परिचय:-
575 ई० में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। विशाल गुप्त साम्राज्य खंडित होने लगा था तथा कई छोटे छोटे नए स्वतंत्र राजवंश उदित होने लगे थे। उस राजनीतिक अस्थिरता के माहौल में स्वयं को स्वतंत्र घोषित करने वाले राजवंशों में से एक था थानेश्वर का पुष्भुति राजवंश जिसे “वर्धन वंश” के नाम से भी जाना जाता है।
6ठी और 7वी शताब्दी में वर्धन वंश उत्तरभारत का सबसे शक्तिशाली राजवंश बन गया था। वर्धन वंश के सबसे प्रसिद्ध और महान राजा थे महाराज हर्षवर्धन जिन्होंने गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत को पुनः संगठित करने का कार्य किया तथा एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने अपने शासन काल के दौरान उत्तर भारत में राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया जो सफल रहा।
प्रारंभिक जीवन :-
हर्षवर्धन के पिता का नाम प्रभाकर वर्धन तथा माता का नाम यशोमती था। प्रभाकरवर्धन एक कुशल राजा थे जिन्होंने वर्धन वंश को शक्तिशाली बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा इस वंश की गरिमा को उच्चतम सीमा तक बढ़ाया। हर्षवर्धन के बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन तथा छोटी बहन का नाम राज्यश्री था।हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री का विवाह मौखारिस वंश के शासक ग्रहवर्मन से हुआ था।
हर्षवर्धन का राज्यारोहण:-
प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद, उनके बड़े बेटे राज्यवर्धन को थानेश्वर का शासक बनाया जाता है परंतु तभी उन्हें यह खबर मिलती है कि मालवा के शासक देवगुप्त ने उनके बहन के पति महाराज ग्रहवर्मन की हत्या कर दी है तथा उसे जेल में बंदी बना रखा है। यह समाचार मिलते ही राज्यवर्धन अपनी बहन की सहायता हेतु जाते है परंतु गौड़ प्रदेश के शासक शशांक, जो मालवा शासक देवगुप्त से मिला हुआ था, ने धोखे से उनकी हत्या कर दी।
पहले पिता, उसके बाद बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात हर्षवर्धन को थानेश्वर् का राजपाट अपने हाथों में लेना पड़ा। जिन परिस्थितियों में वे राजा बने, उनके समक्ष कई समस्याएं थी जिनका समाधान करना अतिआवशक था।
राजा बनने के बाद उनके सामने पहली चुनौती थी अपनी बहन को मालवा के शासक देवगुप्त से बचाना तथा दूसरी चुनौती अपने बड़े भाई की हत्या का बदला गौड़ शासक शशांक से लेना। महाराज हर्षवर्धन एक कुशल शासक सिद्ध हुए तथा उन्होंने सारी विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की।
हर्षवर्धन की राजनीतिक उपलब्धियां :-
1.राज्यश्री की रक्षा तथा कन्नौज पर अधिकार :-
राजा बनाने के बाद सबसे पहले हर्षवर्धन अपनी बहन की रक्षा के लिए प्रस्थान करता है पर उसे यह समाचार मिलता है की उसकी बहन जेल से भाग कर विंध्याचल पर्वत की ओर चली गई है तथा हर्षवर्धन तुरंत अपनी बहन की खोज में निकल पड़ते है। जब वह अपनी बहन तक पहुंचे उस समय वह आग के खुद कर अपनी जान देने वाली थी परंतु उन्होंने समय रहते अपनी बहन को बचा लिया और कन्नौज लौट आए। जब तक वह कन्नौज पहुंचे तब तक देवगुप्त वहां से भाग चुका था। इसीलिए कन्नौज के मंत्रियों के परामर्श और आग्रह से हर्षवर्धन ने कन्नौज का शासन अपने अधिकार में लिया।
2.शशांक से प्रतिशोध :
