क्या आप जागृत है ? (Kya Aap Jag Rahe Hai ?)

क्या आप सो रहे है ? या फिर जागृत अवस्था में है। अगर आपको लगता है कि आपकी आँखें खुली है और आप जागृत अवस्था में है तो एक बार सोच ले ,क्या आप सच में ही जाग रहे है ?

वैसे तो जो भी यह Post पढ़ रहा है उनकी शारीरिक आँखें तो खुली है तो हम आगे की बात करते है।


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जागृत अवस्था असल में है क्या ? सिर्फ आँखों का खुला होना ही जागृत अवस्था नहीं होती बल्कि मन से और दिमाग से भी जागना है। आँखों से जागने से क्या होगा जब तक मन ही नहीं जागा। आँखें तो विषय-विकारों में ही डालती है। आँखें तो सिर्फ लोभ पैदा करती है। असल जागृति तो तब होगी जब प्रभु के नाम को हमारा मुख खुलेगा और आँखों के सामने प्रभु के दर्शन होंगे।

प्रभु के दर्शन ? वो भी एक साधारण मनुष्य को !  अधिकतर लोग यही सोचते होंगे कि ईश्वर के दर्शन तो जीते-जी हो ही नहीं सकते। प्रभु कलयुग में किसी को भी अपने दर्शन नहीं देते।

अगर आप भी यही सोचते है तो आप गलत है। पर अभी आपको शयद मैं गलत लगूं ,जो सोचते है कि प्रभु किसी भी इंसान को दर्शन नहीं देते। पर कोई बात नहीं जल्द ही आपका वहम दूर हो जाएगा।

अगर आप भी ईश्वर के दर्शन करना चाहते है और उन्हें अपनी आँखों से देखना चाहते है तो सबसे पहले आप अपने मन से जागिये और उसमे से विकारों को निकाल दीजिये। शायद आपको लगे कि एक साधारण-व्यक्ति विकारों से दूर नहीं हो सकता पर दोस्तों दूर नहीं हो सकते कम-से-कम उनकी सीमा तो तय कर ही सकते हो।

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तो सबसे पहले बात करते है विकारों की सीमा की –

विकारों की सीमा से मेरा मतलब है कि आप कभी भी बे-मतलब का गुस्सा नहीं करेंगे। अगर सच में ही कोई ऐसे कारण है कि कोई आपको बहुत-ही अधिक हानि पहुंचा रहा है तो आपका गुस्सा स्वाभाविक है क्यूंकि आप सभी गृहस्थ है और उनमे कुछ हद तक विकार चाहिए भी। पर अगर आप बे-वजह ही गुस्सा करते रहते है तो वो गलत बात है ,सबसे पहले अपनी यह आदत त्यागिये।

अब लोभ की भी बात कर लेते है। लोभ क्या है – लालच। और लालच क्या है – किसी भी वस्तु या फ़िर धन की कामना। किसी भी चीज का लोभ भी विकार ही है। पर फिर से बात आती है कि आप तो गृहस्थ है और धन की कामना नहीं करेंगे तो गुजारा कैसे होगा ? तो इसके बारे में भी मैं बताता हूँ।

आप अपने लोभ की भी सीमा तय करें। लोभ की सीमा मतलब आप जो कमाए ,जितना भी कमाए उसी में संतुष्ट रहिये। हमेशा नेक तरीकों से कमाई करें जिससे किसी को भी हानि न होने पाये। और आपके सामने चाहे लाखों-करोड़ो रूपये भी क्यों न हो पर आपका मन विचलित न हो।  अगर ऐसा हो जाता है तो फिर आप समझ ले आपने विकारों में रहकर भी विकारों को जीत लिया है।

अब इतना अगर आप जान गए तो अन्य विकारों की सीमा भी आप अपने आप समझ जाएंगे क्यूंकि ज्ञान कोई वस्तु नहीं जो देने से ही मिलती है बल्कि ज्ञान का भण्डार तो आपकी अपनी आत्मा है जो थोड़ा-सा भी हिलाने पर जागता ही रहता है।

 

अब बात करते है ईश्वर दर्शन की , प्रभु दर्शन की। क्या सच में वो आपको दर्शन देंगे ? क्या आप उन्हें देख पाएंगे कि वह कैसे दिखते है ?

यह तो आप ही जाने ,क्यूंकि मैं तो बस आपको एक simple-सा तरीका बता सकता हूँ पर practicle तो आपने करना है।

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तो मैं अब बात करूंगा भक्ति की। असल भक्ति है क्या ?

आप में से बहुत से लोग होंगे ख़ास तोर पर  युवा-वर्ग जो free-time में अक्सर गाने गुनगुनाते रहते है। गाने एकदम से याद हो जाते होंगे। पर क्या आपने कभी सोचा कि इन गानों को गुनगुनाने से क्या लाभ ? आप कहेंगे बस time-pass हो जाता है और बोरियत नहीं होती और कभी-कभी उदासी भी दूर हो जाती है।

और जब प्रभु के गुणगान की बात आती है (अधिकतर लोगों के लिए) तो वह कह देते है कि प्रभु का समय तो प्रभु को दे चुके अब उन्हें भी Rest करने दो। कभी सोचियेगा कि क्या सच में यह बात सही है ?  ईश्वर तो सदैव हमारे साथ है। अगर वो rest करने लग जाए तो फिर क्या होगा जरा सोचियेगा ?

