भारत की वो बेटी जिसने पूरे विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया, न केवल अपने माता पिता को बल्कि पूरे भारत वर्ष को गौरवान्वित किया वो थी कल्पना चावला जिसका नाम भारत की हर महिला के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। उनका जन्म भारत में होना भारत के सौभाग्य से कम नहीं। कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला थी जिन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर अपने सपनो को पूरा किया तथा अपना नाम इतिहास के पन्नो में हमेशा के लिए दर्ज करवा लिया।
जन्म :-
कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को भारत के हरियाणा के करनाल जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला तथा माता का नाम संज्योथी चावला था। उनकी दो बहने तथा एक भाई था जिनका नाम दीपा, सुनीता और संजय था। वे अपने भाई बहनों में सबसे छोटी थी।
प्रारंभिक जीवन :-
कल्पना चावला बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृति की एवम् मेधावी बालिका थी। वे बचपन से ही स्वतंत्र विचारों की थी अर्थात जो उन्हे पसंद आता वो वैसा ही करती। उन्होंने अपने नाम का चयन भी स्वयं ही किया था। इस बात से संबंधित उनके बचपन की एक कहानी सुनने को मिलती जो उनकी मौसी के द्वारा बतलाई गई थी, जिसके अनुसार वे बताती है की “बचपन में सभी उन्हे प्यार से मोंटो कहकर बुलाया करते थे, परंतु जब वे स्कूल में दाखिले के लिए गई तब उनके प्रधापिका द्वारा उनका नाम पूछने पर उनकी मौसी उनसे कहती है की उनके लिए तीन नाम कल्पना, ज्योत्सना और सुनैना सोच रखा है पर अभी तक तय नहीं किया है। इस पर उनकी प्राध्यापिका स्वयं बच्ची से ही पूछती हैं कि उसे कौन सा नाम पसंद है तो उसने अपने लिए कल्पना नाम का चयन किया।”
उनके पिता चाहते थे की उनकी बेटी पढ़ लिख कर एक डॉक्टर या शिक्षक बने परंतु कल्पना की इच्छा एक इंजीनियर बनने की थी तथा उन्होंने वही किया। उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को हासिल किया।
शिक्षा :-
कल्पना चावला की प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत करनाल में स्थित “टैगोर पब्लिक स्कूल” से हुई। उन्होंने 13 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी वायुयान उड़ने की इच्छा सभी के समक्ष व्यक्त कर दी थी। अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तरह उनका मन गुड़ियों से खेलने नहीं लगता था बल्कि उनकी रुचि तरह तरह के उड़ने वाले यानों के चित्र बनाने या उनके बारे में जानने में थी। उन्होंने भारत के पहले पायलट जे आर डी टाटा से प्रेरणा प्राप्त की और उनसे ही प्रभावित होकर उनकी रुचि उड़ान के क्षेत्र में हुई।
उन्होंने आगे जाकर पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ से वैमानिक अभियांत्रिकी की पढ़ाई थी तथा 1982 में अपनी बी एस सी की डिग्री प्राप्त की। अपनी आगे की पढ़ाई उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका से की। वे 1982 में स्नातक करने के बाद ही अमेरिका चली गई। अमेरिका में उन्होंने टेक्सास विश्वविद्यालय, आर्किंगटन में दाखिला लिया तथा वहा से उन्होंने 1984 में वैमानिक अभियांत्रिकी में अपनी पहली “विज्ञान निष्णात” की उपाधि तथा 1986 में अपनी दूसरी “निष्णात” की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात उन्होंने 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय, बोल्डर से वैमानिक अभियांत्रिकी में विद्या वाचस्पति की उपाधि भी प्राप्त कर ली।
