परिचय:-
हमारी भारत भूमि योगियों एवं साधु-संतों की भूमि मानी जाती है। आदि काल से इस पावन-भू पर अनेक सिद्ध आत्माओं ने जन्म लिया एवं समाज के कल्याण और मानवता के उद्घार हेतु अपना सर्वस्व समर्पित करके सम्पूर्ण मानवजाति के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए। ऐसे ही श्रेष्ठ संतों में से एक महायोगी, सर्वसिद्ध साधक, गुरु गोरखनाथ जी हैं। इन्हें साक्षात भगवान शिव का अवतार माना जाता है जिन्होंने अपनी सिद्धियों एवं दैवीय गुणों से मानव कल्याण एवं धर्म की रक्षा हेतु जन्म लिया था। गोरखनाथ जी को “गोरक्षनाथ” के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके नाम का शाब्दिक अर्थ “गाय को पालनेवाला या गाय की रक्षा करने वाला” है। महायोगी गोरखनाथ ब्रह्मचर्य साधक, आचार प्रवण एवं योगनिष्ठ जीवन के महानायक है।
जन्मकाल एवं जन्म स्थली:-
महायोगी गोरखनाथ जी के जन्म के काल के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद है। 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के मध्य उनका जन्म काल माना जाता है। कुछ विद्वानों का उनके जन्म को लेकर ऐसा मानना है कि वे पहली शताब्दी के हैं क्योंकि राजा भ्रतृहरि जो उनके शिष्य थे वे राजा विक्रमादित्य के भाई थे जिन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत की थी। अत: इसी कारणवश गोरखनाथ जी को उनके समकालीन माना जाता है। सनातन पंचाग के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गोरखनाथ चारों युगों में उपस्थित थे अर्थात् उन्होंने चारों युगों में जन्म लिया था।
उनके जन्म स्थली को लेकर भी विद्वानों में एकमतता नहीं पायी जाती है। कुछ विद्वान गोदावरी नदी के तट पर उनकी जन्म स्थली बताते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि सतयुग में उनका जन्म पंजाब (पाकिस्तान) में, त्रेतायुग में गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में, द्वापरयुग में द्वारका (गुजरात), एवं कलयुग में काठियावाड़ में उनका जन्म हुआ था।अत: उनके जन्म स्थली एवं काल के विषय में कोई ठोस साक्ष्य एवं जानकारी उपलब्ध नहीं है।
उनके जन्म से जुड़ी रोचक घटना :-
गुरु गोरखनाथ के जन्म के बारे में यह मान्यता है कि उन्होंने मातृ गर्भ से जन्म नहीं लिया अपितु वे इस धरा पर गुरु की कृपा से अवतरित हुए हैं। नाथ संप्रदाय के अनुयायी मत्स्येन्द्रनाथ जो प्रभु शिव की उपासना एवं भिक्षाटन करके जीवन यापन करते थे, भिक्षाटन के दौरान एक बार एक गाँव में पहुंचे जहां एक घर के द्वार पर भिक्षा के लिए आवाह्न किया तो एक स्त्री बाहर आकर उन्हें भिक्षा देती है परन्तु वह कुछ चिंतित प्रतीत होती है। योगी राज के पुछने पर वे अपने वर्षों से निसंतान होने की पीड़ा को उनके समक्ष व्यक्त करती हैं। उस समय योगी मत्स्येन्द्रनाथ जी उन्हें एक चुटकी भभूत देते हुए यह कहते हैं कि इसे ग्रहण करने के पश्चात् उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी।
