कहत सुनत सब दिन गए , उरझि न सुरझ्या मन।
कही कबीर चेत्या नहीं , अजहूँ सो पहला दिन।।

अर्थ :


कहते-सुनते सभी दिन निकल गए ,लेकिन यह मन उलझ कर अभी तक न सुलझ पाया। कबीर जी कहते है कि अभी भी यह मन होश में नहीं आता ,आज भी यह वैसा ही है जैसा पहले दिन था। 

भावार्थ :

हम बहुत कुछ कहते है और बहुत कुछ सुनते है, और फिर सोचते है कि हमने सब कुछ जान लिया। हमारी सभी उलझने खत्म हो गयी। जैसे जैसे हमारा ज्ञान बढ़ता जाता है वैसे वैसे हम में अहं भाव (ego) आते रहते है।

अगर कोई सच मे ज्ञानी है, तो फिर उस मे अहंकार नही होगा क्योंकि ज्ञान तो अहंकार/अंधकार दूर करता है न कि इसमें फंसाता है।

अजहूँ सो पहला दिन, यानी कि हम निकले तो अहम को दूर करने थे, लेकिन आज भी इस मन की अवस्था वैसी ही है जैसे शुरू में थी, क्योंकि अहंकार तो खत्म हुए नही, ज्ञान की खोज में निकले थे ,लेकिन ज्ञान की जगह तो हमारी मैं मैं ने ले ली।

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इस दोहे के द्वारा कबीर जी के कहने का यही अर्थ है कि अगर सच मे ज्ञानी है तो फिर ज्ञान का मान किस बात का? दूसरों को नीचा दिखाने की जिद्द किस बात की? ज्ञान तो अंधकार दूर करने के लिए होता है न कि अंधकार पैदा करने के लिए। और जिसमे अहंकार है, वह अभी भी वही का वही ही है, यहां से शुरुआत की थी।

ज्ञानी अभिमानी नहीं , सब काहू सो हेत।

सत्यवान परमार थी , आदर भाव सहित।।

अर्थ :

ज्ञानी व्यक्ति कभी अभिमानी नहीं होते ,उनके तो हृदय में सभी के लिए ही प्यार रहता है। ज्ञानी तो सदा सत्य का ही पालन करते है और सभी का भला ही सोचते है।
भावार्थ :

इस दोहे का अर्थ भी पहले दोहे के समान ही है। जो भी ज्ञानी होगा ,वह अभिमानी नहीं होगा ,क्योंकि जहाँ अभिमान हो ,वहां ज्ञान नहीं होता। अभिमान तो मूर्ख लोग करते है। जो भी व्यक्ति सच में समझदार है, उसमे अहंकार नहीं होगा और वह सभी का हित ही सोचेगा क्योंकि knowledge ego या बुराई नहीं सिखाती ,ज्ञानवान तो अच्छाई ही बांटता है और सबका भला ही सोचता है।

जो ज्ञानी होगा ,वह हमेशा सच ही बोलता है। सभी का आदर करता है और परमार्थी होता है।

दोस्तों, कई लोग ऐसे होते है, या फिर यूं कहें बहुत से लोग ऐसे होते है ,जो अधिक पढ़-लिख जाते है या फिर जिन्हें भी ज्यादा knowledge होती है,उन्हें अपने ज्ञान का अहंकार हो जाता है और वह सोचते है कि हमे तो बहुत कुछ मालूम है,हमे तो सब कुछ मालूम है।

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लेकिन असल मे भौतिकता की जानकारी होना ही पूर्ण रूप से intelligency नही होती। सच्चे अर्थों में ज्ञानी वही है,जिसने अपने आप को अपने वश में कर लिया और किसी से कोई वैर-भाव न रखें और सभी की मदद करता रहे। क्योंकि भौतिकता का ज्ञान सिर्फ दुनिया मे रहने के लिए जरूरी है,लेकिन जिंदगी जीने के लिए प्रेम और अध्यात्म की भी आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो और सभी से प्रेम भी करता हो और उसे किसी भी बात का गुमान न हो,वही व्यक्ति असल मे ज्ञानी है और ऐसा व्यक्ति न सिर्फ अपना जीवन खुशियों से जीता है बल्कि दूसरों का भी हमेशा भला सोचता है और उन सभी मे खुशिया बांटता है,जो भी उनके संपर्क में आते है।

दोस्तों सिर्फ इतना ही कहूंगा, अगर किसी को भी लगता है वह सच में ज्ञानवान है तो फिर अपने ज्ञान के द्वारा दूसरों को नीचा दिखाने का अहम् छोड़  देना चाहिए (अगर किसी को है) और हमेशा अपनी सूझ-बूझ के द्वारा दूसरों की मदद करते रहना चाहिए ,बिना यह सोचे कि बदले में वह हमारे लिए क्या करेगा ?

दोस्तों, आपको  यह आर्टिकल  ज्ञानी न करत अभिमान कैसा लगा comment करके जरूर बताये ,अगर पसन्द आया तो अपने दोस्तों के साथ Facebook , Google Plus , Whatsapp आदि पर भी जरूर शेयर करे।
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Nikhil Jain

View Comments

  • आपने सोलह आने सही फरमाया। ज्ञानी मनुष्यों को अभिमान शोभा नहीं देता है। इसलिए उन्हेंं हमेशा अभिमान से दूरी बना कर रखनी चाहिए। वो ज्ञानी ही क्या जो अभिमान से ग्रसित हो। बहुत अच्छी पोस्ट।

  • ज्ञानी मनुष्य में अपने ज्ञान के कारण विनम्रता आ जाती है। उसे पता होता है कि संसार में इतना ज्ञान है कि वो खुद ज्ञानरूपी सागर का एक बून्द भी समेट नही पाया इसलिए वो अभिमान नही करता। सुंदर प्रस्तुति।

  • I am extremely impressed along with your writing abilities, Thanks for this great share.

  • आपने बिल्कुल सही कहा ज्ञान को गुमान नही होता, बल्कि ज्ञान व्यक्ति को मान और अभिमान के बीच फर्क कराता हैं और सदैव सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है । बेहतरीन प्रस्तुति ।

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