आज़ादी की सांस एक ऐसा शब्द है जो हम जैसे लोग जोकि आज़ादी के बाद जन्मे है ,शायद ही समझ सके। हम कह तो देते है हम आज़ाद हुए ,लेकिन इस आज़ादी की अहमियत शायद हम लोग नहीं समझते और शायद समझना भी नहीं चाहते। आज़ादी का सही-सही अर्थ तो उन्हें ही मालुम होगा ,जिन्होंने गुलामी देखी है , जो जानते है गुलाम होने का मतलब क्या होता है ? जिन्होंने देखा और सहन किया था कि अंग्रेजी हकूमत के सामने जितना भी बोल लो ,उन्होंने हमारी कोई बात नहीं माननी और अपनी ही मनमानी करनी है। उन्होंने किसी को भी जेल में बंद कर देना और किसी को भी गोलियों से भून डालना और उन पर सवाल-जवाब करने वाला कोई भी शक्श नहीं।
लेकिन अधीनता किसे पसन्द होती है ? किसी को भी नहीं। तो हम कैसे अधीनता स्वीकार करते। भारतीय तो वैसे भी किसी के अधीन रहने के लिए पैदा ही नहीं हुए। मौत को गले लगा लेंगे ,लेकिन अधीनता किसी भी हालत में स्वीकार नहीं।
ऐसे ही कुछ भारत माता (Bharat Mata) के सपूत हुए ,जिन्होंने अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ आवाज ही नहीं उठायी बल्कि उनका जीना भी बेहाल कर दिया। ऐसे बहुत से वतन प्रेमी हुए ,जिन्होनें अपनी देश की भूमि के लिए अपने प्राण हँसते-हँसते न्यौछावर कर दिए ,सिर्फ और सिर्फ इसलिए की उनके देश की भूमि किसी अन्य के अधीन न रहे और आजाद (Independent) हो सकें।
भारत देश को आजादी दिलाने वाले ऐसे ही भारत माता के तीन वीर पुत्रों के बारे में बताना चाहूंगा ,जिनका नाम हमेशा-हमेशा के लिए भारत के इतिहास और वीरों की शहादतों में अमर है।
भारत की आजादी के वीरों ,शहीदों में भगत सिंह का नाम किसे न मालुम होगा। उनके अंदर देश भक्ति की भावना इतनी गहरी थी कि आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते है जब एक बार उनकी माँ उन्हें विवाह करके दुल्हन लाने के लिए कहती है तो भगत सिंह का जवाब था , “माँ मेरी दुल्हन तो आज़ादी है ,वही मुझे चाहिए। ”
यह था भारत माता का एक सच्चा वीर सपूत ,जो यौवनावस्था में ही मर-मिटने को तैयार था और मात्र 23 साल की उम्र में भगत सिंह भारत माता की आज़ादी के लिए संघर्ष करते हुए फांसी को चूम लिया और भारत माता के लिए शहादत दे दी।
फांसी मिलने से पहले के वक्त भी यह बेखोफी से “इन्कलाब जिन्दाबाद” के नारे लगाते रहे।
भगत सिंह के साथ-साथ इनके साथियों सुखदेव (Sukhdev) और राजगुरु (Rajguru) को भी नहीं भुलाया जा सकता ,इन तीनो ने हँसते-हँसते फांसी के फंदे को चूम और इन्हें भरोसा था कि इनकी क़ुरबानी युवाओ में क्रान्ति की आग पैदा करेगी ,जिससे हमारा यह वतन आज़ाद हो जाएगा और सभी लोग स्वतंत्रता से जीवन जी सकेंगे। और हुआ भी ऐसा ही ,इनकी शहादत ने भारत देश के युवाओं में क्रान्ति की भावना पैदा कर दी और सभी ने आजादी के लिए संगर्ष तेज कर दिया जिसके फलस्वरूप आज हम आजादी की साँसे ले रहे है।
ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी ,भारत माता के वीर पुत्र मंगल पांडेय हुए। स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम इन्होंने ही अंग्रेजो के विरुद्ध छेड़ा था। उस समय अंग्रेजी हकूमत भारत पर भारी पड़ रही थी और सारा भारत अंग्रजो की बात मानने को मजबूर था।
