दीपावली के दिनों का पांचवा और आखरी दिन यानी कि दीपावली से दूसरा दिन
भैया दूज के रूप में मनाया जाता है। जैसे हर एक त्यौहार को मनाने के पीछे कोई-न-कोई कथा जरूर होती है वैसे ही भैया दूज मनाने के लिए भी कथा है। आईये हम जानते है कि भैया दूज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है –
भाई दूज क्यों मनाई जाती है
यमराज और यमुना दोनों सूर्य और संज्ञा की संतानें थे। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पाती थी इसलिए वह सूर्य को छोड़कर चली जाती है और दोनों भाई बहन रह जाते है। लेकिन यमराज जिनको सारी दुनिया का काम देखना है उनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती थी और हर समय busy रहते इसलिए अपनी बहन से मिल ही न पाते। लेकिन यमुना अपने भाई को याद करती रहती थी और घर आने को भी कहती रहती। यम सोचते कि उनकी बहन उनसे कितना अधिक प्यार करती है जो उसे घर पर आने को कहती है जबकि अन्य लोग यम से दूर रहना ही पसन्द करते है।
एक दिन यमराज अपनी बहन से मिलने अचानक यमुना के पास आते है और यमुना यम को देखकर बहुत प्रसन्न होती है। वह अपने भाई को रुकने के लिए कहती है और उनके लिए भोजन आदि बनाती है तथा बहुत ही प्यार से अपने भाई को खिलाती है।
यमुना के आतिथ्य से यमराज बहुत प्रसन्न होते है और वह यमुना को कोई भी वरदान मांगने के लिए कहते है। यमुना अपने भाई यम से कहती है कि “आपको बहुत काम होते है ,मैं जानती हूँ लेकिन आप मुझे यह वरदान दो कि आप हर साल इसी दिन मुझसे मिलने जरूर आया करोगे और जो भी भाई इसदिन अपनी बहन से मिलेगा उसे आपका भय न रहे।” यमराज अपनी बहन की बात स्वीकार कर लेते है और हर साल इसी दिन यानी कि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को उससे मिलने का वादा करते है।
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तब से लेकर आज तक यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम के रूप में मनाया जाता है।
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भैया दूज वाले दिन भाई अपनी बहनों से मिलने उनके घर जाते है तथा वही से कुछ खाकर भी आते है। इसदिन चावल खाने की खास मान्यता है। बहने अपने भाई की लंबी उम्र की प्राथना भी करती है।
अन्य किन नामों से जाना जाता है
भैया दूज को अलग-अलग जगह पर अलग-अलग नामों से भी मनाया जाता है। इस त्यौहार को भाई फोटा, भाई बीज, भाई बिज नामों से भी मनाया जाता है।
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भैया दूज को मनाने की मान्यता
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भैया दूज क्यों मनाया जाता है