कमाल जी के लिए दुनिया की दौलत-शोहरत सब माटी के समान थी। इनके लिए सोना माटी था और हीरा सिर्फ एक पत्थर था और पत्थर की कोई कीमत नहीं होती और वह पत्थर को पत्थर ही समझते थे।
कबीर जी का सभी गाँव वाले बहुत आदर-सत्कार करते थे। लेकिन सभी लोगों को उनके बेटे कमाल से दिक्कत रहती है। वह कहते कि आप जैसे है, आपका बेटा आपसे बिलकुल विपरीत है। हम मेहनत करके जो भी इकठ्ठा करते है, उन्हें कमाल व्यर्थ का बता देते है और चलो व्यर्थ बताया तो बताया वो हमसे जबरदस्ती वो समान रखवा भी लेते है यह कहकर कि बोझ क्यों ढोई जा रहे हो, इसे यही पर रख दो, बेकार की चीज को किसलिए ढोना?
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कबीर जी सब कुछ समझ गए थे। उन्होंने कमाल से बात की और कहा तुम लोगों से ऐसा मत कहा करो । तो कमाल बोले, “पिता जी आपने ही तो मुझे शिक्षा दी है, व्यर्थ की चीज तो व्यर्थ की ही रहेगी, उसे ढोने से क्या लाभ हो जायेगा।”
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कबीर जी बोले कि, “ऐसे हम एक साथ नहीं रह सकते है, तुम अपनी अलग कुटिया में अब रहा करो।”
कमाल भी अपने पिता की बात मान गए और वह अलग कुटिया में रहने लगे।
एक बार कबीर जी के पास वहा का नवाब आया। उन्होंने कबीर जी से पूछा कि क्या बात है आपका बेटा कमाल अब नजर नहीं आता।
कबीर जी बोले, क्या बताऊँ, वह सभी लोगों से उनका समान और पैसा ले लेता है।
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नवाब ने सोचा क्यों न एक बार उसकी खुद ही परीक्षा ली जाए कि क्या सच में कबीर जी का बेटा ऐसा ही है?
नवाब कमाल के पास एक बहुत ही मूल्यवान हीरा (Diamond)लेकर गए। उन्होंने यह उन्हें भेंट स्वरुप देना चाहा लेकिन कमाल ने कहा कि मैं तो सन्यासी हूँ, यह मेरे किस काम का।
नवाब ने बहुत यत्न किये उन्हें हीरा देने के लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं मानी और कहने लगे की यह तो सिर्फ एक पत्थर है और पत्थर को क्या संभालना।
नवाब बोले कि यह पत्थर नहीं बल्कि हीरा है हीरा, यह बहुत ही अधिक मूल्यवान है।
कमाल बोले ,”यह तो सिर्फ एक मामूली पत्थर है ,इसे तुम हीरा कहते हो तो ले जाओ इसे। “
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कमाल ने हीरा नहीं लिया और जब नवाब हीरा लेकर वापिस जाने लगे तो कमाल बोले, “यह पत्थर किधर लेकर जा रहे हो, इसे यही पर रख दो।पत्थर के बोझ को क्यों उठाते फिरते हो।”
कमाल की बात सुनकर नवाब एक दम हैरान कि यह तो लोगों को शरेआम लूट लेते है।
नवाब बोले कहा रखूं। कमाल ने कहा कि पत्थर है, पत्थर को कहीं भी रख दो इसमें पूछने वाली क्या बात है?
नवाब ने एक जगह वह हीरा रख दिया और चलते बने।
कुछ दिनों बाद नवाब वापिस कमाल के पास आये और बोले, मैं आपको हीरा देकर गया था ,वह हीरा कहा है, मुझे दे दीजिए।
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कमाल बोले कौनसा हीरा , मैं किसी हीरे के बारे में नहीं जानता।
नवाब बोले, आप झूठ क्यों बोल रहे है ,जब कुछ दिन पहले मैं आपके आया था तब आपने वह हीरा मुझसे रखवा लिया था।
कमाल बोले कि कहीं आप उस पत्थर की बात तो नहीं कर रहे जो आप रखके गये थे।
नवाब बोले ,”हाँ, आप उसे पत्थर ही कह रहे थे लेकिन वह हीरा है ।
कमाल ने आगे कहा लेकिन आप उस दिन मान तो गये थे कि यह एक पत्थर है और पत्थर पत्थर ही होता है, आप जिस जगह रखके गये थे, देख लीजिए अगर किसी ने उठाया न हो तो वही होगा।
नवाब सोचने लगे कि कैसा ठग है यह, कैसे बातों में लगाकर ठग लेता है।
लेकिन जब नवाब ने देखा जहाँ वह हीरा रखकर गये थे,वह वही पर था तो देखकर एकदम चोंक पड़े और कमाल के चरणों में गिरकर माफ़ी मांगने लगे , “मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझसे भूल हो गयी।मैं आपको क्या समझ बैठा था ? लेकिन आप में एक महान संत पुरुष है ,मुझे क्षमा कर दीजिये।”
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कमाल बोले इसमें माफ़ी की क्या बात है, पत्थर तो पत्थर ही होता है । अगर तुम्हे यह अभी भी हीरा ही लग रहा है तो ले जाओ इस पत्थर को और आगे से ऐसी बेकार की वस्तुएं यहाँ मत लाना।
नवाब अब शर्म से झुक गये थे और उन्हें सच्चाई का भी बोध हो गया था और वह जान गए थे कि कमाल एक असल सन्यासी है, उनके लिए सब कुछ माटी और पत्थर के समान ही है।
दोस्तों आपने कबीर जी के बेटे कमाल की जीवनी का प्रसंग पढ़ा। कमाल जी कबीर जी के ही बताये हुए रस्ते पर चल रहे थे और दुनिया की मोह-माया से दूर थे और दूसरों को भी दुनिया की क्षणभंगुरता के बारे में समझाते रहते थे।
तो दोस्तों आपको “कमाल का हीरा (Kmaal’s Diamond)” article कैसा लगा ,comment करके जरूर बताये।
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निखिल जी आपने बहुत ही शानदार कहानी शेयर की है. कबीर जी के पुत्र के बारे में पढ़कर अच्छा लगा.
VERY nice and impressive story.....kamaal ka heera....thanks for sharing......
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
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Kya kmaal saahib ki koi pic mil skti hai?
inki koi bhi Pic nahi hai..... lekin agar kbhi dikhi to avashya aapko bhej dunga.
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