मंगल पांडेय भी अंग्रेजी फ़ौज में ही थे ,क्योंकि उस समय भारत की सरकार अंग्रेज ही थे। अंग्रेज भारतियों के लिए एक नयी बन्दूक एनफील्ड पी.53 (Enfield P. 53 ) लाने वाले थे, जिसको चलाने से पहले कारतूस को मुँह से छीलना पड़ता था और सभी सिपाहियों में यह बात फ़ैल गयी कि कारतूस को बनाने में गायें और सूअर के मांस का प्रयोग हुआ है।
हिन्दू लोग गायें को माता मानते थे और पूजते थे (अभी भी मानते और पूजते है) और मुस्लिम लोग सूअर को नापाक जानवर मानते है। फ़ौज में सिपाही थे भी मुस्लिम या फिर हिन्दू ब्राह्मण।
हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोग समझ चुके थे कि अंग्रेज भारतियों के धर्मों को भ्रष्ट करना चाहते है।
भारतीय सैनिकों को जब नये कारतूस बांटे जा रहे थे तब मंगल पांडेय ने इन्हें लेने से मना कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उसकी वर्दी छीनने और हथियार छीनने का आदेश दे दिया गया। जब अंग्रेजी अफसर उसकी वर्दी उतरवाने को आ रहा था तो मंगल पांडेय ने उस अंग्रेज अफसर पर ही हमला कर दिया। जिससे उसकी मौत हो गयी। एक अन्य अंग्रेज अफसर भी मंगल पांडेय को पकड़ने आ रहा था ,परन्तु मंगल पांडेय ने उस पर भी गोली चला दी ,जिससे उसकी भी मौत हो गयी।
मंगल पांडेय की बगावत के कारण अंग्रेजी शासन ने उसे फांसी की सजा सुनाई। उस समय मंगल पांडेय बैरकपुर में था और उसे फांसी देने के लिए कोई भी जल्लाद न माना। तो अंग्रेजों ने कोलकाता से जल्लाद मंगवाए लेकिन उन्हें यह न बताया गया कि किसे फांसी देनी है। 8 अप्रैल ,1857 ई. को मंगल पांडेय को फांसी पर लटककर भारत माता के लिए शहीदी को प्राप्त हुआ, उस समय इनकी उम्र सिर्फ 29 वर्ष की थी।
इनके बारे में एक और बात भी आती है कि अंग्रेजी अफसरों ने इनको फांसी की तारीख से 10 दिन पहले ही फांसी दे दी थी ,इनको फांसी देने की तिथि 18 अप्रैल ,1957 तय हुयी थी पर अंग्रेजो ने इन्हें 8 अप्रैल ,1957 को ही फांसी दे दी ,जिससे यह बात साबित होती है कि अंग्रेजी फ़ौज के लिए इन्हें जीवित रख पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा था।
मंगल पांडेय ही सर्वप्रथम भारत माता के सपूत थे ,जिन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आवाज उठायी थी। इनके बाद आजादी का बिगुल बहुत से क्रांतिकारियों ने बजा दिया।
ऐसे ही भारत माता के वीर सपूतों में से एक चंद्रशेखर आज़ाद भी थे।
बात लगभग 1921 ई. की है जब चंद्रशेखर आजाद की उम्र मात्र 14 साल की थी और गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण इन्हें पकड़ लिया गया था। जब इन्हें जज के सामने पेश किया गया और उन्होंने इनका और इनके पिता का नाम पूछा तो इन्होंने अपना नाम “आजाद” बताया और “स्वतंत्रता” को अपना पिता और “जेल” को अपना घर बताया। इनकी इस बात से आक्रोशित होकर जज ने इन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई। हर एक कोड़ा पड़ने पर यह “भारत माता की जय” बोलते गए।
जब गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब यह गर्म दल के सदस्यों के साथ मिल गए और जान गए कि भारत माता की भूमि को शांत रहकर आजाद नहीं कराया जा सकता ,इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा ।
