रूप नहीं किस्मत मांगे (Roop Nahi Kismat Mange)

 

राजा चतुरसेन बहुत ही पराक्रमी और महान शाशक थे। उनके राज्य में जनता सुख-शान्ति से रहा करती थी और वह बहुत ही दयालु तथा न्यायप्रिय राजा  थे। बस उनकी एक कमी थी जो जनता को पसंद नहीं थी ,वह कुरूप थे।

एक बार की बात है, राजा के दरबार में एक नृतिका आयी। वह बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थी ,किन्तु वह बहुत ही गरीब थी। अपना नृत्य लोगो को दिखाकर ही अपना पेट भरा करती थी।

दरबार में आकर उसने राजा को अपना नृत्य दिखाने की इजाजत मांगी। राजा ने सहमति दे दी।

उसका नृत्य देखकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए और उसे इनाम में १००० (1000) सोने की मोहरें भी दे दी। इनाम में इतनी मोहरें पाकर नृतिका बहुत खुश हुयी क्यूंकि अब उसकी गरीबी खत्म हो चुकी थी।

जाते-जाते उसके मन में एक बात आयी पर राजा से  पूछने की उसकी हिम्मत न हुयी।

उस नर्तकी को विचार में मगन देखकर, राजा उसके मन की शंका समझ गए थे और राजा बोले कि पूछो क्या पूछना चाहती हो।

पहले तो नर्तकी ने, “कुछ नहीं महाराज” कहकर बात टाल दी ,लेकिन जब राजा बार बार उसे कहने लगे तो नर्तकी कहने लगी, माफ़ कीजियेगा महाराज ! पर मेरे मन में एक प्रश्न है, जो मैं आपसे पूछना चाहती हूँ।

 राजा ने कहा ,पूछो।

नर्तकी पूछने लगी , महाराज जब भगवान लोगो को रूप बाँट रहे थे, तब आप कहाँ थे ?

नर्तकी की बात को सुनकर राजा ने गुस्सा नहीं किया क्यूंकि वो नर्तकी के मन को पहले ही समझ गए थे। राजा नर्तकी को उत्तर देते हुए बोले ,जब तुम ऊपर भगवान के पास रूप लेने की Line में खड़ी हुयी थी ,तब मैं किस्मत वाली Line में खड़ा किस्मत ले रहा था। इसलिए ही आज तुम जैसी रूपवान मेरे राज्य में मेरे लिए काम करती है।

Moral: अगर आपमें से भी कोई अपने रूप को देखकर पछताता है और अपने रूप के बारे में सोच-सोचकर मन ही मन उदास होता रहता है तो फिर उदास होना छोड़िए ,क्या मालुम आपके पास अपनी बहुत ही अच्छी किस्मत हो और आप वो सब करने में सक्षम हो जो दूसरे नहीं कर सकते।
इसलिए भगवान से रूप न मांगे बल्कि किस्मत मांगे क्यूंकि अक्सर रूप वाले ही किस्मत वालो के गुलाम हुआ करते है।