प्रेमचंद इनका नाम कौन नहीं जानता। हिंदी साहित्य से प्रेम करने वाला ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जिसने इनका नाम पढ़ा/सुना न हो। अगर कोई ऐसा व्यक्ति हो जो प्रेमचंद के बारे में नहीं जनता तो इसका मतलब वो हिंदी साहित्य का प्रेमी हो ही नहीं सकता। प्रेमचंद जी hindi साहित्य के एक ऐसे लेखक हुए है जिनकी रचनायें अद्धभुत है। इनकी रचनाये आज भी हम सभी का दिल जीत लेती है।प्रेमचंद जी का नाम तो सभी ने सुना होगा और इनकी कुछ न कुछ रचनायें भी अवश्य ही पढ़ी होगी, लेकिन इनके जीवन के बारे में बहुत ही कम लोग जानते होगे। तो आईये जाने इनके जीवन के बारे में:-
प्रेमचंद जी का जन्म ३१ जुलाई, १८८० ई. (31 July, 1880) को वाराणसी के लम्ही नामक गांव में हुआ। यह अपने पिता अजायब राय व माता आनंदी देवी की चौथी संतान थे।
इनकी दो बड़ी बहने बचपन में ही गुजर गयी थी। तीसरी भी इनकी बहन जिनके बाद ये चौथे स्थान पर थे।इनके माता पिता ने इनका नाम धनपत राय श्रीवास्तव रखा था परन्तु बाद में जब इन्होने उपन्यास लिखे तब इन्होंने अपना नाम प्रेमचंद लिखना शुरू किया।
इन्होंने अपनी प्रथम शिक्षा सात साल की उम्र में एक मौलवी से प्राप्त की जिनसे इन्होने उर्दू और फ़ारसी सीखी। जब
इनकी उम्र आठ वर्ष की थी तो एक लम्बी बीमारी के कारण इनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया। इनकी माता की मृत्यु के बाद इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली ,पर प्रेमचंद को अपनी नई माता से काम ही प्यार मिला।
इनको किताबें पढ़ने का बहुत शोंक था। कम उम्र में ही इन्होने उर्दू (Urdu ), अंग्रेजी (English) और फ़ारसी(Parsian) की अनेको पुस्तके पढ़ ली।
१८९५ (1895) ई. में १५ (15 ) वर्ष की आयु में ही इनका विवाह एक संपन्न जिम्मींदार परिवार की लड़की से कर दिया गया था, जो उम्र में इनसे बड़ी थी। तब यह नवीं (9nth) कक्षा में पढ़ते थे। इनकी पत्नी झगड़ालू बहुत थी और इन्हें वो इतनी सुन्दर भी नहीं लगती थी और कुछ समय बाद ही इनका तलाक भी हो गया।
१९०६(1906) में इनका शिवरानी देवी से दूसरा विवाह हुआ। जो एक बाल-विधवा थी। इनकी तीन संताने हुयी जिनके नाम – श्रीपत राय , अमृत राय और कमला देवी थे।
इन्होने सबसे पहले नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखना शुरू किया था। बाद में इन्होंने हिंदी में प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू किया, जिससे इनको बहुत प्रसिद्धि मिली , तब से इनका नाम प्रेमचंद ही प्रसिद्ध हो गया।
प्रेमचंद ने १४ (14) उपन्यास, ३००(300) से भी अधिक कहानियाँ, ३(3) नाटक, तथा हज़ारों पृष्ठों की संख्या में लेख ,भाषण आदि लिखे पर इन्हें अधिक प्रसिद्धि इनके उपन्यास और कहानियों के कारण ही प्राप्त हुयी। इन्हे प्रसिद्धि हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में समान(Same) रूप में ही प्राप्त हुयी।
इनका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को दूर भगाना भी था इनकी बहुत सी रचनाये ऐसी है जो लोगों को समाजिक बुराईयों के बारे में अवगत कराती है और उनके मन में ऐसा प्रभाव डालती है जिससे वो भी कोई कुरीति में न फंसे रहे।
समाजिक बुराईयो के विरोधी होने क साथ साथ इनमें देश भक्ति की भावना भी थी। इन्होंने अपना एक कहानी संग्रह सोज़े-वतन १९०८ (1908) में प्रकाशित हुआ, यह पांच कहानियों का संग्रह था। सोज़े-वतन का अर्थ देश का दर्द। जैसा कि इसका नाम है वैसी ही इसमें कहानियाँ है , इसे अंग्रेजी शासन ने देश द्रोही करार दिया और इसकी सभी प्रतिया भी जलवाकर नष्ट कर दी।
प्रेमचंद ने हिंदी तथा उर्दू में अनेक रचनायें लिखी ,इनकी रचनायों की खूब प्रसिद्धि हुयी जिस कारण इनकी रचनाओं का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी किया गया।
प्रेमचंद काफी समय से पेट के अल्सर से बीमार थे और उनका शरीर दिन-ब-दिन कमजोर ही होता जा रहा था ,जिसके चलते ८ अक्टूबर १९३६ (8 October, 1936) में प्रेमचंद ने अपनी रचनायों को समाप्ति देकर इस दुनिया से विदा ले ली।
प्रेमचंद का रचनायें अध्भुत थी ,इनकी रचनायें आज भी लोगो का दिल जीत लेती है जिस लिए हम कह सकते है कि प्रेमचंद आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा है और इनकी रचनायें हमारे भारतीय साहित्य को विश्व के सामने एक अलग ही तरीके से प्रस्तुत करती है तथा हमारे साहित्य को सम्मान भी दिलाती है।