गर्म दल के सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने बहुत से आंदोलनों में भाग लिया और अंग्रेजी हकूमत का जीना मुश्किल कर दिया।
27 फरवरी ,1931 का दिन था, चंद्रशेखर अपने साथी सुखदेव राज के साथ “अल्फ्रेड पार्क” में बैठे हुए थे। अंग्रेजी पुलिस के किसी मुखबिर ने उन्हें सुचना दे दी कि आजाद इस पार्क में है। पुलिस ने चंद्रशेखर आजाद को घेर लिया और पुलिस की एक गोली आजाद की जांघ पर लगी ,लेकिन आजाद ने अपने आप को संभाल लिया और पेड़ की तरफ हो गए अपनी सुरक्षा करने के लिए ,जिस तरफ से गोली आयी थी ,इन्होनें उधर ही गोली चलाई और एक ही गोली से वह पुलिस वाला मर गया। आज़ाद ने अपने साथी को वापिस भेज दिया और बहुत ही बहादुरी से अंग्रेजो के साथ अकेले लड़ रहे थे और बहुत से अंग्रेजों को मार भी दिया था। इनकी पिस्तौल में केवल एक गोली बची थी और इन्होंने अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार होने से बेहतर खुद को गोली मारना समझ और शहीद हो गए। किसी भी अंग्रेज में इतना दम नहीं था कि इन्हें अपनी गोली से शहीद कर पाता। पर भारत माता के वीर पुत्र ने उनके हाथ आने से बेहतर मौत समझी और भारत माता के लिए बलिदान देते हुए खुद को गोली मार ली।
तब इनकी उम्र मात्र 24 वर्ष थी।
उपरोक्त मैंने भारत माता के सिर्फ तीन वीर पुत्रों का संक्षिप्त वर्णन किया है , सैंकड़ो ,हज़ारों भारत माता के वीर पुत्र हुए जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपनी ज़िन्दगी की परवाह नहीं की और इस धरती की आज़ादी के लिए बलिदान दे दिया सिर्फ इसलिए कि सभी लोग आजादी की सांस ले सकें।
न जाने कितने ही वीर पुत्र होये होंगे उस समय भारत माता के ,जो छोटे होते से ही अपनी माता के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार थे।
हम कहते है कि हम लोग आजाद है ,लेकिन शायद हम आजादी का सही-सही अर्थो में मतलब नहीं समझते। असल मतलब तो आज़ादी का उन्ही लोगों को मालुम था जो गुलामी सहन कर के गए और गुलाम होते हुए भी कभी गुलाम नहीं रहे बल्कि गुलामी की जंजीरों को तोड़कर सभी को आजाद कराया और अपना नाम इतिहास के पन्नों में अमर कर गए।
ऐसे भारत माता के वीर पुत्रों के बलिदान को हम कभी भी नहीं भुला सकते। इन्हीं के बलिदान के कारण आज हम खुले में आजादी की सांस ले रहे है।
अगर कभी कोई आजादी का मतलब बिलकुल ही भूल जाए और जानना चाहे की आजादी कहते किसको बस एक या दो दिन…… चलो एक ही दिन बहुत है , बस एक दिन एक कमरे में अपने आप को बन्द कर ले और कमरा बंद बाहर से हो ,एक दिन ऐसे रहकर महसूस कर लेना और फिर कोई भी जान जाएगा की आजादी कहते किसको है। क्योंकि कमरा होगा भी बाहर से बंद और खोल सकेंगे नहीं ,तभी समझ सकेंगे की कैद क्या होती है और आजादी क्या।
ऊपर थोड़ी-सी बात मैं जीवों के साथ भी प्रेम के व्यवहार पर ले गया था ,क्योंकि यह भी जरूरी है । अब बात हम हमारी ही आजादी की करते है कि हम इसे बरकरार कैसे रख सकते है।
सरकारी हस्पताल में जाकर देखना की कितना सस्ता इलाज करते है और फीस भी बिलकुल नाम-मात्र। कई बार तो हस्पतालों में ऐसे मरीज भी होते है ,जिनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं है लेकिन फिर भी वह सरकारी हस्पताल में है।
