सिख धर्म में जो प्रचलित मान्यता है, यहाँ आप उसके बारे में पढेंगे ।
जानिये जैन धर्म में दिवाली किस मान्यता को लेकर मनाई जाती है
सिख धर्म में छठे गुरु ,गुरु हरगोबिन्द साहिब जी को उस समय के मुग़ल शहंशाह जहांगीर ने ग्वालियर के किले में गुरु जी को बंदी बना लिया । क्यूंकि गुरु जी तो गुरु थे ,वह जेल में भी दोनों समय कीर्तन करने लगे ।
गुरु जी जेल में थे और ऐसे समय में उनके श्रद्धालु कैसे चैन से बैठ जाते । गुरु जी को छुड़वाने के लिए सिखों का एक जत्था श्री आकाल तख़्त साहिब जी से अरदास करके बाबा बुढा जी की अगुवाई में ग्वालियर के किले के लिए रवाना हो गया। जब यह ग्वालियर के किले में पहुंचे तो इन्हें गुरु जी से मिलने भी न दिया गया जिसके फलस्वरूप सिखों में और भी ज्यादा रोष हो गया।
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इसके पश्चात साई मिया मीर जी ने जहांगीर से गुरु जी को छुड़वाने के लिए बात की ,जिसमे वह सफल भी रहे।
लेकिन गुरु जी ने अकेले किले से रिहाई के लिए मना कर दिया क्योंकि गुरु जी वहां क़ैद अन्य राजाओं को भी जेल के बंधन से मुक्ति दिलवाना चाहते थे।जहांगीर ने गुरु जी की बात मान ली लेकिन उसने कहा कि वह सिर्फ उतने राजाओं को ही छुड़वा सकते है जितने कि उन्हें पकड़े सके । ऐसा जहांगीर ने कैद से रिहा होने वालो की संख्या कम करने के लिए कहा था। गुरु जी भी मान गए। गुरु जी ने अपने लिए एक खास तरह के वस्त्र तैयार कराये जिन्हें सभी राजा पकड़ सकते थे। रिहाई के समय कैद में रह रहे 52 के 52 राजा ही गुरु जी को पकड़ कर रिहा हो गए।
जिस दिन गुरु जी रिहा हुए थे वह कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था यानी की दिवाली का दिन। गुरु जी रिहा होकर अमृतसर पहुंचे। गुरु जी के वापिस आने की ख़ुशी में सभी लोगों ने अपने घर में दीये जलाये तथा श्री हरमंदिर साहिब में भी लोगों ने ख़ुशी से दीये जलाये। इसी दिन की ख़ुशी में आज भी श्री हरमंदिर साहिब में दिवाली का त्यौहार बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
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इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
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