राजमहल या फिर जेल (Kingdom Or Prison)

चक्रसेन नाम का राजा चक्रपुर राज्य का राजा था। उसे राज्य का भार सँभालते हुए
अभी कुछ ही महीने हुए थे लेकिन वह बहुत अभिमानी था। उसे अभिमान था कि
उसका राज्य अन्य राज्यों की तुलना में सबसे खुशहाल है और वो प्रजा पर
भलीभांति शाषण कर रहा है।

जब भी कोई राज्य का नागरिक राजा के समक्ष अपनी कोई समस्या लेकर आता तो वह उसको सही ढंग से न सुनता और कह देता कि, “यह तो हमारा ही राज्य है जहाँ पर तुम चैन से रह पा रहे हो , आस-पास के किसी भी राज्य के लोगों को देख लो कि उन्हें कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तुम लोगों के पास सब सुख-सुविधाएं है लेकिन फिर भी तुम लोग बोलते ही रहते हो ,अगर अगली बार आये तो बंदी बनवाकर कारागार में डाल दिए जाओगे। ”
 

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राजा के इसी व्यवहार के कारण राज्य की प्रजा राजा से परेशान रहती थी। वो किसी की भी बात नहीं सुनता था। इसी व्यवहार के कारण राज्य के अन्य राज्यों से संबंध भी बिगड़ गए थे।

राज्य में खुशहाली का कारण राजा के पिता थे जो बीमारी के चलते गुजर गए और बाद में उनके पुत्र चक्रसेन को राज्य का भार सौंपा गया था। पहले आस-पड़ोस के सभी राज्यों से सम्बन्ध भी अच्छे थे लेकिन जब से चक्रसेन राजा बना तब से ऐसा सब कुछ होने लगा। उसे अहंकार था कि उसका राज्य सर्वश्रेष्ठ है ,लेकिन उसे अभी तक यह एहसास ही न हुआ था कि उसका राज्य आने-वाले समय में पतन की और चले जाएगा।

एक साधु थे जोकि सन्यास लेने से पहले चक्रसेन के पिता के काफी अच्छे मित्र थे  और बाद में भी वह अक्सर साधु से मिलने आ जाया करते थे । जब उन्हें इस बात का पता चला कि चक्रसेन राज्य का भार सही ढंग से नहीं संभाल रहा तो उन्हें अपने मित्र का प्यार और प्रजा की भलाई की चिंता हुयी और उन्होंने राजा को शिक्षा देने की सोची।

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साधु चक्रपुर राज्य में आये और सीधा राजमहल में गए ,उन्होंने अंदर जाने से पहले किसी भी पहरेदार से न ही कुछ पूछा और न ही उनसे कुछ कहा।

राजा ने जब साधु को इस प्रकार बिना इजाजत के अंदर आते देखा तो उसे साधु पर बहुत क्रोध आया और उन्हें बोला ,” आप कैसे साधु है, किसी साधु को इतना अभिमान नहीं करना चाहिए।” राजा एकदम गुस्से में बोला।

साधु ने राजा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और बोले, “मैं एक रात के लिए इस जेल में विश्राम करना चाहता हूँ।”

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राजा saadhu की बात सुनकर एकदम से हैरान हो गया और थोड़ा गुस्सा होकर बोला, “आप यह क्या बोल रहे है? यह आपको कोई जेल दिखती है क्या? यह मेरा राजमहल है, एक ऐसा राजमहल जहाँ सभी सुख-सुविधाएं मौजूद है और आप इसे जेल कहते है। या तो आप नासमझ है या फिर किसी दुश्मन राज्य के जासूस है। सच-सच बोलों कौन हो तुम, अगर सच बतादोगे तो तुम्हारी सजा कम कर दी जायेगी, अन्यथा तुम्हारे साथ बहुत बुरा होगा।

साधु शीतलता के साथ बोले, “हे राजन, तुम मुझे एक बताओ, तुमसे पहले इस राजमहल पर किसका अधिकार था।”

राजा बोला, “मेरे पिता जी का।”

साधु फिर पूछने लगा ,”पिता से पहले किसका था।”

Raja बोला, “मेरे दादा जी का।”

साधु अब राजा को समझाते हुए कहने लगे,” हे राजन, जिस प्रकार इस राज्य में आज तुम हो, तुमसे पहले तुम्हारे पिता थे और उनसे पहले तुम्हारे दादा थे, यह राजमहल उनके लिए था, जब तुम नहीं होंगे तब तुम्हारे बच्चों का होगा। ठीक इसी प्रकार ही तो जेल होती है, आज कोई रह रहा है,कल कोई और था और कल कोई और होगा। यह राजमहल एक जेल ही तो है जिसने तुम्हें वहम में डाल रखा है कि यह राज्य तुम्हारा है, तुम इसके सिर्फ संचालक हो, जब तुम नहीं भी रहोगे तब भी यह राज्य रहेगा और जब तुम नहीं थे तब भी यह राज्य था।”