कई बार डॉक्टर मरीजों की बात नहीं सुनते ,लेकिन इसमें गलती देश की या सरकार की नहीं बल्कि उस एक डॉक्टर की है जो सुन नहीं रहा तो आप उसकी complaint कर सकते है। एक और बात जो आज-कल media और social media ने सबसे आसान कर दी है ,complaint अगर वहां नहीं करनी ,तो सभी लोगों के सामने उसे ले आईये ,जिससे सबक मिल सकें और भारत देश की सेवा के नाम पर ढोंग करने वाले अपनी असली जगह जा सकें।
(नोट : उपरोक्त विचार पूर्ण-रूप से मेरे अपने है ,अगर किसी को कहीं पर मैं गलत लगूं तो आप comment करके बता सकते है। )
दोस्तों अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि हम आजादी की कीमत का अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि कितनी मुश्किल से भारत माता के वीर पुत्रों ने अपनी कुर्बानियां देकर हमें आजादी दिलाई है और इस आजादी को बरकरार रखने और अपने देश की गरिमा को बनाये रखने के लिए हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जो इसकी शान में कमी आने दे। अगर हम सब लोग अपने-अपने स्तर पर ही सही बन जाए और अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाये तो वो दिन दूर नहीं जब भारत पूरी दुनिया में सबसे महान देश बन जाएगा क्योंकि यहाँ की संस्कृति ,सभ्यता और विचार तो बहुत अच्छे है लेकिन कुछ लोग ही इसे विगाड़ रहे है अगर वह भी सुधर जाएँ तो मेरा भारत ,आपका भारत ,हम सबका भारत देश सबसे महान देश होगा।
उस समय बहुत से लोगों ने अपना बलिदान देकर भारत देश को आजाद कराया लेकिन अभी भी ऐसे लोग है जो अपने देश की आजादी को बरकरार रखने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा देते है। उन वीर सैनिकों के कारण ही आज भी हम आजादी की सांस ले रहे है। मैं अपने देश के सिपाहियों का बहुत आभारी हूँ जो वीर जवानों की कुर्बानियों को व्यर्थ न जाने देते हुए आज भी निष्काम भाव से अपनी जान पर खेलकर मातृ भूमि की रक्षा करते है और समस्त भारत देश के वासियों को अपना परिवार मानते हुए हर एक की मदद के लिए तत्पर रहते है। जरूरत पड़ने पर अपनी जान तक भी न्यौछावर कर देते है।
दोस्तों आपको यह रचना कैसी लगी ,आप comment करके जरूर बताईयेगा। इसमें मैंने सबसे पहले आजादी के बारे में लिखा फिर भगत सिंह , मंगल पांडेय और चंद्रशेखर आज़ाद के बारे में थोड़ा-बहुत वर्णन किया जिनकी कुर्बानियों को हम भुला नहीं सकते। इनका विस्तृत वर्णन भी अलग से जल्द ही करूँगा। और उसके बाद हमारे देश के प्रति कर्तव्यों के बारे में बताया। इस सभी बातों के साथ-साथ हमें भारतीय फ़ौज को भी नहीं भूलना चाहिए जो हमारे लिए हर समय border पर रहकर हमारी रक्षा करती है। यह रचना कैसी लगी जरूर बताईयेगा अगर पसन्द आयी तो अपने दोस्तों के साथ Facebook , Google Plus , Whatsaap , Hike , JioChat आदि पर share करना न भूलें।
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बहुत ही बेहतरीन आर्टिकल आपने आजादी और आजादी के दीवानों के बारे में प्रेरित करने वाला लेख लिखा है।
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