अतिथि कौन है?
हम अतिथि को मेहमान के नाम से भी जानते है| हमारी भारतीय संस्कृति में अतिथि सम्मान के सूचक है | अगर हम पहले समय की बात करें तो अतिथियों का आदर सम्मान करने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है |जब भगवान श्री कृष्ण के यहाँ सुदामा एक अतिथि बनकर आये तो उन्होंने उनके स्वागत सत्कार में कोई कमी नहीं रखी थी| हमारी संस्कृत भाषा में एक श्लोक भी बहुत प्रसिद्द है –
“अतिथि देवों भवः”
यह श्लोक हमारे भारत की आन, मान, शान का का प्रतीक है | अतिथि हमारे लिये देवता के तुल्य है|
मेहमानों की इज्ज़त करना हमारा धर्म है| हमारे भारत का यह विचार हमारे भारत के मार्गों पर शान व सम्मान के साथ लिखा हुआ रहता है। इसे आप सबने देखा भी होगा, इसका अर्थ है कि “भारत में अन्य देश से आने वाला हर एक व्यक्ति और हमारे घर द्वार में पधारने वाला हर एक इंसान चाहे वह कोई भी हो हमारा अतिथि है |” हम सब भारतवासी हमारी भारत माता की इस पवित्र धरती पर स्नेह व प्रेम के साथ उसका स:सम्मान और स्वागत करते है |
हमारी भारतीय संस्कृति, सभ्यता ने हमें अपने अतिथियों का सम्मान करना सिखाया है |
पहले समय में जब अतिथि हमारे घर पधारते थे, तो हम सबसे पहले उनके पैरों को धुलाते थे फिर उनके आसन ग्रहण करने को कहने थे | उनके लिये घर में कई प्रकार के मेवे व मिष्ठान पकाए जाते थे| उनको ख़ुशी-ख़ुशी भोजन कराया जाता था| हम उनके साथ अपना पूरा दिन बिताते थे और जब वह जाते थे तो उनको वस्त्र, उपहार देकर विदा किया जाता था |
वर्तमान समय में अतिथि का स्वागत
आज के समय में भी हम अतिथियों का सम्मान बखूबी निभाते है पर आज हमारे पास समय का कुछ अभाव हो गया है| आधुनिक युग में हमारी Life में भाग-दौड़ पहले की अपेक्षा बढ़ गयी है|
पहले समय में हमारा परिवार संयुक्त परिवार हुआ करता था और सब एकदूसरे की देखभाल करने के लिये एकसाथ उपस्थित भी रहते थे परंतु आज के वर्तमान समय में परिवार, एकल परिवार है इसलिए लोगों की जिम्मेदारियां भी बढ़ गयी है । जिस कारण हम अपने अतिथियों को उतना समय व सम्मान नहीं दे पाते जितना पहले के समय में दिया करते थे। पर आज भी हम हमारे अतिथियों को जब भी घर पर आमंत्रित करते है तो अपने समय को ध्यान रखते हुये उनके खाने, पीने, स्वागत,सत्कार में कोई भी कमी नहीं होने देते है, उनको पूरा खुश करने की कोशिश करते है ताकि हमारे मेहमान हमारे घर आते रहे और हमारी दूरियां कम होती रहे |
अतिथियों का सम्मान करने में ही हम भारतीयों का सम्मान छुपा हुआ है| कोई कितने भी बड़े पद पर आ जाये या कोई कितना भी अपने काम में व्यस्त हो जाये पर हम भारतीय, अपने मेहमानों की कद्र करते हुये, अपने रिश्तों को संवारते हुये आज तक आगे बढ़े है और आगे भी हम आने वाली अपनी पीढ़ियों को यही शिक्षा देंगे ताकि हमारे भारत की शान में कभी कमी न आये पाये|
यह भी पढ़े : जिंदगी को आसान कैसे बनाये
अतिथि मात्र सम्मान ही नही, अपितु हमारा संस्कार भी है
दोस्तों, यूं तो मेहमान दुनिया के हर देश के हर घर मे आते होंगे। लेकिन हम भारतीय कुछ ज्यादा ही किस्मत वाले है कि हमारे यहां हर चीज को celebrate करने की परंपरा है। Celebrate ,इसलिए नही कि दिखावा करे, बल्कि यह इसलिए होता है ताकि tension से दूर रह सके। जब दोस्त-दोस्त, रिश्तेदार इत्यादि आपस मे मिलते है तो एक दूसरे के साथ सुख-दुख सांझे होते है और जैसा कि कहते है सुख बांटने से बढ़ता है और दुख बांटने से घटता है।
सुख तो बढ़ ही जाएगा यह तो आप समझ ही जाओगे, लेकिन भले दुख कैसे घटेगा?
यो दोस्तो उसका कारण यह है कि जब हमे कोई मुश्किल हो तो जो दोस्त/रिश्तेदार सच मे हमारा भला चाहते है, वह हमें सलाह भी दे देते है और हमारी जिस प्रकार भी help हो सके करते है।
यही है हम भारतीयों की खासियत, जो अपने लिए तो जीते ही है, और साथ ही साथ अपने सगे-सम्बधनियों के लिए भी।
ऊपर अपने श्री कृष्ण और सुदामा की बात की थी, सुदामा भी अपने मित्र श्री कृष्ण के साथ दुख सांझा करने गया था, जिसके बाद उसके सारे दुख टल गए।
अतिथि सत्कार के ऐसे पैमाने पूरी दुनिया मे आपको शायद ही कही देखने की मिले
दोस्तों आपको यह आर्टिकल “अतिथि… हमारे सुख/दुख के साथी (अतिथि देवो भव: पर निबंध)” कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ सांझा करना मत भूले।
ज्ञानपुंजी की तरफ से अपने व्हाट्सएप्प पर रोजाना प्रेरणादायक विचार प्राप्त करने के लिए 9803282900 पर अपना नाम और शहर लिखकर व्हाट्सएप्प मैसेज करे।