5 सितम्बर (5, September) का दिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन महान शिक्षक राधाकृष्णन का जन्म 1888 ई. को तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में हुआ। यह ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे। इनके पिता जी , सर्वपल्ली वीरास्वामी , राजस्थ का काम करते थे और इनके माता सीताम्मा गृहणी थे।
शिक्षा (Education)
राधाकृष्णन जी अपने जीवन प्रथम आठ वर्ष अपने ग्राम तिरुतनी में ही व्यतीत किये। इसके बाद इनके पिता जी ने इन्हें मध्य शिक्षा के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल जोकि तिरुपति में था ,वहां भेज दिया। 1896 ई. से लेकर 1900 ई. तक इन्होंने यही से शिक्षा ग्रहण की। 1900 ई. से लेकर 1904 ई. तक वेल्लूर से इन्होंने शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद इन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज ,मद्रास से अपनी graduation की degree complete की।
क्रिश्चियन school और college में पढ़ने की वजह से ही इन्हें बाइबिल दी जाती थी और इन्होंने Bible के महत्वपूर्ण अंशों को कंठस्थ किया ,जिसके कारण इन्हें सम्मानित भी किया गया। इन्होने 1916 ई. में दर्शनशास्त्र M.A. की। इसके बाद मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के रूप में चयनित हुए। इसके पहले यह tuisions भी पढ़ाते थे।
शिक्षक के रूप में प्रसिद्धि (Sikshak Ke Roop Me Prasidhi)
इनके पढ़ाने का तरीका अन्य शिक्षकों से कुछ हटकर ही था। डॉ. साहब अनेक विषयों के जानकार थे तथा हर एक बात को उसकी गहराई से समझते और समझाते थे। किसी भी विषय को पढ़ाने से पहले यह खुद उसका achhi तरह से अध्ययन करते थे और फिर विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। डॉ. साहब ऐसे ऐसे व्याख्यान देते थे कि बच्चों को बहुत ही सरलता से सब कुछ समझ आ जाता था और कभी-कभी हास्य से भरपूर गुदगुदाने वाली कहानियां सुनाकर छात्रों को हंसाने के साथ-साथ शिक्षा भी दे दिया करते थे।
इसी कारणों के कारण यह विद्यार्थियों के चहेते थे।
धार्मिक विचार (Dharmik Vichaar)
धार्मिक दृष्टिकोण भी इनकी काफी अच्छी थी और यह धार्मिक भेद-भावों से भी कोसों दूर थे। लेकिन उस समय कुछ ईसाई लोग अनपढ़ हिन्दू लोगों को उनके धर्म के विरुद्ध ही बढ़काते थे कि हिन्दू धर्म में यह बातें गलत है ,वो बातें गलत है , वगैरह वगैरह। लेकिन ईसाईयों की यह सब बातें बिलकुल बेबुनियाद थी और बिलकुल झूठी थी ,जो भी वह लोग (क्रिश्चियन मिशनरी , ईसाई) कहते थे ,वह सब कुछ झूठ और अपने धर्म को ऊंचा साबित करने के लिए कहते थे।
लेकिन राधाकृष्णन जी ने काफी ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया और उन सभी लोगों के सारे शक भी दूर किये और उन्हें हिंदुओं के गौरवमयी धर्म के बारे में बताया और उन्हें जागृत कराया।
इन्होंने सभी लोगो को बताया की हिंदु संस्कृति , हमारी भारतीय संस्कृति बहुत ही समृद्ध है और यह धर्म, ज्ञान ,सत्य और अहिंसा पर आधारित है।
राधाकृष्णन जी किसी भी धर्म के विरुद्ध नहीं थे ,लेकिन उस समय क्रिश्चियन मिशनरी अपने ईसाई धर्म का प्रचार ,प्रसार बहुत ही अधिक कर रहे थे और वह लोग हिंदुत्ववादी विचारो को बुरा बताते थे। इसलिए डॉ. साहब ने अपने धर्म के प्रति विश्वास रखते हुए ,अनेक ग्रंथों और शास्त्रो का अध्यन किया था और फिर सभी लोगों को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया।
एक अन्य बात इनकी ध्यान रखने योग्य है कि इन्हें ईसाई धर्म के बारे में भी बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त थी।
शैक्षिक/सामाजिक विचार
