रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी(Rabindranath Tagore Biography in Hindi)

हमारे राष्ट्रगान “जन गण मन” लिखकर जिन्होंने देश को संगीत में पिरोया, भारतवर्ष को अपना एक राष्ट्रीय गीत दिया, अपनी कला के जोर पर पूरे एशिया में जिन्होंने सर्वप्रथम नॉवेल प्राइस जीत कर देश को खूब प्रसिद्ध कर दिया था;
कभी लिखकर, कभी गा कर और कभी चित्र बनाकर अपनी भावनाओं को लोगों के साथ जोड़कर जिन्होंने प्रस्तुत किया, वही थे रवीन्द्र नाथ टैगोर जी।

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परिचय:-

विश्व विख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक एवं भारतीय साहित्य में प्रथम नॉवेल पुरस्कार जीतने वाले रवीन्द्र नाथ जी, अपनी कला के दम से विश्व प्रसिद्ध थे। आजादी के समय जब सभी आजादी को ढाल बनाकर लड़ रहे थे, उस समय रवीन्द्र नाथ टैगोर जी कलम को अपनी शक्ति बनाकर साहित्य के माध्यम से आजादी प्राप्ति के लिए अपना योगदान दे रहे थे। उनके द्वारा लिखा हुआ देश के लिए गीत सभी लोगों के द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बाद “जन गण मन” राष्ट्रगीत के रूप में भारत वासियों से जुड़ गया। आजादी के लिए राष्ट्रगीत हमारा ठीक हैं सा बुलंद आवाज था जो वज्र के भारती अंग्रेजी हुकूमत पर गिरी थी। इसी प्रकार कई साहित्यिक योगदानों से रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने भारत की आजादी के साथ-साथ भारत की सोच की शैली एवं चेतना में जान फूंक दी थी तथा अपने साहित्यिक काम से विकास लाने से पहले विकसित सोच का होना कितना अहम हैं यह सिखलाया था । रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ही थे जिन्होंने सिखाया था की कलम से बड़ा हथियार या शस्त्र और कोई नहीं होता क्योंकि अन्य शस्त्र चलाना सभी व्यक्तियों के लिए आसान हैं पर कलम चलाना हर किसी के बस की बात नहीं होती हैं।

जन्म:-

7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुर बारी में रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ ठाकुर था तथा उनकी माता का नाम शारदा देवी था। एक बहुत अमीर घराने में रवीन्द्र जी का जन्म हुआ था। उनके परिवार के इतने धनी होने के कारण ही उन्हें ठाकुर कहा जाता था, परंतु उनका असल नाम रवीन्द्र कुशारी था जो बाद में रवीन्द्र नाथ टैगोर बन गया क्योंकि ब्रिटिश गवर्नमेंट के लोग उन्हें ठाकुर कहकर नहीं पुकार पाते थे जिस कारण से वह उन्हें टैगोर बोलने लगे और वह आज के समय में इतना सामान्य हो गया हैं कि भारत एवं विश्व भर के हर व्यक्ति उन्हें रवीन्द्र नाथ टैगोर ही कहते हैं।

