मुकेश नाम का व्यक्ति था। वह वैसे तो बहुत ही अच्छा व्यक्ति था लेकिन उसमे एक ही बुरी आदत थी कि वह cigarette बहुत पीता था। उसके बीवी और बच्चे भी उसे बहुत समझाते और वह खुद भी सिगरेट से होने वाले नुकसानों के बारे में जानता था, लेकिन वह अपनी इस बुरी आदत को छोड़ नहीं पा रहा था।
उनके गाँव में एक साधू आये जो लोगों की सब समस्याओं का समाधान बहुत ही सरलता से कर देते थे।
मुकेश भी उन साधू बाबा जी के दर्शन करने के लिए गया और अपनी समस्या उन्हें बतायी। वह बोला साधू महाराज, “वैसे तो ईश्वर की कृपा मुझपर बहुत है और न ही कभी गलत संगत में गया हूँ, बस दिक्कत है तो सिर्फ इतनी की मैं cigarette नहीं छोड़ पा रहा हूँ। मैंने बहुत प्रयास किया कि सिगरेट पीनी छोड़ दूं लेकिन सिगरेट पीने की आदत मुझे जकड़े हुए है ,मैं चाहकर भी इस आदत को छोड़ नहीं पा रहा। जबकि मैं इससे होने वाले नुक्सान भी जानता हूँ और मुझे यह भी मालुम है कि सिगरेट सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बल्कि मेरी बीवी और मेरे बच्चों की भी सेहत खराब करती है। लेकिन यह आदत मुझे पकड़े हुए है। कृपा करके कुछ समाधान बताईये की मैं इससे छुटकारा पा सकूँ।”
साधू बाबा बोले, “बेटा, मैं तुम्हारी परेशानी समझ गया, लेकिन तुम मेरे पास कल सुबह आना तब मैं तुम्हारी समस्या का समाधान कर दूंगा।”
मुकेश अगले दिन सुबह साधू जी के पास गया और देखा कि साधू बाबा भोजन करने के बाद भी अपनी भोजन की थाली के पास ही बैठे हुए है और उन्होंने अपने मुंह में चम्मच डालके रखा हुआ है। मुकेश ने साधू जी को प्रणाम किया और साधू जी अपने मुंह में चम्मच डाले हुए ही बोले, “आओ वत्स”। मुँह में चम्मच था ,इसलिए वह सही तरह से नहीं बोल सके। मुकेश कुछ देर वही पर बैठा रहा ,लेकिन साधू को ऐसे देखकर उसे काफी हैरानी हुई । आखिर उसने साधू जी के एक शिष्य से पूछ ही लिया कि ,”साधू बाबा मुँह में ऐसे चम्मच लेकर क्यों बैठे हुए है।”
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शिष्य बोला, “इन्होंने नहीं चम्मच मुँह में डाला बल्कि चम्मच इनके मुँह में आया हुआ है और मुँह में से बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रहा।”
मुकेश एकदम हैरानी से बोला, “यह कैसे, आप क्या कह रहे है।”
शिष्य बोला, “दरअसल बात यह है कि गुरु जी रोज भोजन करते है और चम्मच भी उनके मुँह में जाता है और आज भी जब गुरु जी भोजन करने के लिए बैठे और चम्मच से खा रहे थे तो बाद में इनके मुँह में से चम्मच अभी तक निकल ही नहीं और उनके मुँह में ही रह गया।”
मुकेश को शिष्य का उत्तर भी बहुत अजीब लगा। लेकिन फिर भी वो तो साधू और शिष्य थे, वह उन्हें क्या कहता? और साधू जी के सामने ही बैठा रहा।
आखिर जब बहुत समय हो गया, मुकेश साधू जी के करीब जाकर फिर से बोला, “महाराज, आपने आज मुझे मेरी समस्या का हल बताना था। कृपा करके बताईये।”
साधू मुँह में चम्मच लिए हुए ही बोले, ” बेटा, मैं अभी तुम्हे ठीक तरह से समझा नहीं सकता क्योंकि यह चम्मच मेरे मुँह में से निकल ही नहीं रहा और जब तक निकल नहीं जाता तब तक अच्छे से तुम्हे समझा नहीं पाऊंगा।”
मुकेश साधू जी से बोला, “महाराज, क्यों मज़ाक करते है मेरे साथ। एक छोटी-सी समस्या आपके पास लेकर आया और आप बहाने ही बनाये जा रहे है। यह एक चम्मच है,जिसे आपने अपने मुँह में डालकर रखा हुआ है, यह कोई जीवित वस्तु थोड़े न है जो आप पर control कर सके। अगर आपने नहीं जवाब देना था, तो पहले ही बता देते।”
साधू बोले , “बेटा , तुम देख ही रहे हो ,यह चम्मच मेरे मुँह में ही है ,मैं रोज भोजन करते वक्त इसी चम्मच का इस्तेमाल करता हूँ ,लेकिन अब आज यह मेरे मुँह में से निकल ही नहीं रहा। “
