एक बार की बात है नंदनवन में बंदरो का सरदार अपने बच्चे के साथ एक बड़े से पेड़ की निचली डाली पर बैठा हुआ था। उसके बच्चे ने कहा ,”मुझे भूख लगी है , आप मुझे खाने को कुछ पत्तियां दीजिये ?
पापा बन्दर बोले ,” मैं तुम्हे पत्तियां दे तो दूँ , मगर अच्छा यह होगा कि तुम खुद ही पत्तियां तोड़ो।”
“लेकिन मुझे अच्छी पत्तियों के बारे में नहीं पता चलता ,अगर आप तोड़कर दे देंगे तो वो अधिक स्वादिष्ट होंगी” , बच्चा उदास होता हुआ बोला।
पापा बन्दर बोले , “चलो मैं तुम्हे बताता हूँ कि कहाँ से तुम्हे अच्छी और ताज़ी पत्तियां मिल सकती है।” पेड़ की तरफ इशारा करके कहने लगे ,”वो ऊपर की तरफ लगी डालियों को देख रहे हो, बस तुम्हे वहाँ तक जाना है और जितनी चाहो उतनी पत्तियां खा सकते हो और सभी की सभी ताज़ी और स्वाद होंगी।”
बच्चा अब और भी ज्यादा उदास होते हुए बोला ,”इतनी ऊपर ! यह तो बहुत गलत बात है। यह पत्तियां निचे की डालियों पर क्यों नहीं है ?
पापा बन्दर कहने लगे ,अगर यह निचे की डालियों पर होंगी फिर तो सभी इनको खा लेंगे और अगर सभी खा लेंगे तो इनके उगने से पहले ही सभी इसे तोर लिया करेंगे फिर यह उगेंगी कैसे ? यह इतनी ऊपर है यह ही सोचकर तो इसे सभी खाते नहीं है और इसीलिए यह ऊपर उगती है।
बच्चा बन्दर कहने लगा ,”ऊपर की डालियों पर चढ़ना खतरनाक लगता है क्यूंकि यह पतली बहुत है और कभी भी टूट सकती है। “
पापा बन्दर बेटे को समझाते हुए कहने लगे , “बेटा, एक बात हमेशा याद रखो कि हम खतरे के बारे में जैसा सोचते है वह असल में वैसा नहीं होता। यह हमारा डर होता है जो हमे कोई नया काम नहीं करने देता और हमें बार-बार रोकता है। जब हम डरने लग जाते है तो यह डर हमारे दिमाग में अपनी एक पक्की जगह बना लेता है और फिर निकलने का नाम नहीं लेता। इसलिए बेटा ,तुम अपने डर को बढ़ने न दो और इसको खत्म करो। तुम अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से ही अपने डर को खत्म कर सकते हो।”
बच्चा बन्दर ध्यान से सब सुन रहा था और उसे कुछ कुछ एहसास हुआ की उसके पापा जो कह रहे है वह बिलकुल सही कह रहे है। लेकिन एक सवाल उसके मन में आया और वह पूछने लगा, “अगर ऐसा ही है तो फिर सभी क्यों नहीं अपने डर को जीत लेते और ऊपर की डालियों से ही क्यों नहीं पत्तियां खा लेते ?”
पापा बन्दर कहने लगे ,”बेटा ,जैसा की मैंने तुमसे कहा है कि डर हमारे दिमाग में एक पक्की जगह बना लेता है। दूसरों में डर पैदा ही इतना हो चुका है कि वो अब अपने डर को जीत ही नहीं सकते और उन्हें डरकर जीने की आदत पड़ चुकी है। उन्होंने कभी अपने डर को जीतकर ऊपर जाकर पत्तियां खाने की कोशिश ही नहीं की ,उन्हें सिर्फ शिकायत करना आता है कि नीचे की पत्तियां सड़ी-गली है और वह कुछ कर सकते नहीं इसलिए उन्ही सड़ी-गली पत्तियों को ही खाकर संतुष्टि महसूस करते है। लेकिन मैं नहीं चाहता की तुम ऐसा करो। मैं चाहता हूँ कि तुम वो सब करो जो तुम असल में कर सकते हो और इनकी तरह ही डरपोक न बने रहो। जंगल में बहुत कुछ है जिसका तुम आनंद ले सकते अगर तुम अपने डर को जीत लो और जब तुम खतरों का सामना करना सीख जायो तब तुम हमेशा हर काम में सफल होगे। अगर तुम आज ही डर जाते हो फिर तुम अपनी जिन्दगी में कभी कुछ नहीं कर सकते इसलिए अपने डर को जीतो और वह सब करो जो तुम असल में कर सकते अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति द्वारा।”
बच्चा बन्दर अब समझ चुका था कि उसे क्या करना है, उसमें अब एक नयी उमंग थी कि वो ऊपर जाकर पत्तियां तोड़कर खा सकता है और वो इसमें सफल भी रहा। उसने अब अपने पिता द्वारा समझायी हुयी बात को गाँठ बाँध लिया और जीवन में कभी भी न डरने का निश्चिय किया।
Moral : हमारे साथ भी कभी-कभी ऐसा ही होता है कि हमें जब कोई काम मुश्किल लगता है तो उस काम को यह सोचकर छोड़ देते है कि हमें कुछ हो न जाये और हम डरकर वह काम ही नहीं करते। अपनी सुरक्षा करना अच्छी बात है लेकिन हमें ऐसा भी नहीं बनना चाहिए कि हम डरपोक बन जाये। याद रखिये जब हम छोटे थे और Cycle चलाना सीख रहे थे पर Cycle से बार-बार गिर जाते थे तब अगर हम डर गए होते और सोच लेते की मैं Cycle नहीं चला सकता तो क्या हम Cycle चला सकते थे? इसलिए कुछ भी नया करने या सीखने के लिए हमें डरना नहीं चाहिए बल्कि अपने डर को जीतकर हर काम में हमें सफलता प्राप्त करनी है।
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वाह बहुत अच्छा आर्टिकल है। आपका यह आर्टिकल पढ़कर काफी अच्छा लगा।
मुझे ख़ुशी हुयी आपको पसंद आया, आगे भी ऐसी ही शिक्षा भरी कहानियां पढ़ते रहने के लिए blog के साथ जुड़े रहे ।