भक्ति……… ? क्या है भक्ति ? क्या सिर्फ किसी देवी-देवता की पूजा करना ही भक्ति है ? या फिर किसी ख़ास पाठ का नियमित पाठ है भक्ति ? या फिर देवी-देवता के विषय में ज्ञान को भक्ति कहते है ?
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क्या इन्ही में से किसी एक को या फिर सभी को भक्ति कहते है ? चलो पहले इन तीनो पर गहराई से विचार करते है और फिर बाद में असल भक्ति क्या है ,उसके बारे में बात करेंगे।
कई लोग सोचते है कि किसी देवी-देवता की पूजा कर ली तो वह उनका सच्चा भक्त हो गया। लेकिन क्या यह सच्ची भक्ति है ? Mostly जो भी ऐसा सोचते है ,वह करते क्या है कि शरीर या मुख से तो देवी-देवता की पूजा कर रहे होते है ,लेकिन उनका मन कही और ही भटक रहा होता है। मंदिर में गए……. समय थोड़ा अधिक लग गया ,अरे यह क्या ……. साथ ही भक्त सोचने लग जाएगा …..,यार ,मेरा तो सीरियल शुरू हो गया होगा ,चलो जल्दी-जल्दी घर चलता हूँ ,जितना छूट गया होगा वह youtube से देख लूंगा। अगर सीरियल नहीं ,तो फिर cricket match का क्या बना ? कौन जीत रहा होगा ? कोहली ने शतक लगा दिया होगा या फिर आउट हो गया होगा ? चलो फटाफट घर जाकर देखते है। अगर ज्यादा ही जल्दी होगी तो फिर ,भक्ति की थोड़ी-सी break और मोबाइल का lock खोल और Cricbuzz से score देखने शुरू।
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यह भक्ति कैसी हुयी ,समझ ही गए होंगे सभी।
अब दूसरी भक्ति ……….
नियमित पाठ करना अच्छी बात है। इससे इंसान में अच्छे विचारों के साथ-साथ सकारत्मकता भी आती है। लेकिन कई लोग ,दूसरे लोगो के सामने ……मुझे यह पाठ आता है ,मुझे वो पाठ आता है…… या फिर पाठ करते-करते ध्यान वही Cricbuzz या फिर TV Serial की तरफ।
यह भक्ति भी कैसी हुयी आप समझ ही गए होंगे।
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अब तीसरी भक्ति की बात करते है-
क्योंकि सच्ची भक्ति तो सच्ची लगन और निष्ठा के साथ होती है। ऐसी भक्ति में इष्ट ,सिर्फ इष्ट न रहकर सखा, माता-पिता, भाई-बंधु किसी भी रूप में भक्त को प्रिये हो जाता है।
एक सच्चा भक्त, अपने इष्ट से कभी नही कहता कि मुझे यह चाहिए, मुझे वो चाहिए, क्योंकि जिस प्रकार एक नवजन्मे बालक (जिसने अभी तक बोलना न सीखा हो) के माता-पिता को मालूम होता है कि उसे किस चीज की आवश्यकता है और किस चीज की नही,उसी प्रकार ही भक्त के लिए ईश्वर होते है। भक्त जानता है कि उसके प्रभु उसका ख्याल अपने आप रख लेंगे उसे कुछ भी कहने की जरूरत नही।
लेकिन ऐसे सच्चे भक्त को सिर्फ एक ही लालसा होती है कि उसके ईश्वर उसे एक बार उसकी आँखों को भी दर्शन करा दे। मन मे भले ही हज़ारो बार अपने भगवान के दर्शन किये हो, लेकिन एक बार सिर्फ शरीर की आंखों को भी दर्शन करा दे।
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ऐसी भक्ति जितनी गहरी होती जाती है ,उतना ही अहम भाव भी खत्म होता जाता है। जैसे अन्य व्यक्ति तो कह देते है,मैं ऐसे करता हूँ, मैं वैसे करता हूँ…… मुझे यह यह आता है….. वगैरह वगैरह। लेकिन सच्चा भक्त इन बातों से दूर होता जाता है क्योंकि वह तो भगवान के करीब है और जो भगवान के करीब होते है उनके विकार भाव नही रहते ।
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ऐसे भक्त तो किसी के साथ भी वैर-विरोध नही रखते। अगर कोई इन्हें कुछ कह भी दे तो भी बात हंसकर ताल देते है या फिर अनसुनी कर जाते है। ऐसे व्यक्ति तो सभी से सिर्फ प्रेम करना जानते है क्योंकि सभी जीव परमपिता परमात्मा की ही सन्तान है, यह बात एक भक्त भली भांति जानता है और कभी भी जीव-हिंसा नही करता और न ही कुछ भी तामसिक भोज्य पदार्थ ग्रहण करता है।
भक्ति में ऐसी शक्ति है जो अंधे को भी देखने की क्षमता दे देती है। जिससे लंगड़ा व्यक्ति भी दौड़ने लग जाता है और गूंगा भी बोलने लगे जाता है। यानी कि जो कुछ भी इस संसार मे संभव नही वह भी संभव हो जाता है।
क्यों……, यह बात हजम नही हुई कि लंगड़ा भी दौड़ने लग जाये? लेकिन मैंने आंखों से ऐसा देखा हुआ है कि लंगड़ा व्यक्ति भी दौड़ता है। लंगड़ा व्यक्ति भी जब दौड़ने लगा…. इसपर भी जल्द ही आप एक पोस्ट पढेंगे ।
भक्ति से ऐसी-ऐसी शक्तियां आ जाती है जो कोई विज्ञान के नजरिये से सोच भी नही सकता। हमारे भारत का तो इतिहास भी गवाह है कि भक्ति में सबसे अधिक बल है। ईश्वर स्वयं भी भक्त की रक्षा करने आ जाते है, ऐसी बाते तो कोई भौतिकतावादी सोच भी नही सकता कि ऐसा असल मे भी होता होगा।
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दोस्तों, कुछ-कुछ ऐसे ही होते है सच्चे भक्त…. उनके बारे में लिखने का प्रयास तो मैंने किया लेकिन जो उनकी भक्ति होती है ,जो उनकी श्रद्धा और उनका विश्वास होता है…. वह तो वही जाने जो ऐसा होता है क्योंकि अगर हम जानते होते तो इस दुनियादारी में ही लीन न रहते। हो सकता है शायद आप मे से भी कोई ऐसा हो, जिसे ईश्वर का सानिध्य प्राप्त हो। या फिर कोई अपने प्रभु के निकट आना चाहता हो तो उसे भी सिर्फ ईश्वर पर भरोसा रखने की जरूरत है और फिर भगवान आपका भरोसा कभी भी टूटने नही देंगे।
दोस्तों आपको यह पोस्ट सच्चा भक्त कौन और कैसा होता है? (Who Is True Devotee In Hindi) कैसी लगी हमे comment करके जरूर बताएं और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करना न भूले।
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