शिक्षा:-

शिक्षा की बात करें तो रवीन्द्र नाथ टैगोर जी की आरंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी। बड़े होते-होते रवीन्द्र नाथ जी को बैरिस्टर बनने की बहुत इच्छा हुई थी तथा कानून की भी खोज करने में उनकी रूचि बहुत ज्यादा थी इन्हीं कारणों के कारण अपना स्कूली सफर खत्म करने के बाद वह लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में अपना दाखिला लेकर कानून तथा बैरिस्टर बनने की तैयारी करने लगे परंतु कुछ ही समय बाद किसी कारणवश बिना डिग्री प्राप्त किए वह देश पुनः लौट आए। शुरुआती समय में उन्हें अपने स्कूल के दिनों में कई प्रकार की मानसिक तथा शारीरिक शिक्षाएं दी जाती थी जिनमें से नदी में तैरना, जुडो कराटे एवं उनके घर बहुत ही बड़े बड़े संगीतकार भी उन्हें शिक्षित करने आते थे। इन्हीं कारणों के कारण रवीन्द्र नाथ टैगोर जी सर्वप्रथम एक विद्वान बन फिर अपने ज्ञान के साथ नॉवेल पुरस्कार जीतने वाले एशिया के पहले व्यक्ति बन गए। यूं तो आईएएस ऑफिसर बनना आज के समय में बहुत बड़ी बात होती हैं पर एक समय था जब यह भारत वासियों के लिए सोचना भी कठिन था कि वह एक आईएएस ऑफिसर बनेंगे क्योंकि इसकी शिक्षा लंदन में दी जाती थी और उन सभी समस्याओं का सामना करते हुए रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के बड़े भैया पहले व्यक्ति भारत के बने जिन्होंने आईएएस ऑफिसर बनने की परीक्षा को सफलतापूर्वक पार किया था। देखा जाए तो रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के साथ साथ उनका पूरा परिवार बहुत ज्यादा शिक्षित था और वे आर्थिक स्थिति से भी बहुत ज्यादा अच्छे थे। उनके घर में कला की एक अलग भूमिका थी। शिक्षा के साथ-साथ सभी उनके परिवार के सदस्य अन्य काम में भी बहुत निपुण थे पर रवीन्द्र नाथ टैगोर जी जैसा कला में निपुण कोई नहीं हो पाया। रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के शिक्षा का भी कोई मुकाबला नहीं था।

सोच:-

रवीन्द्र नाथ टैगोर जी की सोच की बात की जाए तो हमें यह पता चलता हैं कि वो एक प्रकृतिवाद, महानुभाव एवं अंतर्राष्ट्रीय एकता की सोच उनके मन में रहती थी। रवीन्द्र नाथ टैगोर स्वयं ऐसा मानते थे कि बच्चों को एवं उनकी सोच को आजादी के साथ बढ़ने देना चाहिए जिससे वो गिरेंगे तो उठना सीखेंगे, खुद के साथ-साथ देश को सवारना सीखेंगे एवं अपने विकसित सोच के साथ देश के विकास में भी अहम भूमिका निभा पाएंगे। आजाद सोच से ही सोच में सुंदरता आती हैं, किताबी कोई रोक नहीं होता हैं। समय चाहे जो भी चल रहा हो मानवता हमेशा बनी रहनी चाहिए क्योंकि यही विनाश को रोकने में अहम भूमिका निभाती हैं जब मैं मान्यता बाद वाली प्रॉब्लम सब एक दूसरे का साथ देंगे सब में वसुदेव कुटुंबकम की भावना होगी तब जाकर सब एक दूसरे को अपना मान कर दुख सुख के साथी बनेंगे। इस प्रकार की सोच से अपने कलम की जोर से रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने भारत वासियों को सोचने का सही दिशा दिखाया था।

वैवाहिक जीवन:-

रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने मृणालिनी देवी से विवाह किया था और उस विवाद से उन्हें पांच संतानों की प्राप्ति हुई थी।

उनके कार्य:-

एक लेखक के रूप में उन्होंने अपना जीवन शुरू किया था और सर्वप्रथम सफलता उन्हें मात्री भाषा बंगाली में मिला था। अपने कार्यों से अर्थात अपनी कविताओं से वह धीरे धीरे करके पश्चिम बंगाल में बहुत ही नामी व्यक्ति होने लग गए। के द्वारा लिखे गए कार्य शुरुआत से ही इतने ज्यादा प्रसिद्ध होने लग गए थे कि लोग उन्हें बार-बार पढ़कर भी दोबारा पढ़ने की चाह रखते थे। रवीन्द्र नाथ टैगोर जी मूल रूप से मानववाद प्रकृतिवाद जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चित्रकारी करते कविता लिखते गानों के बोल लिख दे और तो और गाना भी गाते हैं। मूल रूप से देखा जाए तो हमें क्या पता चलता हैं कि रवीन्द्र नाथ टैगोर जी एक ऐसे व्यक्ति थे जो कला के क्षेत्र में इतने निपुण थे कि उनका कोई मुकाबला नहीं था और ना हैं और ना होगा। रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के कुछ मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:-

  • 1910 में आई राजा(किंग ऑफ डार्क चेंबर)।
  • 1912 में आई डाकघर (द पोस्ट ऑफिस)।
  • 1912 अचलायतन।

इस प्रकार के अन्य लेखों से वह भारत देश में बहुत प्रसिद्ध होने लगे थे।इसके बाद ही उन्होंने मन बना लिया था कि वह अब लेखन की कला को जीवन का आधार बनाकर चलेंगे।

