भगवान के दर्शन (Bhagwan Ke Darshan)


दोस्तों,  जो भी मनुष्य ईश्वर को मानता है , वह अक्सर सोचता है कि , “काश ,मुझे एक बार भगवान के दर्शन हो जाए ,सिर्फ एकबार अपने इष्ट को देखना चाहता हूँ। ” ऐसी भावना हर एक के मन में होती ही है जिनकी भी ईश्वर में अटूट श्रद्धा है। आपके मन में भी होती ही होगी।

लेकिन क्या यह इच्छा पूरी होती है ? अधिकतर तो सोचते है कि ईश्वर तो दर्शन देंगे ही नहीं। जीते जी उनके दर्शन हमे हो ही नहीं सकते। पर क्या यह पूर्णतः सच है ? नहीं। ईश्वर के दर्शन भी लोगों को हो सकते है और होते भी है ,सिर्फ देखने के लिए आँखें  होनी चाहिए।

अब बात आती है आँखों की ,आँखें तो सभी मनुष्यों के पास है ही। आँखों के इलावा अन्य कौनसी आँखें हो? तो जवाब है मन की आँखें और सच्चाई की आँखें।

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

शायद यह उत्तर आपने बहुत बार सुना होगा ,लेकिन इसको गहराई से कईयो ने ही समझा होगा। अब सच्चाई की आँखों में ऐसा क्या है? ,जबकि वह तो सचाई है ,न कि कोई आँखें। आँखें और सच्चाई दो अलग-अलग चीजे है।

तो दोस्तों पहले एक कहावत पर ध्यान देते है –

“हाथी के दांत दिखाने के और ,खाने के और। “

यह शायद आपने सुना ही होगा ,यानी कि हाथी जो दांत दिखाता है उनसे खाता नहीं ,और जिनसे खाता है उन्हें दिखता नहीं।

वैसे तो यह कहावत नकारात्मक सोच को दर्शाती है ,लेकिन कई बार नकारात्मक भी सकारात्मक बन जाती है।

कुछ ऐसा ही हमारी आँखों के साथ है, इस कहावत को पढ़िए –

“मनुष्य की आँखें दुनिया के लिए और , ईश्वर के लिए और। “

 
अब इस कहावत को deeply सोचिये । यानी कि मनुष्य दुनिया को जिस आँखों से देखता है उसी आँखों से ईश्वर को नहीं देख सकता। शरीर वाली आँखें सिर्फ दुनिया देखने के लिए या फिर दुनिया वालों को दिखाने के लिए ही है। लेकिन अगर भगवान के दर्शन करने है तो इसके लिए भीतर की आँखें चाहिए। भीतर की आँखों में से एक आँख सच्चाई की भी है। लेकिन अजब तो देखिये ,हाथी को तो उसके दोनों यानी की दिखाने वाले और खाने वाले ,दोनों ही दांतो का पता होता है। लेकिन मनुष्य को अपनी भीतरी आँखों का पता ही नहीं और न ही इन आँखों को कोई भी वैज्ञानिक पता लगा सकता है।

तो इन आँखों से ईश्वर को कैसे देखे। इसके बारे में कबीर जी का एक बहुत दोहा है –

“साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप। 
  जाके हिरदय साँच है , ताके हिरदय आप।”

अर्थ :
कबीर जी कहते है कि सच के बराबर अन्य तपस्या कोई  नहीं है ,सच की तपस्या सबसे बड़ी और सबसे कठिन है और झूठ के बराबर अन्य कोई पाप नहीं है।
जिनके हृदय में सच है और जो लोग हमेशा सच बोलते है उनके ह्रदय में ही आप यानी की उनके ह्रदय में ही भगवान है।

भाव:
दोस्तों अब  इस दोहे को भीतर से समझते है कि सच को सबसे कठिन तपस्या क्यों कहा है ? जैसे ,अगर कोई चोर है और वह कह दे कि मैंने चोरी की है ,तो उसे मालुम है कि उसे सजा मिलेगी और इसी डर से वह सच नहीं बोलेगा।

बच्चा भी तभी झूठ बोलता है जब उसे डर होता है कि उसने कोई गलती की है तो उसे सजा मिलेगी।

यानी की झूठ वह ही बोलता है जो गलती करता है और उसके मन में डर भी रहता है कि कही उसका झूठ पकड़ा न जाए।

तो इसका मतलब यह हुआ कि जो हमेशा सच बोलता है वह गलतियों नहीं करता। यह नहीं की वह बिलकुल ही गलती नहीं करता ,अगर कभी वह कुछ गलत कर भी दे तो उसे अपनी गलती का एहसास  होता है और सच बोलकर उसके लिए क्षमा भी मांगता है। जो सच बोलते है उनके दिल हमेशा साफ़ रहते है और किसी से उन्हें कोई वैर-विरोध नहीं होता।

अब बात करते है कि झूठ सबसे बड़ा पाप क्यों है?