राधाकृष्णन जी सम्पूर्ण विश्व को ही एक school के रूप में मानते थे। इनके अनुसार शिक्षक का काम सिर्फ छात्रों को शिक्षा देना ही नहीं है ,बल्कि शिक्षक को विद्यार्थी का बौद्धिक विकास भी करना चाहिए और उस में देश के प्रति सम्मान की भावना भी जागृत करनी चाहिए। इनके अनुसार शिक्षक को सिर्फ शिक्षा देकर ही नहीं सन्तुष्ट हो जाना चाहिए ,बल्कि छात्रों से प्रेम और सम्मान भी हासिल करना चाहिए। शिक्षक के गुणों को बताते हुए डॉ. साहब ने यह भी कहा है कि शिक्षक को निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। इन्हीं विचारों के कारण राधाकृष्णन जी विद्यार्थियों के चहेते थे।
राजनीति में सहयोग (Political Career)
1952 ई. में डॉ. राधाकृष्णन जी भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति के पद पर नियुक्त हुए। इन्होंने यह पद 1962 ई. तक सम्भाला। इसके बाद 1962 ई. में ही यह भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने।
शिक्षक दिवस की मांग (Why Teacher’s Day Is Celebrated In India in Hindi )
1962 ई. में जब यह राष्ट्रपति पद पर नियुक्त हुये थे ,तब इनसे मिलने इनके कुछ विद्यार्थी और कुछ साथी, मित्र इनसे मिलने आये और आग्रह किया कि 5 सितम्बर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाये। तब इन्होंने कहा कि , मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर मेरे जन्मदिवस का दिन सभी शिक्षकों को समर्पित हो। तभी से भारत में 5 September का दिन Teacher’s Day के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत रत्न (Bharat Ratna)
1954 ई. में इन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ,भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
अन्य सम्मान (Other Honor/Prizes)
- 1931 ई. में इनको नाइट बैचलर (Knight Bachelor) का अवार्ड मिला जिसमे इन्हें सर की उपाधि दी गयी जोकि ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया जाता है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद इन्होनें इस सम्मान को वापिस कर दिया।
- 1938 ई. में फेलो ऑफ़ दी ब्रिटिश अकादमी (Fellow Of The British Academy) के पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया।
- 1954 ई. में भारत रत्न (Bharat Ratna) इन्हें नवाजा गया।
- 1954 ई. में इनको जर्मन द्वारा आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस (Order Pour Le Merit For Arts And Science) दिया गया जोकि असाधारण उपलब्धि के कारण दिया जाता है।
- 1961 ई. में दी पीस प्राइज ऑफ़ दी जर्मन बुक ट्रेड (The Peace Prize Of The German Book Trade) से विभूषित किया गया। जिसके लिये विश्व भर से एक साल में एक ही व्यक्ति को चुना जाता है।
- 1962 ई. से इनके जन्मदिन को भारत में शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) के रूप में मनाया जाने लगा।
- 1963 ई. में दी ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट (The British Order Of Merit) मिला।
- 1975 ई. में टेम्पलेटों प्राइज (Tempelton Prize) दिया गया। यह Prize Templeton Foundation द्वारा विश्व भर से एक ही व्यक्ति को दिया जाता है। इनके स्वर्गवास के कुछ महीनों बाद इन्हें यह सम्मान दिया गया था।
- 1989 ई. में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) द्वारा इनके नाम से स्कॉलरशिप (Scholarship) शुरू की गयी।
यह भी पढ़े : जीवन में हमेशा सतर्क रहे (Always Be Careful In Life)
अंतिम समय
राष्ट्रपति पद का कार्यकाल पूरा करके यह 1967 ई. में अपने घर में वापिस आ गए थे। वहां यह एक सादा जीवन व्यतीत करने लगे और इनका पहरावा भी इनका पारंपरिक सादा पहरावा था। 17 अप्रैल, 1975 ई. को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ,इस संसार को छोड़कर स्वर्गवास को प्राप्त हुए।
दोस्तों आपको Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Ji के जीवन पर लिखा गया यह article कैसा लगा, comment करके जरूर बताये।
Facebook Page Like करना न भूले
Google Plus Page पर भी Follow करें