हर्षवर्धन कामरूप शासक भास्कर वर्मन की सहायता से गौड़ प्रदेश के राजा शशांक पर हमला कर देते है तथा अपने बड़े भाई की मृत्यु का प्रतिशोध ले लेते है। प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार, जब तक शशांक जीवित था हर्षवर्धन उसे पूरी तरह परास्त नहीं कर पाए थे, अतः इतिहासकारों के कथानानुसार शशांक की मृत्यु के बाद ही हर्ष अपने लक्ष्य में पूरी तरह सफल हो पाए और बंगाल को जीता जिसके बाद पूर्वी बंगाल पर कामरूप शासक ने राज किया तथा पश्चिमी बंगाल को हर्ष ने अपने राज्य में मिला लिया।
3.वल्लभी युद्ध :-
राज्य विस्तार के क्रम में, पश्चिम की ओर वल्लभी (गुजरात) के शासक धुवसेन द्वितीय या ध्रुवभट्ट से हर्षवर्धन का सामना हुआ। हर्षवर्धन से उसे हार का सामना करना पड़ा परंतु उसने अपने आस-पास के राज्यों की सहायता से पुनः अपनी स्थिति मजबूत कर ली। फिर भी, दोनो राजवंशों ने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी शत्रुता को समाप्त कर लिया। हर्षवर्धन ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुवसेन से कर दिया था।
4.मालवा विजय :-
हर्षवर्धन ने मालवा के शासक को परास्त कर मालवा को अपने राज्य में मिला लिया था।
- अन्य राज्यों पर अधिकार :-
612 ईसवी तक हर्षवर्धन ने पंजाब के पंच सिंध पर अपना संपूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया था। बंगाल के शासक शशांक की मृत्यु के बाद ओडिशा, मगध, वर्धा और कोंगोंडा
(गंजाम) को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। - नेपाल के साथ संबंध :–
हर्षवर्धन ने नेपाल के शासक को भी पराजित किया था तथा उससे कई उपहार भी प्राप्त किए थे। - उत्तर भारत का राजनैतिक संगठन :-
हर्षवर्धन ने उत्तर भारत के छोटे-छोटे राज्यों को जीत कर उन्हे अपने राज्य में शामिल किया तथा एक राजनीतिक एकता प्रदान करने का प्रयास किया। उन राज्यों को पराजित करके उन्होंने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की जिस कारण उन्होंने “उत्तरापथपथेशवर” की उपाधि भी धारण की थी।
8.पुल्केसिन द्वितीय के साथ युद्ध :–
हर्षवर्धन ने दक्षिण की ओर नर्मदा नदी के पार भी अपने राज्य के विस्तार का प्रयास किया जिस दौरान उसका सामना पुल्केशीन द्वितीय से हुआ। नर्मदा नदी का युद्ध हर्षवर्धन और पुल्केशीन द्वितीय के बीच 634 ईसवी में हुआ जिसमें हर्ष को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध की जानकारी हमे “एहोल अभिलेख” से मिलती है।
हर्षवर्धन की सांस्कृतिक उपलब्धियां:-
1.बौद्ध धर्म की ओर झुकाव :-
हर्षवर्धन एक शिव भक्त था परंतु बौद्ध धर्म के संपर्क में आने के बाद उनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर बढ़ा और उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
उन्होंने कई बौद्ध स्तूप बनवाए, जानवरों की बलि पर रोक लगाया तथा उन्होंने “बुद्ध के दांतों” के अवशेष कश्मीर के शासक से प्राप्त करके एक स्तूप का निर्माण भी करवाया।
२. 643 ईसवी में कन्नौज में धार्मिक सभा का आयोजन :–
हर्षवर्धन ने कन्नौज में एक बहुत ही विशाल और भव्य बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमे चीनी यात्री ह्वेनसांग भी सम्मिलित हुए। उस सभा में हजारों बौद्ध संत, ब्राह्मण पुजारी तथा जैन संत सम्मिलित हुए थे। इस समारोह में राजा के कद की ऊंचाई के “स्वर्ण बुद्ध मूर्ति” का उद्घाटन किया गया था। यह सम्मेलन कुल 23 दिनों तक चला।
- प्रयाग बौद्ध सम्मेलन :–
हर्षवर्धन प्रयाग में एक बौद्ध सम्मेलन का आयोजन करते थे जिसे “महा मोक्ष परिषद” के नाम से जाना जाता था और यह हर पांच वर्ष के अंतराल में आयोजित किया जाता था। यह सभा 75 दिनों तक चलती थी। इस सभा में हर्षवर्धन गरीबों को बहुत अधिक मात्रा में दान दिया करते थे।
4.धार्मिक संतुलन बनाए रखना :-
