मानव जीवन बड़े विरोधाभास से भरा पड़ा है । इसे खतरे भी बहुत है इसीलिए कदम-कदम पर सावधानी की आवश्यकता भी है। सबसे ज्यादा खतरा इसे उनसे है। जिनके सहारे यह चल रहा है । देखिये, आग नहीं तो जीवन नहीं, परन्तु इसी आग से कितना खतरा है । हम अनेक सावधानियों में रहकर आग का प्रयोग करते है।
चाहे चूल्हे की आग हो, दीप की आग हो या अंगीठी की आग हो या फिर आग बिजली के रूप में हो, हम उसे मर्यादाओं में बांधकर रखते है। जरा भी मर्यादा से बाहर निकले, हमारे लिये खतरा बन जाती है ।
अगर हम इच्छाओं की बात करें तो यही formula है। लोगों का कहना है, इच्छा नहीं होगी तो विकास कैसे होगा, इच्छा के बिना मनुष्य आगे कैसे बढ़ेगा ?
वास्तव में विकास आवश्यकता के कारण होता है, इच्छा के कारण नहीं। इसीलिये कहा जाता है, आवश्यकता आविष्कार की जननी है। फिर भी यदि हम इच्छाओं को महत्त्व देते है तो उन्हें भी आग, पानी और हवा की तरह नियंत्रण में रखना आवश्यक है। आग जरुरी है पर हम उसे खुली छूट नहीं देते है ताकि ये कभी भी कहीं भी न भड़क उठे । पानी भी जरुरी है पर यूँ ही बिना जरुरत के न तो हम पीते है न ही फैलाते हैं। इसी प्रकार इच्छाओं पर भी तो हमें नियंत्रण चाहिये । यदि उन पर अंकुश नहीं लगाया और समय पर नहीं रोका गया तो ये इच्छाएं भी विनाशकारी सिद्ध हो जायेंगी ।
अनियंत्रित इन्द्रिय इच्छओं के कारण आज समाज में कितना दुःख, अपराध, अशांति, हिंसा और विकार हैं। हम इच्छाओं की पूर्ति होते न देख निराश हो जाते है । इच्छापूर्ति में बाधक को हम शत्रु समझते हैं, उसका काम तक तमाम करना चाहते है । पर यह नहीं समझते यह इच्छा ही शत्रु है । इसी का काम तमाम करना है ।
जब जरुरत से ज्यादा हमारी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है जैसे आजकल हम अपने बच्चों को ज़रूरत से ज्यादा सुविधाएं दे देते है तो बच्चे इसके आदि हो जाते है, जिस कारण उनकी इच्छाएं और अग्रसर होती चली जाती है इसप्रकार की इच्छाएं हमें शक्तिहीन बना देती है ।
जीवन जीने का सही तरीका यह है कि चीज़ों और साधनों का प्रयोग करें पर उसकी एक Limit होनी चाहिये।
आप सबने यह श्लोक तो सुना ही होगा –
श्लोक – अति सर्वत्र वर्जते
हिंदी अर्थ – अति किसी भी चीज की हमेशा घातक होती है ।
मनुष्यों को प्यार करें और आज यह तरीका उल्टा हो गया है। आज हम मनुष्यों का use करते है। उनके साथ Use And Throw की वृत्ति अपनाते हैं। अपने से छोटे- आयु में या पद में, बुद्धि में या शारारिक बल में- हम उनसे खूब काम लेते है पर जब कभी वह अपना हक़ मांग ले तो हमको बुरा लगता है ।
देखा जायें तो यहाँ हमारी इच्छायें हमारे ऊपर हावी हो चुकी हैं जो अब दूसरों को भी अपने बस में करना चाहती है जो कि Possible ही नहीं है क्योंकि आप एक समय तक ही दूसरे इंसान पर अपना अधिकार जमा सकते हो पर हमेशा जीवन भर ऐसा नहीं होता है ।
सही इच्छओं की ताकत का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते जैसे अगर हम कुछ अच्छा करने का मन में ठान ले और अपनी इच्छा शक्ति को मज़बूत बना ले तो वह काम पूर्ण हो कर रहता है पर अपनी इच्छाओं का उपयोग सही समय पर सही जगह पर किया गया हो ।
ये इच्छायें एक ओर हमें बना सकती है तो दूसरी ओर हमें पुर्णतः मिटा भी सकती है। इसीलिए हम अपनी इच्छओं को अपने बस में रखकर अपने कार्य करें ।
धरती, आसमान, सागर, नदी- सबकी अपनी एक सीमा है पर इच्छाओं की कोई भी सीमा नहीं है । मानाकि आज हमारी इच्छायें हमारी केवल 1 मीटर की हैं, तो कल वे हजारों, लाखों, करोड़ों मीटर की हो जानी है। इनका तो कोई अंत ही नहीं नज़र आता है। ये तो दिन दुगुनी और रात चौगुनी बढ़ती जाती है।
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगी कि इस इच्छारूपी घोड़े पर बैठकर सवारी ही न करें क्योंकि इसकी लगाम ही नहीं है जिससे इसको Control कर लिया जायेगा।
और जब घोड़ा अपना Control खो देता है तो घुड़सवार को नुकसान अवश्य होता है।
दोस्तों इच्छाओं को नियंत्रण रखना सीखे ताकि हम न कि अपनी इच्छाओं के बस में न हो बल्कि इच्छाएं हमारे बस में हो, इन्हें हमें कब, कैसे, क्यों और किस समय रोकना है। ये सब हमें तय करना है न कि हमें ही उनके बस में हो जाना है हमें अपने दिल, दिमाग की चाबी हमेशा अपने पास ही रखनी है न कि इच्छारूपी मन को दे देनी है । इच्छा हमारी है हमारे अंदर से उत्पन्न हुयी है तो हम इसे रोकने का भी पूर्ण अधिकार रखते है।
हमेशा अपनी इच्छा शक्ति को अच्छे कामों में व्यस्त रखे ताकि हम तरक्की की ओर बढ़े । यही वह समय है जब हमें इस बात का अर्थ पहचान लेना है कि इच्छओं का नियंत्रण में होना कितना आवश्यक है
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