उनकी कला शैली:-

रवीन्द्र नाथ टैगोर जी कई कार्यों इतने ज्यादा प्रबल अभी दाढ़ी रखते थे कि वह बहुत सारे कार्य अच्छे से कर लेते थे जैसे कविता लिखना,कहानी लिख, गीत को लिखना एवं उनको गाना, चित्रकारी करना इस प्रकार के कई कलाओं में वह बहुत निपुण थे। 2200 से भी अधिक उन्होंने लिखा एवं गाया भी और चित्रकारी भी उनकी 2300 से अधिक पाई गई हैं। इस प्रकार से उनके पास एक इतना बड़ा संग्रहालय हैं जिसमें उनकी कविता से लेकर उनके गीत से लेकर उनके चित्रकारी तक वह सभी कार्य मौजूद हैं जिनके कारण आज विश्व भर के हर एक व्यक्ति खेल सहन में रवीन्द्र नाथ टैगोर जी अमर हो चुके हैं। के कार्यों को देखकर भी कई सारे लेखक आज भी एवं आने वाले समय में भी प्रेरित होंगे एवं अपनी रचनाओं में उनके भारती जान डालने का प्रयत्न करेंगे।घूमना:- रविंद्र नाथ टैगोर जी अपने लेखन कला के साथ-साथ घूमने के भी बहुत शौकीन थे उन्होंने अपने समय में 34 देश में घुमा था।
घूमना:- रवीन्द्र नाथ टैगोर जी अपने लेखन कला के साथ-साथ घूमने के भी बहुत शौकीन थे उन्होंने अपने समय में 34 देश में घुमा था। उन्होंने यह कार्य उस समय किया था जिसमें देश से निकलना ही मुश्किल था, देश में प्रीति हुकूमत का शासन बना हुआ था। फिर भी अपने दम पर उन्होंने 34 देश में घुमा। कला के बाद अगर किसी चीज में उनकी रूचि बहुत अधिक थी तो वह घूमना ही था और अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होंने विश्व का भ्रमण करने का निर्णय लिया था।
राष्ट्रवाद-अंतर-राष्ट्रीयवाद:- आजादी के उस समय पर जब अंग्रेजी हुकूमत बनी हुई थी और आजादी के नाम को ढाल बनाकर भारतवासी राष्ट्रवाद के लिए लड़ते थे उस समय रवीन्द्र जी अंतरराष्ट्रीय की भावना लेकर अपने विचारों को लिखकर या चित्रकारी कर प्रस्तुत करते थे क्योंकि उनके अनुसार संपूर्ण एकता से बढ़कर और कुछ अच्छा नहीं होता हैं। जब पूरा मानव जाति एक साथ चलेगा तभी तो हर समस्या का निवारण होगा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा जीव जंतु सुरक्षित रहेंगे और मानवता के कारण धरती स्वर्ग से भी सुंदर बन जाएगी। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकता की भावना लेकर आने की इच्छा रवीन्द्र नाथ टैगोर जी की थी जिसे पूरा करने के लिए रवीन्द्र जी अपने लेखन कला एवं चित्रकारी में इसका प्रदर्शन एवं इस विषय पर इतने देने का प्रयत्न करते थे। वह चाहते थे कि इन बिंदुओं पर लोग अपना ध्यान दें और उनसे जुड़ कर वह अंतरराष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी कदम उठाए।
उपदेश:-

रवीन्द्र टैगोर जी द्वारा दिया गया एक ऐसा गीत जो इतना जोश प्रदान करता हैं जिससे चाहे हमारे साथ कोई दे या ना दे अकेले चलने की ताकत आती हैं। संगीत का बोल उन्होंने बाँग्ला में लिखा था जो कुछ इस प्रकार का हैं:-

“যদি তোর ডাক শুনে কেউ না আসে তবে একলা চলো রে”