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साधु आगे कहने लगे, “सर्वप्रथम तुम और हम सभी इंसान इस संसार में कैदी है । जिस प्रकार कैदी को अच्छे बर्ताव के कारण जेल से मुक्ति मिल जाती है उसी प्रकार हम इंसान जब इस संसार रूपी जेल में आते है और अच्छे कर्म करते है तब हमें जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।

लेकिन तुम तो खूंखार जेल में कैद हो। इस जेल में कैद होकर तुम बुरे कर्म ही किये जा रहे हो, तुम्हें तुम्हारे राजा बनने का अभिमान हो गया है, जिस राज्य की खुशहाली का तुम मान करते है असल में वह तुमने की ही नहीं। यह तो तुम्हारे पिता और दादा थे जो अपनी प्रजा को खुश रखने के लिए हर संभव कार्य करते थे। लेकिन तुम तो राजा के पद पर आकर अभिमानी हो गए और अपनी प्रजा के साथ बुरा बर्ताव किये जा रहे हो। और तो और तुमने अपने झूठे अभिमान में अपने मैत्री राज्यों को भी अपना दुश्मन बन लिया है।

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इस जेल के अभिमान रुपी पाशों (जंजीरों) से बाहर निकलो और वास्तविकता को जानो।”

साधु की बातें सुनते सुनते राजा को आत्मबोध हुआ और उसे अपनी गलती का एहसास भी हुआ और राजा साधु से कहने लगा,” महाराज, मुझे क्षमा कीजिये, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी। मैं राजा बनकर अभिमानी हो गया था और अपनी प्रजा के साथ ही बुरा बर्ताव करने लग गया था। अब मैं सब समझ चूका हूँ। आपने मुझे सही रास्ता दिखाया आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मैं आपको अपने राज्य में राज-गुरु के पद पर नियुक्त करना चाहता हूँ ताकि आप आगे भी हमारा मार्गदर्शन करते रहे, कृपया मेरी विनती स्वीकार कीजिए।

साधु बोले, “तुम्हे अपनी गलती का एहसास हो गया मेरे लिए इतना ही काफी है और जो भी पद की बातें तुम करते हो यह सब तो सांसारिक है। यह पद तो कुछ समय तक के लिए रहेगा लेकिन मुझे तो अपनी आत्मा को प्रभु के धाम में पद दिलवाना है जिससे मेरा उद्धार हो सके और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल सके, मैं तो सन्यासी हूँ और मुझे ईश्वर की भक्ति में ही झूमने दो।

यह कहकर साधु दरबार से चले गए क्योंकि अब उनका काम पूरा हो चूका था और राजा को भी अब सच्चाई की समझ आ गयी थी।

दोस्तों हम भी कुछ ऐसे ही है, हम आये तो इस संसार में सद्कर्म करने के लिए है लेकिन हम अक्सर बुरे कर्मों में फंसकर उन्हें ही जीवन का उद्देश्य समझने लग जाते है और जीवन का असल उद्देश्य जोकि प्रभु की भक्ति करते हुए आत्मा का उद्धार करना है उसे भूल ही जाते है।

कुछ लोग ऐसे होते है जो कहते है कि हमें समय ही नहीं मिलता प्रभु की भक्ति करने का तो वो लोग क्या आप जागृत है ? (Kya Aap Jag Rahe Hai ?)  इस पोस्ट को जरूर पढ़े।
और एक बात सद्कर्म का अर्थ सिर्फ प्रभु भक्ति ही नहीं है, सद्कर्म अर्थात अच्छे कर्म, अच्छे कर्मों का मतलब है कि किसी भी प्रकार से कोई बुरा कार्य मत करना, किसी का दिल न दुखाना, शराब का सेवन और मांस वगैरह न खाना क्योंकि किसी जीव को मारकर कभी भी ख़ुशी नहीं मिल सकती।

सद्कर्मों की शुरुआत सबसे पहले तो इस कार्यों एक इलावा अपने आप से ही शुरू होती है, अभिमान न करना, झूठ न बोलना, क्रोध न करना आदि । अगर आप सोचते है कि इस प्रकार तो कोई रह ही नहीं सकता तो आप उस Post को अवश्य पढ़े जोकि मैंने ऊपर भी बताई है अवश्य पढ़े क्या आप जागृत है ? (Kya Aap Jag Rahe Hai ?) ,इस post को पढ़कर आप सब कुछ समझ जाएंगे।

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