीर जी का कथन है और इसी में ही हमारी ज़िन्दगी की सच्चाई भी छिपी हुयी है। कबीर जी को बहुत अधिक बोलने की आदत नहीं थी लेकिन वह जो भी बोले इतना सटीक बोले कि कुछ लफ्जो में ही सब कुछ कह देते थे। 
कुछ ऐसा ही इस दोहे में भी है। यह दोहा भले ही पढ़ने में छोटा लगे ,लेकिन इस dohe ka meaning बहुत ही गहरा है। आईये पहले इस दोहे के अर्थ को समझे और फिर इसकी गहराई को।  



दोहे का अर्थ :  कबीर जी कहते है कि उन्हें इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं मिला जो उन्हें उपदेश दे सके यानी कि कुछ सीखा सके ,सच्ची राह दिखा सके और इस भौ सागर यानी कि भव सागर में डूबने से बचाने के लिए उनके केश पकड़कर उन्हें बाहर निकाल ले। 
भाव : हम जीवन में कईयो को अपने गुरु की तरह मानते है ,जिनसे हम सीखते है, कईयों के आदर्शों पर चलते है ,लेकिन जब जीवन में हमे सबसे अधिक किसी की जरूरत होगी तब कोई साथ नहीं देगा ,उस समय हमारा ज्ञान ,हमारी आध्यात्मिकता ही हमे बचाएगी।  ऐसा कोई गुरु नहीं जो भव सागर में निकलने से बचा सके क्योंकि निकलना हमे ही खुद ही पड़ेगा ,भव सागर में डूबने से बचाने वाला कोई नहीं।

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अभी शायद अच्छे से समझ न आया हो क्योंकि गुरु तो ज्ञान देते है और वह भी बिना किसी स्वार्थ के ,तो फिर ऐसा क्यों लिखा कि भव सागर से निकालने वाला कोई भी नहीं। इसे भी एक example से समझते है।

Example : जब कोई swimming सीखता है तो वह simple pool में सीखता है या फिर कुछ लोग अपने दोस्तों के साथ कम बहाव वाली नदियों में भी सीख लेते है। जब  सीख रहे होते है तब सीखाने वाला हर तरह की परिस्थितियों में तैरने के बारे में बताता है और भारी बहाव  में कैसे तैर सकते है यह  भी बताता है। लेकिन अगर हम समुद्र के बीचों बीच अकेले हो और बहाव बहुत तेज हो तो क्या कोई हमे बचा सकेगा ?

कुछ इसी तरह से कबीर जी ने कहा है ,example में समुद्र शब्द शायद बहुत अजीब लगे कि समुद्र में कौन तैरने जाएगा ,इतने अधिक बहाव और इतने बड़े समुद्र में ? लेकिन अगर किसी ने मुक्ति प्राप्त करनी है तो हमारी जिंदगी समुद्र में तैरने की ही तरह है। कोई भी हमे थोड़ी बहुत समझ दे सकता है ,परेशानियों से  निकलने के लिए शायद कोई थोड़ा-बहुत बता दे या फिर सांत्वना दे दे लेकिन कहते है न जिस तन बीते ,वही तन जाने ,जिस पर बीतती है,उसके बारे में वही जानता है ,दूसरे सिर्फ बोल सकते है, कोई भी किसी का दुःख लेकर कम नहीं कर सकता ,सिर्फ थोड़ा सांत्वना ही दे सकते है।

भव सागर से पार उतरना भी कुछ ऐसा ही है। कोई हमे थोड़ा बहुत सीखा सकता है ,लेकिन हम कितना सीख रहे है और किन अर्थो में सीख रहे है और उसे  life में कैसे उतारते है ,यह तो हम पर ही निर्भर करता है। कोई भी हमारे दिमाग में कुछ घोलकर तो डाल नहीं सकता ,यही कबीर जी ने कहा कि कोई ऐसा न मिला जो केश खींचकर भव सागर से निकाल सके।

यह सब कबीर जी ने शायद हमारे लिए ही कहा हो क्योंकि वह तो महाज्ञानी थे और हम जैसे आम मनुष्य एक दूसरे से उम्मीदे लगाई रखते है कि वो कुछ कर देगा ,वो कुछ करा देगा ,लेकिन सीखना तो हमे ही पड़ेगा ,कोई हमारे दिमाग में तो कुछ डाल नहीं सकता। इसलिए स्वयं के इलावा ऐसा कोई भी नहीं है जो इस भव सागर को पार करा सके क्योंकि कर्म तो हर एक के अपने अलग-अलग है ,कोई भी हमे अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित तो जरूर कर सकता है ,लेकिन यह जरूरी नहीं कि हम वैसा करे ही।

इसलिए हमे दूसरों से उम्मीदे रखनी छोड़नी चाहिए और सच को जानकार इस भौतिकतावाद की जिंदगी से थोड़ा बाहर निकालकर अपनी जीवन नौका पार करने के लिए प्रयत्न करने चाहिए ताकि किसी समय हम जन्म-मरण के बंधन से मुक्त जरूर हो सके।

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दोस्तों आपको यह आर्टिकल दूसरों से उम्मीदे रखनी छोड़ दीजिये (Leave Hope From Others) जोकि कबीर जी के दोहे से ही प्रेरित और गहराई से उनके दोहों का अर्थ समझाने के लिए लिखा गया है , कैसा लगा हमे comment करके जरूर बताये ,आपके comments हमे आगे भी इसी तरह के articles लिखने के लिए प्रेरित करते रहते है ,इसलिए comment करना न भूले और अपने दोस्तों के साथ भी Whatsapp, Facebook , Google Plus आदि पर भी जरूर शेयर करे।

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