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मेरी भावना (Meri Bhavna) ऐसा भजन जिसमे है सच्ची ज़िन्दगी का सार

दोस्तों आज आपके साथ मेरी भावना जोकि एक आध्यत्मिक पाठ और जैन भजन भी है वो आपके साथ सांझा कर रहे है. भले ही इसे जैन भजन के तौर पर जाना जाता हो, लेकिन एक बार इन शब्दों को पढ़िएगा जरुर, अगर हम सभी के भाव इस प्रकार से हो जाये तो किसी में भी रागद्वेष, काम-क्रोध, लोभ-अहंकार कुछ न बचे.

यह पाठ हमे अपनी सब बुराईयों को दूर करने के लिए प्रेरित करता है. इसमें किसी भी भगवान या देव-देवी की वंदना नही अपितु यह कर्म अच्छे कैसे करे, इस बारे में हमे बताता है.

याद रखिये मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है

जो लोग जीवन में बुराईया करते रहते है, जब उन्हें उनकी बुराई का एहसास होता है तब वेह कहते है की “चलो यह जन्म तो निकल गया, अगले जन्म में जरुर अच्छे कर्म करेंगे“, तो उनकी यह सोच काफी गलत है, याद रखिये मानुष जन्म बार-बार नहीं मिलता, देवता भी मनुष्य का जन्म प्राप्त करने के लिए तरसते है क्यूंकि 84 लाख जन्मों में इकलौता मनुष्य का ही जन्म है जो आत्मा को मुक्ति/सद्गति प्राप्त करवा सकता है. इसलिए याद रखिये ऐसा कहने से कुछ नही होने वाला कि यह जन्म तो निकल गया, जब आपकी आत्मा जागृत हो जाये तभी से अच्छे कर्मों की तरफ बढ़ जाईये.

अच्छे कर्म कैसे करे, अच्छे भाव कैसे रखे अगर आपको यह जानना है तो इसी बात की शिक्षा हमे “मेरी भावना” भजन के माध्यम से मिलती है. अगर हमारी ऐसी भावना बन जाये तो फिर जीवन का क्या कहने? अच्छे कर्मों से बढ़कर कोई पुण्य नहीं, क्यूंकि जब कर्म ही अच्छे है तो फिर किसी अन्य चीज की क्या आवश्यकता ?

तो पढ़िये अब यह भजन, लेकिन एक-एक शब्द को समझकर पढ़िएगा तभी आप इसके गूढ़ महत्व को समझ पाएंगे.

मेरी भावना भजन (Meri Bhavna Bhajan Lyrics In Hindi)

जिसने राग द्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिया,
सब जीवो को मोक्ष मार्ग का, निस्पृपहो उपदेश दिया।
बुद्ध  वीर जिन हरी हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो,
भक्तिभाव से प्रेरित हो, यह चित उसी में लीन रहो।।विषयो कि आशा नहीं जिनके साम्यभाव ,
धन रखते है जो निजपर के हित साधन में जो,
निशदिन तत्पर रहते है, स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या बिना खेद जो करते है
ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुःख समूह को हरते है।।

रहे सदा सत्संग उन्ही का, ध्यान उन्ही का नित्य रहे,
उन्ही जैसी चर्या में यह चित सदा अनुरक्त रहे।
नहीं सताऊ किसी जीव को, जूठ कभी नहीं कहा करू,
परधन परजन लुभाऊ, संतोषामृत पिया करू।।

अहंकार का भाव न रखू, नहीं किसी पर क्रोध करु,
देख दुसरो की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्र्या भाव धरुँ।
रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करु,
बने जहा तक इस जीवन में ,औरो का उपकार करु ।।

मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों पर नित्य रहे ,
दीन दुखी जीवों  पर मेरे उर करुणास्रोत बहे।
दुर्जन-क्रूर-कुमार्गरतो पर, क्षोभ नहीं मुझको आवे ,
साम्यभाव रखूँ मैं उनपर, ऐसी परिणति हो जावे।।

गुणी जनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे,
बने जहाँ तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख ।
होऊ नहीं कृतघन कभी मैं, द्रोह न  मेरे उस आवे,
गुण-ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषों पर जावे।।

कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी अावे या जावे,
लाखों वर्षों तक जीऊ  या, मृत्यु आज ही आ जावे।
अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आवे,
तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पावे।।

हो कर सुख में मग्न न फूले, दुःख में कभी न घबरावे,
पर्वत नदी शमशान भयानक,  अटवी से नहीं भय खावे,
रहे  अडोल-अकम्प निरंतर, यह मन दृढ़तर बन जावे,
इष्ट-वियोग अनिष्ट योग में, सहनशीलता दिखलावे।।

सुखी रहे सब जीव जगत के,  कोई कभी न घबरावे,
वैर , पाप, अभिमान छोड़ जग, नित्य नए मंगल गावे।
घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे,
ज्ञान चारित्र उन्नतकर अपना, मनुज जन्मफल सब पावे।।

ईति-भीति व्यापे नहीं जग में,वृष्टि समय पर हुआ करे,
धर्मनिष्ट होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे।
रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे,
परमअहिंसा-धर्म जगत में, फैल सर्व-हित किया करे।।

फैले प्रेम परस्पर जग में,मोह दूर पर रहा करे,
अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करे।
बनकर सब युगवीर हृदय से,देशोन्नति-रत रहा करे,
वस्तुस्वरूप विचार ख़ुशी से, निजानन्द में रमा करे।।

“मेरी भावना” यह एक आध्यात्मिक पाठ है, यह भावना हम सभी के दिलो में होनी चाहिए, अगर हम सभी ऐसी भावना को अपनी असल जिंदगी में निभाए तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया ही स्वर्ग होगी।

माता-पिता अपने बच्चों को जरूर पढ़ाये यह भजन

दोस्तों, हर माता-पिता चाहते है कि उनका बच्चा अच्छा बने और इंटरनेट पर भी माता-पिता बहुत सर्च करते है कि “माता-पिता अपने बच्चों को अच्छा बनाने के लिए क्या करे?

तो मैं उनसे यही कहूंगा कि “मेरी भावना” भजन को अपनी जिंदगी का अटूट हिस्सा बना लें. भले ही भजन काफी छोटा है, लेकिन इसका एक-एक शब्द अगर कोई अपनी ज़िन्दगी में उतार ले तो वह न सिर्फ इस लोक को, बल्कि अपने परलोक को भी सुधार लेता है.

हर माता-पिता अपने बच्चों को इस पाठ को जीवन में उतारने की शिक्षा जरूर दे और खुद भी ऐसे भाव गृहण करें.

पढ़िये : मांस का मूल्य, एक सच्ची कहानी

Nikhil Jain

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