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आज की शिक्षा ऐसी क्यों हो गयी है……..?

दोस्तों…. आज के समय मे भले ही शिक्षा में उन्नति आयी हो और बहुत से लोग पहले की तुलना में भले ही शिक्षित हो रहे हो, लेकिन यह बड़े अफसोस की बात है कि विद्यार्थी शिक्षित होने के बावजूद भी शिक्षित नही है।

शायद आप सबको मेरी बात बुरी लगे…. लेकिन अब तक मैंने जितना देखा और परखा है, बहुत ही कम विद्यार्थी होते है जो सही मायनों में शिक्षित है।

ऐसा क्यों….. चलिए इस पर बात करते है-

आजकल हर स्कूल प्रतियोगिताओं की दौड़ के कारण बच्चो को पढ़ना-लिखना सिखाते है, खेल-कूद सिखाते है, लेकिन ऐसा शायद ही कोई स्कूल हो (बहुत कम होंगे) जो बच्चो को हमारी संस्कृति के गौरवमयी संस्कारो के बारे में बताता हो।

Mostly जो schools होते है ,वह क्या; आपको सब कुछ तो सीखा देंगे, लेकिन क्या कभी हमारी भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांतों के बारे में बताएंगे?

आज के schools में इंग्लिश ही सब कुछ रह गयी है और जो जो भी विदेशी culture है, बस इन्हें वही सब कुछ सही लगता है और भारतीय संस्कृति तो इनके लिए जैसे बेकार है(क्षमा कीजिएगा, लेकिन कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है)।

अगर किसी बच्चे को अंग्रेजी नही आती तो वह अनपढ़….? ऐसा क्यों? क्यों आज कल के स्कूल मूल शिक्षा देने से पीछे हटते जा रहे है? क्यों आज कल स्कूल में हिंदी को गंवारों की भाषा माना जाता है? क्यों स्कूल में सत्य और इम्मानदारी पर जोर नही दिया जाता?

क्यों कॉलेज में गाली निकालने वालो को अच्छा और जो गाली न निकालता हो उसे गंवार कहा जाता है? क्यों स्कूल और colleges में भारतीय परिधान को बेकार और पश्चिमी परिधानों को बढ़िया समझा जाता है और उनके लिए अलग से fashion show भी करवाये जाते है?

दोस्तों बाते तो और भी बहुत-सी है, लेकिन मैं लिख नही सकता,पर शायद आप समझ गए हो। क्या आप मुझे इनके जवाब या अपनी राय दे सकते है?

शायद कईयो को या बहुत-से लोगो को मेरी यह बातें गलत लगे, लेकिन एक बार सोचिये कि विदेशी कल्चर में ऐसा क्या खास है, जो भारतीय संस्कृति में नही? पूरी दुनिया भारत के आदर्शों को उच्चतम मानती है और हम भारतीय क्यों इससे ही दूर होते जा रहे है? क्यों हम अपनी गौरवमयी संस्कृति को भूलते और विदेशी को अपनाते जा रहे है?

अगर आपके पास जवाब हो तो GyanPunji.com पर जरूर दीजिये, आपका जवाब जो भी हो ,चाहे सकारात्मक या फिर नकारात्मक लेकिन अपना जवाब जरूर दीजिये।

नोट: यह मेरे स्वयं के विचार है, इसका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही और न ही ऐसा कहना है कि यह सभी जगह ही होता है,लेकिन अब बहुत से संस्थानों में ऐसा हो रहा है।

Nikhil Jain

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