जीवन पर लिखी गई रहीम के कुछ दोहे 

दुःख मे  सुमिरन सब करे , सुख मे करे न कोय | जो सुख मे सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ||

अर्थ: दुःख मे भगवान को याद करते है , सुख मे कोई नहीं करता, अगर सुख मे भी याद करते तो दुःख होता तो नहीं |

रहिमन देखि बड़ेन  को,लघु  न दीजिए डारि , जहा काम आवे सुई , कहा करे तरवारि ||

अर्थ : बड़ो को देखकर छोटो को भगा नहीं देना चाहिए |क्योकि जहा छोटे का काम होता है वहा बड़ा कुछ नहीं कर सकता |जैसे कि  सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती |

बड़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर , पंथी को छाया  नहीं ,फल लागे अति दूर |

अर्थ : बड़े होने का यह मतलब नहीं है की उसमे किसी का भला हो | जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता है लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल  का काम है |

समय पाय फल होत है , समय पाझरी जात | सदा रहे नहि एक सी, का रहीम पछितात |

अर्थ: रहीम कहते है की उपयुक्त समय आने पर वृक्ष मे फल लगता है  झड़ने का समय आने पर वह झड़  जाता है |सदा किसी की अवस्था एक जैसे नहीं रहती , इसलिए  दुःख के समय पछताना  व्यर्थ है |

निज कर क्रिया रहिम कहि सीधी भावी के हाथ  पांसे अपने हाथ मे दांव न अपने हाथ |

अर्थ : रहीम करते है कि अपने हाथ मे तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़  खेलते समय पांसे तो अपने हाथ मे रहते है पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ मे नहीं होता |

रूठे सुजन मनाइए , जो रूठे सौ बार , रहिमन फिरि फिरि पाइए , टूटे मुक्ता हार ||

अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे , तो भी रूठे प्रिय को मनाना चाहिए , क्योकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे मे पिरो लेना चाहिए |