हिंदी में अर्थ यह होता हैं कि अगर आपके बुलाने पर कोई नहीं आता हैं तो आप को अकेला चलना चाहिए।
सब लोग आपके कार्य को समझेंगे आपको समझेंगे तो लोग खुद आप से जुड़ेंगे। जैसे गांधी जी एक समय था जब उनके साथ कोई जुड़ा नहीं था फिर लोगों ने जैसे-जैसे धीरे धीरे कर कर उनके कार्य को और उनको समझा पूरा भारत वर्ष उनका हो गया उनके एक इशारे पर सब कुछ होने लगा था लोग उन्हें इतना मानते थे कि आज पूरा भारत उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में पूजा हैं। इसीलिए रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने यह कहा था कि अगर आपके बुलाने पर कोई ना आए तो आप को अकेला चलना चाहिए रुकना नहीं चाहिए।

महात्मा का खिताब:-

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को महात्मा का खिताब रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने ही दिया था। क्योंकि रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ऐसा मानते थे कि उनके जितना महान पुरुष महान आत्मा भारतवर्ष में आया ही नहीं हैं इन्हीं कारणों के कारण उन्होंने गांधी जी को महात्मा गांधी जी के नाम से सम्मानित किया था। प्ले आज विश्व भर मुख्य रूप से भारत में उन्हें महात्मा गांधी कहकर के नाम से याद किया जाता हैं।

गीत:-

रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के गीत इतने ज्यादा प्रभावशाली होते थे कि वह लोगों के मन में आसानी से बस जाते थे आज के समय में भी उनके गीत के बोल हर भाषा में पाए जाते हैं जैसे हिंदी के एक गाने में “छू-कर मेरे मन को किया तुमने क्या इशारा” इस गाने में हमें रवीन्द्र नाथ जी के गाने के भाव को महसूस करते हैं और ऐसे कई गाने हैं जय हो हिंदी यह कई अन्य भाषा में बनी हूं उनमें रवीन्द्र जी के गानों की भाव महसूस होती हैं।

गीतांजलि:-

उनके इस कार्य को अंग्रेजी भाषा में भी लिखा गया जो यूरोप और अमेरिका में इतना ज्यादा प्रचलित हो गया जिस कारण से अन्य देश के देशवासियों ने अपने पास बुलवाकर उनसे ज्ञान अर्जित करते थे एवं साहित्य क्या सही अर्थ समझते थे गीतांजलि ने उन्हें इतना प्रसिद्ध बना दिया था, उससे उनका प्रभाव विश्व भर में बहुत अधिक बढ़ गया था। जिसके बाद गीतांजलि जैसे कई कार्य उन्होंने लिखा एवं अपना नाम और प्रज्वलित कराया।

बांग्लादेश का राष्ट्रगान:-

रवीन्द्र टैगोर जी ने सिर्फ भारत का ही नहीं बांग्लादेश का भी राष्ट्रगान को लिखा था जो कि कुछ इस प्रकार हैं:-

“আমার সোনার বাংলা”

इसका हिंदी में अर्थ होता हैं मेरा सोने का बाँग्ला, इस बोल से बांग्लादेश का राष्ट्रगान शुरू होता हैं। रवीन्द्र नाथ टैगोर जी इतनी ज्यादा बुद्धिजीवी थे कि उन्होंने देश को पहचान दिलवाने वाला कार्य किया था अर्थात 2 देशों का राष्ट्रगीत लिखना कोई छोटी मोटी बात नहीं इस देश को जो एक अलग पहचान मिलती हैं वह किस देश को दे पाना असंभव सा हैं।

महान साहित्यकार:-

रवीन्द्र टैगोर जीजा सामान्य साहित्यकार शायरी कोई बन पाया हैं क्योंकि वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कला के क्षेत्र में नॉवेल पुरस्कार जीता और वह पहले भारतीय थे जिन्होंने यह किया था।

महान उनकी मृत्यु:-

7 अगस्त 1941 में भारतवर्ष में पल आया जिसमें ऐसा कलाकार अपनी धरती मां को छोड़कर स्वर्गीय और चला गया। रवीन्द्र नाथ टैगोर जी की मृत्यु के कुछ साल बाद ही भारत को आजादी मिल गई और उस आजादी में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी इसके लिए हम देशवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।