हर्षवर्धन ने सभी धर्मों के बीच एक संतुलन की स्थिति बनाए रखा था। वह सभी धर्मों का आदर करते थे। बौद्ध धर्म का पालन करने के साथ-साथ वे हिंदू धर्म और जैन धर्म के लोगो का भी सम्मान करते थे।
शिक्षा और साहित्य में योगदान :-
हर्षवर्धन स्वयं एक विद्वान थे तथा उन्होंने तीन नाटक लिखे थे- नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका। उनके समय में संस्कृति भाषा प्रचलन में थी और काफी प्रसिद्ध थी। उन्होंने दिवाकर और जयसेन जैसे विद्वानों को प्रश्रय भी प्रदान किया था। हर्षवर्धन ने नालंदा विश्वविद्यालय को संरक्षण प्रदान किया और वहां की शिक्षा-दीक्षा के लिए अनुदान भी दिया करते थे। उन्होंनेअपने शासन काल में शिक्षा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हर्षवर्धन का प्रशासन :-
हर्षवर्धन ने गुप्त शासकों की ही शासन प्रणाली का अनुसरण किया।
- राज्य की शक्तियां राजा के हाथों में ही केंद्रित थी और राजा सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
•हर्षवर्धन राज्य के विषय में जानकारी रखने के लिए गांव के लोगो से जुड़े रहते थे।
•राजा की सहायता के लिए मंत्री परिषद का गठन किया गया था और उसके अलावा भी कई अधिकारी राजा की सहायता के लिए नियुक्त किए गए थे।
•राज्य को प्रशासन की सुविधा के लिए भुक्ति, विषय और ग्राम में विभाजित किया गया था।
•हर्षवर्धन ने अपने राज्य में कठोर कर लागू नहीं किए थे तथा उसने अपने प्रशासनिक खर्चे भी कम कर दिए थे। राज्य की आय का प्रमुख स्त्रोत भू-कर था जिसे “भाग” कहा जाता था जो भूमि उपज का 1/6 भाग होता था।
•हर्षवर्धन ने एक शक्तिशाली सेना रखी थी जिसमें पैदल सैनिक, अश्व, हाथी और रथ समिल्लित थे।
•हर्षवर्धन के शासनकाल में आजीवन कारावास का दंड, मृत्युदंड, इत्यादि की सजा अपराधियों को दी जाती थी परंतु वे अपने राज्य में उचित कानून व्यवस्था लागू करने में असफल थे। साक्ष्यों के अनुसार, उनके राज्य में एक बार चीनी यात्री ह्वेन सांग भी लुटेरों द्वारा लूट लिए गए थे।
हर्षवर्धन ने अपने शासन काल में अपनी प्रजा को एक अच्छा शासन प्रदान किया परंतु यह गुप्त और मौर्य शासकों की तुलना में कहीं न कहीं कमतर था।
हर्षवर्धन की मृत्यु :-
हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ईसवी में हुई थी। उनका शासनकाल 41वर्षों का रहा। वे एक कुशल शासक और योद्धा थे जिन्होंने एक शक्तिशाली साम्राज्य का संचालन किया।
निष्कर्ष :-
हर्षवर्धन 6ठी शताब्दी में एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरे जिन्होंने महान मौर्य वंश और गुप्त वंश के बाद एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया। वे न केवल एक योग्य शासक थे बल्कि कुशल युद्ध, प्रजापालक राजा, विद्वान और एक धार्मिक व्यक्ति थे। हर्षवर्धन की जीवनी से हमें यह सीख मिलती है की हमे स्वयं को इतना सक्षम बनाना चाहिए ताकि जीवन में जितनी भी विषम परिस्थितियां आए, हम अपने लक्ष्य प्राप्ति में मार्ग पर अडिग रहे और अंततः अपने लक्ष्य को प्राप्त करें। हमे उनसे यह भी सीखने को मिलता है कि भले ही हम किसी भी धर्म या समुदाय के हो हमे अन्य धर्म और समुदाय के लोगो का आदर और सम्मान करना चाहिए। हमे अपने सामर्थ्य के अनुसार हमेशा जरूरतमंद लोगों की सहायता करनी चाहिए।
उनकी जीवनी से हमें यह भी सिख मिलती है की हमे अपना सर्वांगीण विकास करना चाहिए और सभी तरह की कलाओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए।
महाराज हर्षवर्धन की जीवनी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है और पाठको को जीवन जीने की सीख प्रदान करती है |
धन्यवाद !