अब मुकेश को और भी अधिक गुस्सा आने लगा और साधू जी से बोला, “आपके बारे में सुन तो बहुत रखा था कि सभी समस्याओं का समाधान आपके पास है लेकिन आज देख लिया कि कैसे साधू है आप ? दूसरे लोगों को बेवकूफ समझते होंगे आप ,लेकिन मैं नहीं हूँ। कोई भी वस्तु किसी इंसान को वश में नहीं कर सकती ,इतना तो अच्छे से जानता हूँ। बस बहुत हो गया आपका खेल।” और भी न जाने गुस्से में क्या-क्या बोल दिया साधू महाराज को।
अब साधू जी अपने मुँह में से चम्मच निकालकर बोले, “बेटा, इतनी देर से मैं भी तो तुम्हे यही समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि जो समस्या तुम मेरे पास लेकर आए वह भी एक वस्तु है, cigarette अपने आप नहीं तुम्हारे मुँह में जाती, बल्कि तुम इसे लेकर अपने मुँह में डालते हो तभी यह तुम्हारे मुँह में आती है, नहीं तो अपने आप नहीं आ सकती। इस आदत को तुमने पाल रखा है ,यह कोई जीवित वस्तु नहीं जो तुम्हे वश में कर सके बल्कि तुम्हारी ही सोच और तुम्हारी ही आदत तुम पर हावी हो रही है और तुमने ही इसे जीवित की तरह बना दिया है एक अजीव को।”
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मुकेश को अब बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी क्योंकि वह अब सब समझ चूका था और उसने साधू जी के सही से बर्ताव भी नहीं किया और उन्हें बहुत बुरा बोला था। उनकी सारी बात अब मुकेश की समझ आ चुकी थी । मुकेश ने अब साधू महाराज जी से क्षमा भी मांगी और उनका धन्यवाद भी किया कि उन्होंने उसे सही रास्ता दिखाया।
दोस्तों ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी होता है, हम कहते है कि हमारी आदत हमे जकड़े हुए है क्योंकि हम रोज-रोज जो बुरे काम करने लग जाते है और बाद में वह हमारे रोज के काम बनकर हमारी आदत बन जाते है और हम कहते है कि यह मेरी आदत बन चुकी है और मैं अपनी इस बुरी आदत को छोड़ना चाहता भी हूँ लेकिन आदत मुझे नहीं छोड़ रही।
लेकिन क्या असल में किसी भी आदत में, जिसमे कोई प्राण भी नहीं, उसमे इतनी शक्ति है कि हम पर काबू कर सके? क्या हम इतने कमजोर हो जाते है कि अपनी एक आदत के वश में होकर हम आने घुटने टेक दे?
नहीं दोस्तों, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि असल में हमारी कोई भी बुरी आदत हमारी ही बनाई हुई है ,उसमे अपनी कोई भी जान नहीं कि हम पर काबू कर सके। यह तो बस हमारी ही कमजोरी है कि हम अपनी आदत को अपने पर हावी होने देते है। याद रखिए हम मनुष्य है, ईश्वर की बनायी हुयी ऐसी संरचना जो हर एक काम करने में सक्षम है तो फिर हम इतने कमजोर तो हो नहीं सकते कि अपने एक बुरी या फिर अपनी कुछ बुरी आदतों को छोड़कर अच्छे न बन सके।
बुरी आदतों को छोड़ने के लिए हमे कुछ अधिक नहीं बस सिर्फ इतना-क करना है कि अपना संकल्प दृढ़ रखना है और हमेशा अपनी सोच को अपने ही वश में करके रखना है।
जब ऐसा करलेंगे तो ऐसी कोई बुरी आदत नहीं जो हमपर काबू पा सके क्योंकि आदते अजीव है लेकिन वह हमारी सोच के कारण ही जीवित की तरह हमपर काबू करती है, इसलिए ऐसी आदतों को दृढ़ निश्चय करके हमे छोड़ देना चाहिए।
तो दोस्तों आपको यह कहानी साधु का अजीब उत्तर (Saadhu’s Strange Answer) जोकि बुरी आदतों को कैसे छोड़े (How To Leave Bad Habits In Hindi) पर लिखी हुयी है कैसी लगी हमे comment करके जरूर बताये।
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बढ़िया कहानी.
Bahut acchi kahani.....nirantar accha lekhte rahen......
shukriya Amul Ji.....
very nive post Nikhil ji
Bahut hi majedaar kahani hai... thanks for sharing
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