तीर्थंकर महावीर सिर्फ जैन धर्म में ही माननिये नहीं बल्कि प्रत्येक धर्म और सम्पूर्ण विश्व में इनका अनुसरण करने वाले कई लोग है। इन्होने जो शिक्षा दी वह सिर्फ किसी धर्म या जात के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव-जाती और समस्त जीवों के भले के लिए ही दी थी। उनके अनुसार प्रत्यके जीव को जीने का अधिकार है और प्रत्येक जीव में समान आत्मा विध्यमान है।
इसीलिए महावीर जी ने “जीयो और जीने दो” का सन्देश दिया।
दोस्तों महावीर का धर्म बताने से पहले हम यहाँ यह बताएंगे कि धर्म है क्या? धर्म का मूल स्वरूप क्या है। धर्म की simple सी परिभाषा यही है कि जिसे धारण किया जा सके यानी जिन विचारों को हम अपने जीवन में धारण करते है वही धर्म है।
अब बताते है कि महावीर का धर्म क्या है, उन्होंने किस चीज का अनुसान या किस चीज को धारण करने के लिए कहा।
महावीर जी के अनुसार “अहिंसा परमोधर्म:” यानि कि अहिंसा ही परम धर्म है, यही उनका बतलाया हुआ धर्म है। भले ही कोई किसी अन्य नियम का पालन करे अथवा न करे, कोई किसी चीज का अनुसरण कर सके अथवा न कर सके, लेकिन अगर कोई “अहिंसा” का पालन कर रहा है, तो वह एक सच्चा इंसान है । क्यूंकि सच्चा इंसान वही जो न सिर्फ अपने दुखों को बल्कि दुसरो के दुखो को भी समझे।
और वैसे भी जैन धर्म सिर्फ मात्र धर्म ही नहीं, बल्कि जीने की कला है अगर आपने इसे अपना लिया भले ही आप किसी भी धर्म से संभंधित है, तो समझिये आपक सच्चे इंसान जरूर बन गए।
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अंत में एक बात अपने शब्दों में कहना चाहूंगा जिसे पढ़कर आप सब समझ जाएंगे कि महावीर का धर्म क्या है
जैन शब्द सिर्फ लिखने मात्र से कोई जैन नहीं बन जाता । जैन वही जो दूसरे के दुखो को भी समझे और अहिंसा का पालन करे।
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