सीख:-

रवीन्द्र नाथ टैगोर जी से जो सबसे बड़ी सीट हमें लेनी चाहिए वह हैं कि राष्ट्रवाद की भावना को हटाकर अंतरराष्ट्रीय भावना को रखना क्योंकि अगर हमारे मन में राष्ट्रवाद की भावना होगी तो हम अपने देश के अलावा किसी और देश को महान नहीं मानेंगे क्योंकि सही नहीं हैं अगर हमारी भावना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होगी तो अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हमारी एकता बनी रहेगी और अगर चाहत अंतरराष्ट्रीय एकता बन गई तो सीमाएं हट जाएंगे सब अपने आप को एक दूसरे का अपना सदा मानने लगेंगे और इन्हीं कारणों से धरती स्वर्ग से भी सुंदर बन जाएगी यह सीख हमें रवीन्द्र नाथ टैगोर जी से लेनी चाहिए जिससे नव निर्वाण होगा देश अपने साथ-साथ सभी देशों में विकास लायक।

निष्कर्ष:-

छोटे रूप में अगर हम समझने की कोशिश करें तो हमारा जीवन का लक्ष्य बिल्कुल रवीन्द्र नाथ टैगोर जी जैसा होना चाहिए जिस प्रकार से प्रकृति मानववाद देश के स्थान पर संपूर्ण देश अर्थात अपने देश के साथ-साथ अन्य देश में भी एकता की भावना ले आना एवं उससे ही सभी समस्याओं का निवारण करना यह सोच हमारे युवाओं में भी होना चाहिए तब जाकर हम एकता की शक्ति को आज-मा कर सभी समस्याओं से साथ मिलकर लड़ पाएंगे। रास्ते में चल-कर अगर हमारे बुलाने पर भी कोई आता नहीं हो तो हमें अकेला चलते रहना चाहिए,जैसे रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने कहा था कि अगर आपके बुलाने पर भी कोई आता नहीं हो तो आपको निरंतर चलते रहना चाहिए क्योंकि जब आपका कार्य लोग समझेंगे तो वह आपसे जरूर जुड़ेंगे आपका साथ जरूर देंगे तब तक कि आपका कर्तव्य हैं कि आप अपने कर्म को जारी रखें और लक्ष्य की प्राप्ति ना होने तक निरंतर प्रयास करते रहे।

जीवन जीने का सही आधार बस इसी में हैं कि हमें निरंतर चलते रहना चाहिए क्योंकि रुकना मौत होता हैं और चलते रहना जीवन चक्र को चलाए रखने जैसा होता हैं। इस प्रकार की विकासशील सोच हमें भी अपना आनी चाहिए तब जाकर रवीन्द्र नाथ टैगोर जी जैसा महापुरुष हम भी बन पाएंगे। और अपने साथ-साथ देश को भी ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे जहां मानवता का भावना हर एक व्यक्ति में होगा पर्यावरण का संरक्षण होगा एवं उसकी सुंदरता बनाए रखी जाएगी पशुओं के साथ भी अपने-पन की भावना रहेगी साथी साथ महिलाओं को भी शिक्षित होने का अवसर दिया जाएगा एवं उन्हें भी जीवन के हर उस युद्ध से लड़ने में सहायता के साथ-साथ सही दिशा एवं मार्गदर्शन दिया जाएगा। भारत की कल्पना हर एक स्वतंत्रता सेनानी ने किया था जहां पर श्री पुरुष एक साथ मिलकर हर समस्या का सामना कर रहा हूं एवं सबका आजाद सोचो क्योंकि सभी स्वतंत्रता सेनानियों का मानना था कि जब तक सूची आजाद ना हो तो नया सोच तन मन में कैसे होगा आजाद सोच के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिए कर्म निरंतर करना चाहिए लक्ष्य की प्राप्ति तभी तो होगी जब कोशिश में जिद्द आग की तरह होगा।
उम्र चाहे जो भी हो हमें अपना संपूर्ण शिक्षा अर्जित करना पड़ेगा तब जाकर हम एक शिक्षित व्यक्ति बनकर समाज सुधारक का कार्य कर पाएंगे जहां पर सिर्फ देश के विकास की नहीं अंतरराष्ट्रीय एकता की भावना होगी।

रवीन्द्र नाथ टैगोर जी से सीखने को कई बातें हैं अभी हमारे ऊपर हैं हम उनसे ज्ञान अर्जित कर जीवन को सुंदर बनाते हैं या बस बैठे रह कर इंतजार करते रहेंगे।

“निर्णय यह हमारा होगा” ।

धन्यवाद।