उन्होंने वैमानिक अभियांत्रिकी में अपनी पढ़ाई पूरी की।
वैवाहिक जीवन :-
उन्होंने अमेरिका में अपनी पढ़ाई पूरी के बाद वहीं शादी कर ली थी। 2 दिसंबर 1983 को उनकी शादी हुई। उनके पति का नाम “जीन पियरे हैरिसन” था जो उनके फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। उनसे विवाह करने के बाद कल्पना को यू एस ए की नागरिकता भी प्राप्त हो गई।
नासा में उनका चयन :-
1988 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नासा के एम्स अनुसंधान केंद्र में कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने मोटर चलित लिफ्टों के लिए कंप्यूटेशन द्रव गतिकी का अध्ययन किया। उनका कार्य एयरक्राफ्ट के आसपास हवा के प्रवाह को देखने का था। इस शोध के पूरा होने के पश्चात उन्होंने फ्लो सॉल्वर में मैपिंग के साथ गणना का भी कार्य किया।
1993 में कल्पना चावला ने ओवरसेट मैथड्स इंक, लॉस एटलॉस, कैलिफोर्निया में वाइस प्रेसिडेंट तथा रिसर्च वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया। यहां का कार्य एक समूह का निर्माण करके अन्य रिसर्च वैज्ञानिकों के साथ मिलकर मूविंग मल्टीपल बॉडी प्रॉब्लम के अनुकरण को देखना था। उनके द्वारा वायुगतिकीय अनुकूलन विधियों के विकास तथा उनके कार्यान्वयन का कार्य किया गया।
नासा के द्वारा वे दिसंबर 1994 में चयनित हुए तथा मार्च 1995 में वे जॉनसन स्पेस सेंटर द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों के 15वे समूह में एक उम्मीदवार रूप में चुनी गई। उन्होंने एस्ट्रोनेट ऑफिस ईवीए /रोबोटिक्स और कंप्यूटर ब्रांच क्रू रिप्रेजेंटेटिव बनने का प्रशिक्षण पूरे एक वर्ष तक प्राप्त किया। उन्होंने अंतरिक्ष शटल के मूल्यांकन तथा रोबोटिक् सिचुएशन अवेयरनेस डिस्प्ले का कार्य किया।
उन्होंने अंतरिक्ष में जाने तथा अपनी उड़ान भरने के सपनो को पूरे करने के लिए खून पसीना एक करके मेहनत किया। चूंकि वो एक महिला थी उन्हे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने से कई लोगो माना किया तथा उन्हे हतोत्साहित करने का भी भरसक प्रयास किया, परंतु उन्होंने स्वयं पर दृढ़ विश्वास बनाए रखा और निरंतर प्रयासरत और रही तथा अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए आगे बढ़ती गई। उन्होंने स्वयं को तैयार किया।
प्रथम अंतरिक्ष यात्रा :-
अंतरिक यात्री के रूप में नासा के द्वारा चुने जाने के बाद उन्होंने एक वर्ष का परीक्षण बहुत मन लगा कर लिया तथा अंततः नवंबर 1997 में कल्पना चावला को STS-87 में अंतरिक यान कोलंबिया के कक्ष में जाने का पहला अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने शटल यान द्वारा एक महीने से भीं कम समय में पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की। कल्पना चावला ने अपनी उड़ान के दौरान अपनी शटल से एक स्पार्टन सैटलाइट लॉन्च किया था। उनके समूह के दो अंतरिक्ष यात्रियों एक उपग्रह को पुनः प्राप्त करने हेतु स्पेस वॉक भी का पड़ा जो सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी के कारण खराब हो गया था। उनकी पहली अंतरिक्ष यात्रा सफल रही तथा उन्होंने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया तथा प्रथम भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव और सम्मान अर्जित किया। सभी अड़चनों को पार करके उन्होंने अंतः यह कर दिखाया।
दूसरी अंतरिक्ष यात्रा :-