12 वर्षों के पश्चात् वे पुनः उसी गाँव से भिक्षा ग्रहण करने हेतु आते हैं और उस स्त्री के द्वार पर पहुँचते हैं तो उनसे उनके पुत्र के विषय में पुछते है जो अब 12 वर्ष का हो चुका होगा, परंतु वह स्त्री बड़े ही दु:ख और ग्लानी के साथ उन्हें यह बताती है कि एक राह-चलते योगी द्वारा दिए गए भभूत को लेने पर उसके आस-पड़ोस की महिलाएं उसे भयभीत कर देती है एवं उसकी खिल्ली भी उड़ाती है जिस कारण वह उस भभूत को खाने के बजाय गोबर के एक गड्ढे में फेंक देती है। इस बात से अवगत होते ही योगी महाराज उस गड्ढे के समीप जाकर अलख बजाते है और तत्क्षण ही एक 12 वर्ष का तेजवान बालक वहाँ प्रकट हो जाता है। ये बालक ही महायोगी गोरखनाथ जी थे। इसके पश्चात गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी उसी समय उन्हें अपने साथ लेकर चले जाते हैं।
यह प्रसंग मराठी भाषी ग्रंथ “नवनाथ सार” में उल्लेखित है जिसके विवरणानुसार यह घटना रायबरेली जिले के जायस नामक कस्बे में घटित हुई थी।
नाथ संप्रदाय :-
नाथ सम्प्रदाय के स्थापक भगवान शिव को माना जाता है। इसे सिद्ध संप्रदाय का ही विकसित रूप कहा जाता है। गोरखनाथ एवं उनके गुरु मत्स्येन्द्रनाथ नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। इस संप्रदाय के सभी अनुयायी शैव थे अर्थात वे शिवोपासना किया करते थे।
बौद्धों के वज्रयान-सहजयान शाखा से नाथ सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई है।
सामाजिक एवं धार्मिक सुधार:-
गोरखनाथ जी के समय में समाज में बौद्ध धर्म एवं शैव धर्म प्रचलन में था। हिन्दू धर्म तंत्र-मंत्र के प्रभाव से निम्नतम स्तर पर पहुँच गया था। नाथ सम्प्रदाय बिखरा हुआ था। बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा में अश्लीलता एवं उनके मठों में व्यभिचार फैल चुका था। समाज की ऐसी दुर्व्यवस्था एवं धर्म की हानि के काल में उन्होंने अपने तपोबल एवं योगबल से समाज को नई दिशा प्रदान की। लोगों को धर्म का भान कराया। उन्होंने नाथ सम्प्रदाय को भी एकीकृत किया। गुरु शंकराचार्य जी के पश्चात् गुरु गोरखनाथ जी एक महान एवं सुप्रसिद्ध महायोगी के रूप में उभरे जिन्होंने एक नए धर्म की नींव रखी।
गोरखनाथ जी की गुरु भक्ति:-
गोरखनाथ जी अपने गुरु का बहुत आदर एवं सम्मान करते थे। उनकी गुरु भक्ति असीम एवं अद्भुत थी। अपने गुरु के साथ रहकर ही उन्होंने शिक्षा-दीक्षा, तंत्र-मंत्र तथा योग ज्ञान इत्यादि की सीख ली थी।
एक छोटी सी कथा प्रचलित है जो उनकी अद्भुत गुरु भक्ति को दृष्टव्य करती है। इस कथा के वर्णनानुसार, एक समय की बात है जब उनके गुरु ने वड़ा खाने की इच्छा प्रकट की तो वे गुरु की इच्छा पूर्ति के लिए भिक्षाटन करने निकले तथा उन्होंने एक महिला से वड़ा बनाकर देने का अनुरोध किया परंतु उस महिला ने उन्हें खरी-खोटी सुना दी। इसके बाद भी उन्होंने उस स्त्री से विनती की एवं उसके बदले कुछ भी मांगने को कहा, जिससे उस स्त्री ने उनसे उनकी आंखे ही मांग ली। गोरखनाथ जी ने बिना किसी संकोच अपने गुरु की इच्छा पूर्ति हेतु उस स्त्री के समक्ष अपनी आंखे निकाल कर प्रस्तुत कर दी और उससे अपने गुरु के लिए वड़ा लेकर अपने गुरु को ग्रहण करने हेतु समर्पित कर दिया। उनके गुरु उनसे बहुत प्रसन्न हुए तथा उनके नेत्र उन्हें वापस प्रदान कर दिए।
गोरखनाथ जी की गुरु भक्ति सभी को अपने गुरु का सम्मान करने तथा गुरु के आज्ञा पालन की शिक्षा देती है।
गोरखनाथ जी की महिमा:-
गोरखनाथ जी ने समाज और मानव जाति के कल्याण हेतु बहुत सी यात्राएं की तथा अपने ज्ञान से लोगो का मार्गदर्शन किया। अपने गुरु के कहने पर उन्होंने न केवल भारत में बल्कि इसके बाहर भी कई स्थानों पर तप साधना की।
