बन्दे तू करे हंकार किस गल्ल दा
कख दी तेरी औकात हैगी नी
ढेला भर तू लैके जा सकदा नी
जिन्देया जी आपे तू खा सकदा नी
आपने आप नू खुद जला तक सकदा नी
बस जद देखो मैं मैं जिन्नी मर्जी करवा लो
कदे किसे दा दिल तक तू खुश कर सकेया न
ते हंकार ऐना रख लिया जीवे तू दुनिया तो कदे जा नी सकदा?
दोस्तों, क्या उपरोक्त पंक्तियां आपको समझ आयी? क्योंकि यह पंजाबी लहजे में है, जिन्हें नही समझ आयी, पहले उनके लिए इसका हिंदी अनुवाद, और जो इसे पूरा पंजाबी में पढ़ना चाहते है, वह यहां क्लिक करे।
बन्दे, तुम्हे अहंकार किस बात का है?
राख के बराबर तेरी औकात है नही
एक पैसा तक तू लेकर जा सकेगा नही
जीते-जी अपने आप कुछ कहा सकते नही
अपने आप स्वयं को जला सकोगे नही
बस, जब देखो, मैं मैं जितनी मर्जी करवा लो
कभी किसी का दिल खुश कर सके न
और अहंकार ऐसा रख लिया, जैसे तुम दुनिया से कभी जा ही नही सकते?
(दोस्तों जो लोग पूछते रहते है कि “जीवन की सच्चाई क्या है” तो वो इन उपरोक्त शब्दों से भी जीवन की सच्चाई को समझ सकते है.)
दोस्तों आज कल हम सभी ऐसे ही हुए पड़े है। अहंकार जितना चाहे, उतना करवा लो, भले ही कुछ हो न, गुब्बारे में भरी हवा जैसा अहंकार है हम सब में यानी कि सिर्फ दिखावे की फुलावत, जैसे ही हल्की-सी भी सुई लगी नही कि सब खत्म।
लेकिन मजे की बात तो आगे और है, सुई लगने के बाद भी आग बबूला ऐसे होते है हम, जैसे पता नही कौनसे सितारे तोड़कर ले आए थे हम?
कहने भाव यह है कि ,इतना कुछ कभी काम किया ही नही है हमने, जितना अहंकार रखा हुआ है, लेकिन जैसे ही कोई उस झूठे अहंकार को तोड़े, फिर बेवजह से हम उसी पर गुस्सा कर लेते है।
दोस्तों, जो सोचते है कि मैं अकेले सब काम कर सकता हूँ तो वह याद रखे, अकेले कोई भी, कुछ न कर पायेगा। खाना तक अकेले खा नही सकते। एक वक्त की रोटी भी हम तक पहुंचाने में सैंकड़ो लोगो का योगदान होता है, किसान से लेकर दुकानदार तक और हम सोचते है कि हम सारा का सारा काम अकेले कर लेंगे।
हम अकेले क्या कर सकते है? अंतिम समय जब आएगा, तब अकेले अपने आप का दाह संस्कार तक तो करने का दम है नही और चले है हम इस जग को फतेह करने।
दोस्तों, कभी सोचियेगा, कितनी मुर्खतापूर्ण सोच है, यह हम सबकी, जो जो भी ऐसा सोचते है और विचार कीजियेगा कि हम क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाएंगे?
दोस्तों अगर आपको लगता है कि इस आर्टिकल में अभी भी कुछ लिखना कम रह गया है, तो याद रखिये, हमारे अंदर की कमी , शब्द नही बल्कि हम स्वयं ध्यान के द्वारा ही समाप्त कर सकते है। मैंने तो सिर्फ शब्द मात्र लिखे है लेकिन इन शब्दों को हमने अपनी ज़िंदगी में किस तरह से उतारना है, यह हम पर निर्भर करता है।
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मन से अहंकार को कैसे निकाले, मन में सुविचार कैसे लाये, अच्छे व्यक्ति कैसे बने, सच्ची राह पर कैसे चले, अपना जीवन अच्छा कैसे बनाये, सद्गति कैसे प्राप्त करे, पर लेख
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दुनिया सार तो यही है किन्तू भौतिकता ने अंधा कर रखा है।और यै मैकाले की पद्धति ने भारतीयता को खत्म कर दियाहै।