शिक्षा हो तो ऐसी हो
जो न सिर्फ रोजी-रोटी कमाना सिखाये
बल्कि जिंदगी जीने का तरीका भी सिखा दें.
शिक्षा… दोस्तों कैसा शब्द है न शिक्षा, एकदम से किताबें चेहरे के सामने ला देता है और एक पढ़ाकू और समझदार छवि मन में उभर आती है. और जो पढ़ा-लिखा होगा वेह रोजी-रोटी कमाने के भी लायक बन ही जायेगा. लेकिन क्या शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ रोजी-रोटी कमाने तक ही सीमित है? क्या इससे अधिक शिक्षा और कुछ भी नही?
कुछ कह देंगे कि इससे बंदे का attitude बदल जाता है, वह दुनिया को अलग नजरिये से देखना सीख जाता है. चलिए यह होता होगा, लेकिन क्या जो यह होता है, वह सही है?
आजकल की उच्च शिक्षा से बंदे का attitude जरुर बदलता है यह एकदम सच है, लेकिन उसके उस attitude (छवि) में attitude (अहंकार) ही आ जाता है. तो ऐसा attitude किस काम का जिससे हम अपने attitude (अहंकार को न खत्म कर सकें) को ही न सम्भाल सके?
और दूसरी बात नजरिये की करते है, जी नजरिया भी एकदम बदल जाता है, पर कैसे वाला ? कोई ज्यादा पढ़ा-लिखा हो तो उसे किसी कम पढ़े-लिखे से बात तक करने में शर्म आ जाती है और कुछ तो कम पढ़े लिखो से बात करने को ऐसा समझते है जैसे किसी जानवर से बात कर रहे हो. लेकिन इससे उल्ट, किसी जानवर से सहानुभूति दिखाने को अपनी शान समझते है. जानवरों से प्रेम करना अच्छी बात है, लेकिन अगर इन्सान होकर इन्सान की ही कोई कद्र नही कर सकता तो वह जानवर की क्या करेगा? अगर जानवर की कद्र कर भी रहा है तो उसका क्या फायदा जब तक की इन्सान को ही इन्सान न माने?
दोस्तों, यह कुछ ऐसा attitude है जो उच्च शिक्षा के अभिमान में स्वाभाविकता तौर से किसी भी बंदे में आ जाता है? लेकिन वह शिक्षा ही किस काम की जिससे अहम भाव आएं ? शिक्षा का मूल उद्देश्य तो हमारे अंदर के असीमित प्रकाश को दुबारा से प्रकाशमान करना है जोकि अज्ञान के बादलों के अन्धकार के तले दबा पड़ा है. जब कोई व्यक्ति अपने अंदर के ज्ञान के प्रकाश को फिर से प्रकाशमान कर लेता है तब वह व्यक्ति असल में शिक्षित है और ऐसा व्यक्ति न सिर्फ अपनी बढ़िया रोजी-रोटी कमाता है बल्कि अपने आस-पास के भी लोगों का हमेशा भला करता है.
लेकिन जो सिर्फ अपने ज्ञान के अहम् भाव के अन्धकार में फंस जाता है वह भले ही बढ़िया कमा लें, लेकिन कभी किसी का भला नही कर पाता क्यूंकि वह दूसरों को हमेशा अपने से कम आंकता है. याद रखिये जब समय आता है तो चींटी भी हाथी की बस करवा देती है. वैसे भी वह जीवन ही किस काम का जो किसी के काम न आ सके.
याद रखिये हमेशा एक बात
अपने लिए तो जानवर भी जी लेते है
लेकिन सच्चा इन्सान तो वही जो स्वयं तो जीए ही
साथ ही साथ दूसरों को भी जीना सीखा दे
और सबका भला करें.
कैसी शिक्षा का फायदा नहीं ?
तो दोस्तों अगर आप भी उच्च शिक्षा गृहण कर रहे है या कर चुके है, लेकिन आपके अंदर भी अहम् भाव है तो ऐसी शिक्षा का कोई फायदा नही. अभी समय है अपने अंदर झांकिये और अपने अंदर के अहम को खत्म करके सबको परमपिता परमात्मा की सन्तान मानते हुए सबका हित सोचा कीजिये. यह आप किसी पर भी personally नही है, बल्कि जिसे लगता है कि उसकी शिक्षा तो ऐसी ही रही तो उनके लिए एक बढ़िया मौका है एकांत में बैठकर सोचने का और अपना attitude (छवि) बदलकर अपने अंदर के attitude (अहंकार) को खत्म करने का.
क्यूंकि…
अगर बन्दा अपना स्वयं का आंकलन स्वयं ही कर लें
तो उसे अन्य लोगों के सामने कभी भी शर्मिंदा नही होना पड़ता.
हमेशा याद रखिये शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ रोजी-रोटी तक ही सीमित नही, बल्कि शिक्षा का असल अर्थ तो जीना सीखना है. एक अनपढ़ भी अपनी रोजी-रोटी कमा लेता है और यहाँ तक की जानवर भी पेट भर लेते है, बिना किसी शिक्षा गृहण किये के बावजूद. तो अगर हमे मौका मिला है कि सभ्य समाज में रहकर उच्च शिक्षा गृहण कर रहे है तो हमे इसे सही अर्थों में गृहण करना चाहिए.
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