अच्छा वैसे कुछ लोग ऊपर वाली line को पढ़कर भी व्यंग्य कसने को आतुर होंगे क्योंकि मैंने लिखा है कि ईश्वर तो सदैव हमारे साथ है।

तो फिर आप एक बात सोचिये आपके साथ अगर कोई रहता है और जब आप उसके सामने free भी हो वो आपकी तरफ ही देखता रहे तो क्या आप अपने गानों या अन्य चीजों में ही व्यस्त रहेंगे ? या फिर उसकी तरफ भी ध्यान देंगे और उससे भी बाते करेंगे ? वह आपकी तरफ ही देखता रहे और क्या आप अपना ही मस्त रहेंगे ? ऐसा ही ईश्वर के साथ है ,वह हमारे साथ तो सदैव है ही, तो उनको भी तो time दो अगर वो हमारे सामने ही है। माना काम के समय time नहीं दे पाते मगर जब free है तब तो उनको time दे दो।

ऊपर मैंने बात गानों की , की थी। आप free time में गाने तो गुनगुना लेते हो कभी प्रभु का गुणगान भी करके देखो।  जब आप अपने free time में भी ईश्वर का गुणगान करने लग जाएंगे ,भक्ति के सागर में डुबकिया लगानी शुरू करेंगे तब आपको जो महसूस होगा वो सिर्फ आप खुद ही जान सकते है। वह अनुभूति ऐसी होगी कि जैसे आप संपूर्ण हो गए ,अगर प्रभु मिलन के लिए आपकी आंखों से आँसू भी निकलेंगे तो यकीन मानिए उन आँसुओं के सामने आपको दुनिया भर की सारी खुशियाँ भी फीकी लगेंगी।

और जब आप ऐसी भक्ति में डुबकियां लगानी शुरू कर देंगे तब आपके प्रभु हर समय आपके सामने ही आपको नजर आएंगे ,पर फिर भी आप सोचते रहेंगे कि क्या सच में प्रभु आपके सामने है या नहीं ? ऐसा इसलिए सोचेंगे क्यूंकि दोस्तों प्रभु तो कलयुग में दर्शन देते ही नहीं ,हमे तो यही लगता है :)। खैर उस समय की अनुभूति का वर्णन मैं शब्दों के द्वारा नहीं कर सकता क्यूंकि कुछ शब्दों के द्वारा प्रभु की भक्ति के सागर का गुणगान किया ही नहीं जा सकता। 

जैसे अगर आपको कोई चीज खाने में बहुत ज्यादा या फिर कहे कि सबसे ज्यादा स्वादिष्ट लगती है तो आप उसके बारे दूसरों को क्या कहेंगे कि बहुत-ही ज्यादा स्वाद है , इससे ज्यादा तो कुछ नहीं कह सकते क्यूंकि उसका स्वाद तो खाकर ही पता लग सकता है ,बताकर नहीं। उसी प्रकार प्रभु की भक्ति तो भक्ति के सागर में डुबकिया लगाकर ही अनुभव की जा सकती है ,जिसका वर्णन किसी भी शब्दों के मेल के द्वारा नहीं किया जा सकता।

भक्ति के सागर में डूबकर तो देखो ,यह डूबना जीवन नैया पार लगा देगा।
 जितनी गहराई में डूबोगे ,जीवन नैया उतनी ही आसानी से पार होगी।।

 

तो दोस्तों अगर आप भी ऐसे ही है तो आप जागृत अवस्था में है और आपका मनुष्य जन्म सफल है पर अगर आप ऐसे नहीं तो आप जरा फिर से सोचियेगा कि क्या आप सच में जागृत है या नहीं ?

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मुझे उम्मीद है आप जो भी यह कहानी पढ़ रहे है उनमे से कुछ जरूर ऐसे होंगे जिन्होंने यह सब अनुभव  किया होगा। वैसे तो जैसा कि मैंने पहले ही  कहा है कि भक्ति तो अनुभव ही की जा सकती है ,इसका वर्णन नहीं किया जा सकता लेकिन फिर भी हम सब अपनी समझ के द्वारा थोड़ा-बहुत वर्णन तो कर ही सकते है तो दोस्तों अगर आपने भी ऐसा कुछ अनुभव किया है तो comment के द्वारा हमे भी जरूर बताईये।

वैसे तो यह विचार है जोकि मेरे अपने है ,लेकिन जब विचारों का संग्रह एक बड़ा रूप ले लेता है तो उस रचना को प्रस्तुत करने का कुछ नाम तो होता ही है जैसे – उपन्यास ,कहानी ,लेख आदि। तो  इतना बड़ा यह लिखा गया है इसलिए अब यह एक लेख है। तो दोस्तों अब आपको यह लेख कैसा लगा ? क्या आप मेरी बात से सहमत है या नहीं ? जरूर बताईयेगा।

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