Facebook Page Like करना न भूले (www.fb.com/GyanPunji)

झूठ बोलना यानी की धोखा देना। अगर कोई किसी का दुश्मन है तो उसे तो मालुम ही होगा वह उसे क्षति पहुंचाएगा। लेकिन जब कोई अपना ,जिसपर हमें पूरी तरह से भरोसा होता है अगर वह हमसे झूठ बोले तो यह सबसे बड़ा पाप हुआ क्योंकि उसपर हमे पूरी तरह से विश्वास था और कभी भी नहीं सोच सकते थे कि हमारा अपना ही हमारे साथ इस प्रकार करेगा। इसलिए दुश्मन अगर हमे हानि पहुंचाए तो यह तो सीधी-सी बात है कि वह ऐसा करेगा ही लेकिन अगर कोई करीबी ऐसा करे और हमसे झूठ बोले, तो यह उसके लिए सबसे बड़ा पाप हुआ।

इसलिए ही कबीर जी ने कहा है कि जो सच्चे लोग होते है ,जिनके हृदय  में सच हो और मन साफ़ हो उनके ही हृदय में भगवान होते है।

तो दोस्तों अब आप समझ गए होंगे कि सच सबसे बड़ी तपस्या क्यों है और झूठ से बढ़कर अन्य कोई पाप नहीं। इसलिए हमे हमेशा सच बोलना चाहिए क्योंकि सच बोलने वालो के दिल हमेशा साफ़ होते है और यह सबसे बड़ी तपस्या भी है। और हमे झूठ से हमेशा दूर रहना चाहिए क्योंकि इससे बड़ा पाप कोई नहीं है।

E-Mail द्वारा नयी Post प्राप्त करने के लिए subscribe करे

यहाँ तक तो हो गयी दोहे की बात।

अब यह हृदय आँखों का काम कैसे करता है। कैसे हम सच्चाई और मन के द्वारा ईश्वर के दर्शन कर सकते है ?

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

तो दोस्तों ,इसका उत्तर है ,जो सच्चे होते है और जिनके मन साफ़ होते है ,उन्हें भगवान के दर्शन अपने आप ही हो जाते है और ऐसे लोग प्रत्यक्ष रूप से न सही लेकिन उनका मन यह जरूर जानता होता है कि उनके इष्ट उनके साथ है और उन्हें अपने मन में सदैव ही अपने इष्ट के दर्शन होते है।

दोस्तों अगर आप GyanPunji के regular reader है तब तो आप यह कहानी अच्छे से समझ गए होंगे ,लेकिन अगर आप GyanPunji पर ईश्वर दर्शन या कर्मों पर यह पहली कहानी पढ़ रहे है तो यह अन्य कुछ कहानियां भी जरूर पढ़े ,फिर आप इस article को अच्छे-से समझ जाएंगे।

सत्संग क्यों जरूरी है (Why Satsang is Important) 
क्या आप जागृत है ? (Kya Aap Jag Rahe Hai ?)
ज्ञान की खोज (Searching Of Knowledge)
कबीरा अहंकार मत कर (Kabira Ahankaar Mat Kar)
असली सौंदर्य (Real Beauty)
झूठा व्यक्ति ही सबसे ताकतवर ,बलवान और समझदार होता है (Liar Person Is The Most Powerful Person)

दोस्तों आपको यह कहानी भगवान के दर्शन (Bhagwan Ke Darshan) कैसी लगी comment करके हमे जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ भी share करना न भूले।

Searchable tags
Inspirational Stories In Hindi
Hindi Stories
Motivational Stories In Hindi
Bhagwan Ki kirpa kaise prapt kare
Bhagwan ke darshan kaise prapt kare
adhyatmik hindi kahaniya