तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर । बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर ।।
मीठे वचन से हम सब ओर सुख फैला सकते हैं। किसी को भी वश में करने के लिए मिठास भरे शब्द एक मन्त्र जैसे होते हैं इसलिए इंसान को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे और अनजानों को भी अपना बना ले I
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक | पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
मुखिया यानि की लीडर बिलकुल इंसान के मुख की तरह होना चाहिए। मुख खाना अकेला खाता है लेकिन शरीर के सभी अंगों का बराबर पोषण करता है। उसी तरह मुखिया को अपना काम इस तरह से करना चाहिए की उसका फल सब में बंटे।
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। ‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
जहां जाने से वहां के लोग आप को देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आँखों में प्रेम न हो, ऐसी जगह चाहे कितना ही लाभ और सम्पन्नता क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए।
तुलसी’ साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक। साहस, सुकृत, सुसत्य–व्रत, राम–भरोसो एक॥
किसी विपत्ति के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए॥
तुम्हारे हाथ में जितना है उतना करो बाकी भगवान् पर विशवास करके चैन की बांसुरी बजाओ। इस संसार में कुछ भी अनहोनी नहीं होगी और जो होना उसे कोई रोक नहीं सकता। इसलिये आप सभी आशंकाओं के तनाव से मुक्त होकर अपना काम करते रहो।
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन। अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
जब बारिश का मौसम होता है तो मेढ़कों के टर्राने की आवाज इतनी तेज हो जाती है कि उसके सामने कोयल की भी आवाज कम लगने लगती है। इसी प्रकार जब मेढ़क जैसे मूर्ख लोग अधिक बोलने लग जाते हैं, तब समझदार लोग अपना मौन धारण कर लेते हैं। वो अपनी ऊर्जा को व्यर्थ नहीं करता। समय अपने आप सही गलत का एहसास करा देता है।
करम प्रधान विस्व करि राखा। जो जस करई सो तस फलु चाखा।।
इश्वर ने कर्म को ही महानता दी है। उनका कहना है कि जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।