पहली अंतरिक्ष यात्रा सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद उन्हें दुबारा अंतरिक्ष में जाने का मौका मिला। 2000 में अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान STS-107 पर वे दुबारा अंतरिक्ष में जाने की लिए चयनित हुई तथा वे मिशन विशेषज्ञ नियुक्त की गई। इस यात्रा कार्यक्रम को कई बार स्थगित किया गया परंतु अंतः सन 2003 में इस शटल को लॉन्च किया तथा कल्पना चावला ने अपनी टीम के साथ उड़ान भरी। कुल 16 दिनों तक अंतरिक्ष में रहे तथा उनलोगो ने 80 से ज्यादा परीक्षण किए। शटल यान अपनी यात्रा पूरी कर पुनः पृथ्वी पर 1 फरवरी 2003 को लौटा परंतु दुर्भाग्यवश शटल की लैंडिंग से ठीक 16 मिनट पूर्व अकस्मात वह नष्ट हो गया।
कल्पना चावला का निधन :-
1 फरवरी 2003 को जब स्पेस शटल कोलंबिया अपनी उड़ान पूरी करके धरती पर लौट रहा था तथा कैनेडी स्पेस सेंटर पर लैंड करने ही वाला था पंरतु लॉन्च के समय ब्रीफकेस के आकार का इंसुलिन का टुकड़ा टूट गया जिसके कारण शटल का वह विंग क्षतिग्रस्त हो गया जो री-एंट्री के समय ताप से यान की रक्षा कर रही थी। जैसे की शटल यान ने वायुमंडल में प्रवेश किया विंग के अंदर की गर्म हवा ने इसे तोड़ दिया तथा वह यान अस्थाई होकर हिलने तथा लुढ़कने लगा और 1 मिनट से भी कम समय के अंदर शटल के अंदर का दबाव बढ़ने के कारण क्रू के सभी सदस्यों की मृत्यु हो गई। जमीन में गिरने से पहले ही टेक्सास और लुसियाना पर शटल टूट का बिखर गया।
उस क्रू के सभी सात सदस्य जिनमे कमांडर रिक. डी. हसबैंड, पायलट विलियम सी. एमसीकूल, पेलोड कमांडर माइकल पी एंडरसन, पेलोड स्पेशलिस्ट इलान रामोन, मिशन स्पेशलिस्ट डेविड एम ब्राउन, लॉरेल बी क्लार्क तथा कल्पना चावला सभी की उस अंतरिक्ष विमान हादसे में मृत्यु हो गई। यह दुर्घटना 1986 में हुए शटल चैलेंजर में हुए विस्फोट के बाद स्पेस शटल प्रोग्राम में हुई दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना थी जिसमे भारत ने अपनी प्रतिभावान बेटी को खो दिया।
कल्पना चावला द्वारा अर्जित सम्मान :-
मरणोपरांत कल्पना चावला को कोंग्रेशनल स्पेस मेडल ऑफ़ ऑनर, नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक तथा नासा विशिष्ट सेवा पदक प्रदान किया गया।
2003 में भारत के पहले मौसमी सेटेलाइट का नाम “कल्पना-” रखा गया। 2004 में कर्नाटक सरकार में यंग महिला वैज्ञानिकों के लिए “कल्पना चावला अवार्ड” की भी स्थापना की।
2010 में टेक्सास यूनिवर्सिटी ने अर्लिंग्टन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में कल्पना चावला के नाम पर मेमोरियल समर्पित किया।
निष्कर्ष :-
कल्पना चावला की कहानी सभी को यह सीख देती है कि हमे अपने जीवन में ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए तथा उन्हे पाने के लिए सच्ची निष्ठा और पूरी लगन के साथ मेहनत करनी चाहिए। यदि हम स्वयं पर विश्वास रखे और कड़ी मेहनत करते जाए तो हम अपने बड़े से बड़े लक्ष्य को भी हासिल कर सकते है। कल्पना चावला हर महिला को यह सीख देती है यदि वे ठान ले तो वे अंतरिक्ष की ऊंचाई में भी जा सकती और अपने साथ साथ अपने परिवार तथा अपने देश का नाम रोशन कर सकती है। उनके जीवन से सभी को यह सीखने को मिलता है की लड़कियों को दबाना नहीं बल्कि उन्हें भी प्रोत्साहित करना करना चाहिए ताकि वे भी हर काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले और अपने सपनो को पूरा करे।
कल्पना चावला जैसी साहसी और गुणवान पुत्री पाकर भारत माता का आंचल सौभाग्य से भर गया। प्रेत्येक भारतीय उन्हे स्मरण करके गौरव से भर उठता है। वे सदा हमारे बीच अमर रहेंगी।