वैसे तो हिन्दू धर्म और जैन धर्म के त्यौहार एक साथ मिलजुलकर ही मनाये
जाते है। बहुत से लोगों को यही लगता है कि जैन भी उसी धारणा को लेकर ही
दीपावली मनाते है ,जिस धारण को लेकर हिन्दू मनाते है। लेकिन जैसे हिन्दू
धर्म में भी दिवाली को मनाने की अलग-अलग धारणाये है ,वैसे ही जैन धर्म में
दीपावली की अलग ही मान्यता है और मनाने का तरीका भी दूसरों से थोड़ा अलग ही
है क्योंकि जैन धर्म का सार
‘अहिंसा परमो धर्म:’ है अर्थात अहिंसा
ही परम धर्म है। इसके बारे में आगे आप जानकारी पढ़ेंगे। लेकिन उससे पहले जान
लेते है कि जैन धर्म में दिवाली किस मान्यता के अनुरूप मनाई जाती है।
जानिये दीपावली तथा दीपावली के दिनों के बारे में और फिर से सोचिये क्या आप सब कुछ जानते थे
जैन धर्म में दीपावली क्यों मनाई जाती है (Why Deepawali Is Celebrated In Jain Religion In Hindi)
इस अवसप्रिणी काल के चौबीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी जी (Bhagwan Mahaveer Swami Ji) अपने सभी घाती कर्मों (Karma) को नष्ट करके मोक्ष (Moksh) को प्राप्त हुए थे।
क्योंकि
भगवान महावीर स्वामी जी केवली थे इसलिए उनको पहले से मालुम था की अब उनका
इस संसार को छोड़ने का समय आ गया है इसलिए उन्होंने अपने शिष्य गौतम स्वामी जी (Gautam Swami Ji) को (जिनकी महावीर के प्रति अटूट निष्ठा थी और अपने इसी प्रेम और मोह के कारण उनको केवल ज्ञान (Keval Gyan) की
प्राप्ति नहीं हो पा रही थी) किसी कार्य को पूर्ण करने हेतु अपने से दूर
भेज दिया। लेकिन जब कार्य को पूर्ण कर गौतम जी वापिस महावीर जी के पास लौट
रहे थे तब उन्हें समाचार मिलता है कि श्रमण भगवान अपना देह त्याग कर मोक्ष को प्राप्त कर गए है।
यह
जानकार गौतम स्वामी जी को बहुत दुःख होता है ,वह सोचते है कि “भगवन ने
उनके साथ अच्छा नहीं किया ,उन्होंने जानबूझकर अपने से मुझे दूर कर दिया।
आखिर मुझे अपने अंतिम दर्शन भी क्यों नहीं करने दिए ? मैंने उन्हें रोक
थोड़े ही न लेना था ?”
ऐसे
ही गौतम स्वामी जी सोचते ही रहते है ,उनके मन और उनके दिमाग में विचार आने
उत्पन्न हो जाते है और फिर उनका मोह टूटता है और उन्हें भी केवल ज्ञान ,केवल दर्शन की प्राप्ति हो जाती है।
वो रात कार्तिक मास की अमावस्या की ही रात थी। घोर अँधेरा छाया हुआ था लेकिन महावीर जी के निर्वाण उत्सव के कारण उसदिन लोगों ने दीये जलाकर अमावस की काली रात को भी रोशनदार कर दिया था।
इस दिन भगवान महावीर स्वामी जी को निर्वाण प्राप्त हुआ था और गौतम स्वामी जी को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी।
इसी ख़ुशी के कारण जैन धर्म में दिवाली मनाई जाती है।
जैन धर्म के लोग पटाखे क्यों नहीं चलाते ?
शायद आप में कुछ लोग जानते हो या कुछ को न भी पता हो कि जैन धर्म के लोग पटाखे (patakhe, crackles) नहीं चलाते। अधिकतर लोग पटाखे नहीं चलाते लेकिन आधुनिकता के इस युग (Modern Era) में कुछ परिवार इस बात का परहेज नहीं भी करते।
लेकिन बात आती है कि जो लोग पटाखे नहीं चलाते वह क्यों नहीं चलाते ,आखिर इसमें परहेज की क्या बात है ?
जैसा की ऊपर लिखा था की जैन धर्म का सार ही अहिंसा परमो धर्म है।
जैन जान-बूझकर किसी भी जीव की हिंसा करने से बचते है। जीवन यापन के लिए जो
चीजे/बातें जरूरी है उतनी ही इस्तेमाल करेंगे अन्यथा जिस चीज के बिना रहा
जा सकता है उसका त्याग करेंगे। पटाखे चलाने से अति-सूक्षम जीव और सूक्षम
जीवों की हिंसा होती है इसके इलावा जो जानवर और इंसान भी है उनकी भी सेहत
पर बुरा असर पड़ता है ,इसलिए जैन धर्म के लोग पटाखों से परहेज रखते है।
अगर पटाखे नहीं चलाते तो करते क्या है ?
यह
त्यौहार चारों धर्मों में मिलजुलकर प्रेम के साथ मनाया जाता है। जैसे की
बाकी के लोग दीये जलाकर अपना घर रोशन करते है वैसे ही दीये जलाये जाते है।
इसके इलावा दीये सिर्फ बाहर के ही नहीं बल्कि मन के अंदर भी दीये जलाये जाते है। अपने द्वारा किये गए पापों को स्मरण करके उसके लिए पश्चाताप के भाव रखते है और आगे से द्वारा ऐसा न करने का निर्णय लेते है।
शब्दों के अर्थ (Meaning Of Words)
Meaning Of निर्वाण = मोक्ष की प्राप्ति यानि की जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो गया हो।
Meaning Of केवल ज्ञान = सब कुछ जानने वाला ,जिसे भूत ,भविष्य और वर्तमान का सारा ज्ञान हो जैसे की उन्होंने अपनी आखों से देखा हो।
तो दोस्तों आपको यह जानकारी जैन धर्म में दिवाली क्यों मनाई जाती है कैसी
लगी, comment करके जरूर बताये। अगर आपको इसमें से किसी भी शब्द को समझने
में कोई भी परेशानी या confusion हो तो आप बेझिझक comment करके पूछ सकते
है। अगर आपको पसन्द आयी तो यह जानकारी अपने दोस्तों के साथ share करना न
भूले।
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Bahut acchi jankari......aapka dhanyavad!