नेपाल में एक गुफा पाई गई है जहां कहा जाता है कि वे साधना किया करते थे। इस गुफा को गोरखनाथ के सिद्ध गुफा के नाम से जाना जाता है। यहां प्रत्येक वर्ष एक उत्सव मनाया जाता है जिसे “रोट उत्सव” के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान भारत के उत्तरप्रदेश में भी उनके नाम से एक स्थान का नाम गोरखपुर रखा गया है। दक्षिण पश्चिम तथा दक्षिण पूर्व में भी उनकी शिक्षाएं एवम् उनके चमत्कार की महिमा प्रचलित है।
नेपाल में उनके नाम पर “गोरखा” नामक एक राज्य और जिला स्थित है जिसके निवासी गोरखा जनजाति कहलाते है।
कई स्थानों पर उनके भव्य मंदिर स्थापित किए गए है जिनमे श्रद्धालु अटूट भक्ति और विश्वास के साथ पूजा अर्चना करते है।
गोरखनाथ जी के शिष्य:-
उनके दो शिष्यों को प्रधानतम माना जाता है :
१} गहिनीनाथ २} चरपटीनाथ
इनके अलावा जालंधर नाथ, चौरंगी नाथ, गोपीचंद, निवृतिनाथ, इत्यादि का उल्लेख मिलता है।
नवनाथ परंपरा तथा सिद्ध परंपरा :-
तिब्बती और बौद्ध परंपराओं में 84 सिद्धों और 9 नाथों का वर्णन पाया जाता है जिनमें गुरु गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ का भी नाम आता है।
9 नाथों के नामों इस प्रकार बताए गए हैं
मछेंद्रनाथ
भ्रतृनाथ
कनीफनाथ
गोरखा नाथ
चरपटिनाथ
नागेशनाथ
जलंधरनाथ
गहनीनाथ
रेवानाथ
गोरखनाथ की रचनाएं:–
गोरखनाथ जी को हिंदी साहित्य का प्रारंभकर्ता माना जाता है। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएं प्रस्तुत की जिनमें गोरक्ष कल्प, गोरक्ष गीत, योगचिंतामनी इत्यादि का नाम सम्मिलित है।
निष्कर्ष:–
महायोगी गुरु गोरखनाथ जी दैवीय शक्तियों से सज्जित, तप और योग बल से लौकित महापुरुष तथा संत थे जिन्होंने इस भारत भूमि पर धर्मर्रक्षार्थ और मानव कल्याण के लिए अवतार लिया था। उन्होंने दक्षिण से लेकर हिमालय तक यात्राएं की तथा अपनी शिक्षाओं का प्रचार प्रसार किया।
उनके शिक्षा तथा मार्गदर्शन के फलस्वरूप समाज से स्त्री-भोग और व्यभिचार की भावना में कमी आई, स्त्री सम्मान जागृत हुआ, शैव धर्म की महिमा का प्रचलन बढ़ा। उन्होंने योगमार्ग से संसार को परिचित कराया। हठ मार्ग और सिद्ध सिद्धांत पद्धति का प्रचार प्रसार किया।
इसके अलावा उन्होंने 36 तत्वों का वर्णन किया है जिसमें परम शिव, शक्ति, ईश्वर, माया, शुद्ध विद्या इत्यादि का उल्लेख मिलता है। इन्होंने “पिंड ब्राह्मणवाद” की धारणा से भी अवगत कराया जिसके अनुसार यह कहा जाता है कि जो ब्रह्मांड में विद्यमान है वही हमारे शरीर में भी उपस्थित है। उन्होंने जीवन मुक्ति को ही आदर्श स्थिति बताया है। उन्होंने संयम और ब्रह्मचर्य के पालन पर जोर दिया है तथा जीवन में गुरु की महत्ता का महिमामंडन किया है।
सिद्धयोगी गुरु गोरखनाथ जो स्वयं भगवान शिव के अवतार थे वे चारों युगों में अवतरित होकर अपनी शिक्षाओं से मानव का कल्याण करते रहे थे।
वे अनादि एवम अनंत है। उनके मृत्यु का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि वे आज भी सूक्ष्म कणों में विद्यमान हैं और अपने भक्तों का मार्गदर्शन करते है और उनके लिए प्रेरणा स्त्रोत बने हुए है। उनकी जीवनी और उनके उपदेश सभी को मुक्ति का मार्ग प्रसस्त करते है तथा अपने मानव जीवन को उचित कर्मों और धर्म के पालन से सार्थक बनाने का ज्ञान प्रदान करते है।
धन्यवाद!